क्या रविंद्र सिंह भाटी को मिलेगा कांग्रेस-भाजपा के बीच खींचतान का फायदा? पढ़ें बाड़मेर-जैसलमेर सीट की ये लेटेस्ट रिपोर्ट - Khulasa Online क्या रविंद्र सिंह भाटी को मिलेगा कांग्रेस-भाजपा के बीच खींचतान का फायदा? पढ़ें बाड़मेर-जैसलमेर सीट की ये लेटेस्ट रिपोर्ट - Khulasa Online

क्या रविंद्र सिंह भाटी को मिलेगा कांग्रेस-भाजपा के बीच खींचतान का फायदा? पढ़ें बाड़मेर-जैसलमेर सीट की ये लेटेस्ट रिपोर्ट

क्या रविंद्र सिंह भाटी को मिलेगा कांग्रेस-भाजपा के बीच खींचतान का फायदा? पढ़ें बाड़मेर-जैसलमेर सीट की ये लेटेस्ट रिपोर्ट

Lok Sabha Chunav 2024 : पाकिस्तान से लगी सरहद पर स्थित देश के दूसरे सबसे बड़े लोकसभा क्षेत्र बाड़मेर-जैसलमेर में स्थितियां इतनी दिलचस्प बन गई हैं कि त्रिकोणीय मुकाबले में चार जून को जीत का सेहरा तीनों में से किसी भी सिर बंध सकता है। हालात को यूं समझिए कि, कांग्रेस और भाजपा चुनाव प्रचार का कोलाहल थमने तक अपनी टक्कर निर्दलीय से बता रहे हैं। दोनों अपनी-अपनी जीत मान रहे हैं और एक-दूसरे को तीसरे नंबर पर बता रहे हैं।
बाड़मेर में यह निर्दलीय है शिव विधायक रविंद्रसिंह भाटी। शिव क्षेत्र के छोटे से गांव दूधोड़ा निवासी रविंद्र के पिता पास के ही गांव के सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं। परिवार की कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं। जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर के छात्रसंघ अध्यक्ष पद पर एबीवीपी का टिकट नहीं मिलने पर बागी के रूप में भारी मतों से जीत कर रविंद्र पहली बार सुर्खियों में आए। गत विधानसभा चुनाव में शिव से भाजपा का टिकट मांगा, नहीं मिलने पर वह न केवल चतुष्कोणीय मुकाबले में जीते बल्कि भाजपा के अधिकृत उमीदवार की जमानत जब्त करवा दी। कांग्रेस के बागी उमीदवार फतेह खां उस चुनाव में दूसरे, कांग्रेस के अधिकृत उमीदवार छह बार के विधायक अमीन खां तीसरे और भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी स्वरूप सिंह चौथे नंबर पर रहे। विधानसभा चुनाव जीतने के बाद रविंद्र ने भाजपा से नजदीकी करनी चाही, मुयमंत्री भजनलाल से भी मिले, इलाके के कुछ काम बताए लेकिन हार की कसक के चलते भाजपा ने उन्हें तवज्जो नहीं दी। शिव विधानसभा क्षेत्र में 20 हैंडपंप स्वीकृत हुए तो सिर्फ 2 विधायक रविंद्र की सिफारिश पर और 18 भाजपा के टिकट पर जमानत गंवा तक चुके स्वरूप सिंह की सिफारिश पर। यह बात रविंद्र को चुभ गई। अब वे लोकसभा चुनाव से एक दिन पहले तक भाजपा-कांग्रेस दोनों की नींद उड़ाए हुए हैं।

इस लोकसभा सीट पर मुद्दों पर जातिवाद हावी रहा है, आपको याद दिलाएं, इस सीट पर 40 साल तक वृद्धिचंद जैन के अलावा केवल राजपूत प्रत्याशी तनसिंह, कल्याण सिंह कालवी आदि जीते। 1991 में पहली बार इस सीट से रामनिवास मिर्धा के रूप में जाट प्रत्याशी जीता। इसके बाद से सीट को लेकर जाट-राजपूत अक्सर आमने सामने रहे। भैरोंसिंह शेखावत और जसवंतसिंह सरीखे कद्दावर राजपूत नेताओं को यहां के मतदाताओं ने हार का मुंह भी दिखाया। इस बार भाजपा की ओर से केद्रीय कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी और कांग्रेस की ओर से रालोपा से आए उमेदाराम बेनीवाल प्रत्याशी हैं, दोनों जाट हैं और इनका मुकाबला राजपूत रविंदर सिंह से हैं। जाति से ऊपर उठ कर युवा रविंद्र के पीछे लामबंद नजर आ रहे है। कांग्रेस और भाजपा की अंदरूनी राजनीति भी रविंद्र के लिए मददगार साबित होती दिख रही है।

विधानसभा चुनाव में अपनी हार का कारण बने बागी फतेह खान की लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में वापसी से नाराज कांग्रेस के वयोवृद्ध कद्दावर नेता अमीन खान बागी हो गए हैं। वे रालोपा से आए कांग्रेसी उमीदवार उमेदाराम बेनीवाल की खुले तौर पर कारसेवा करने पर उतारू हैं। अमीन खां का मुस्लिम मतों पर होल्ड माना जाता है। 12 अप्रेल को पीएम मोदी की सभा के बाद से उदासीन सी चल रही भाजपा हालांकि 19 तारीख के पहले चरण के मतदान के बाद सक्रिय हुई और जो प्रचार थमने के अंतिम क्षणों में फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत के जैसलमेर और फिर बाड़मेर में रोड शो के धूमधड़ाके तक पुरजोर प्रयास करती दिखी। लेकिन जानकारों का कहना है कि शुरुआती उदासीनता से हुए नुकसान की भरपाई मुश्किल होगी। कांग्रेस में यह चुनाव हरीश चौधरी के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ है, क्योंकि जाट, अनुसूचित जाति और मुसलमान वोटों के कॉबिनेशन से जीतती रही कांग्रेस के वोटों में अमीन खां के बागी रवैये से बड़ा डेंट लगने की आशंका है। अमीन खान के जाट विरोधी बयानों से ऐसी भी संभावना बन रही है कि मतदान की पूर्वरात्रि खुड़का (एक राय हो) कर वोट करते रहे जाट यदि ये सीट राजपूतों के पास जाने से रोकने के लिए अंतिम क्षणों में जीतता दिखने वाले जाट प्रत्याशी के पक्ष में एकमुश्त वोट कर दें। जानकारों के अनुसार ऐसे किसी निर्णय की नौबत आई तो यह फैसला मोदी के नाम और केंद्र-राज्य में डबल इंजन की सरकार वाली भाजपा के प्रत्याशी कैलाश के पक्ष में भी जा सकता है।
मुद्दे नदारद
पूरे चुनाव क्षेत्र में मुद्दों की कहां कोई चर्चा नहीं सुनी गई, ऐसा नहीं है कि बाड़मेर में कोई समस्या नहीं है, पानी की कमी का दंश तो सदियों पुराना है। बाड़मेर में विकास के दावों के हश्र का सबसे बड़ा सबूत कांग्रेस और भाजपा की राजनीतिक फुटबॉल बनी रिफाइनरी है। तेल मिलने के बाद बाड़मेर को दुबई बनाने के दावे दिवास्वप्न साबित हुए हैं।
मतदाता मुखर
शिव, बाड़मेर, सिणधरी, गुड़ामालानी, चौहटन आदि विधानसभा क्षेत्रों के सघन दौरे में मतदाताओं से बातचीत में गडरा रोड कस्बे में पंचायत जमा कर बैठे जब्बल खां ने बताया कि अमीन खां की नाराजगी से कांग्रेस के मुस्लिम मतों में टूट की आशंका बनी थी, वह पीएम मोदी के अल्पसंयकों के बारे में दिए बयान के बाद खत्म हो रही है। विशाला, दूधाबेरी, दूधोड़ा, हरसाणी आदि गांवों में निर्दलीय के प्रति रुझान दिखा। वहीं रावतसर, सिणधरी, गुड़ामालानी, रामजी को गोल, धोरीमन्ना, चौहटन आदि में कांग्रेस और भाजपा के साथ निर्दलीय का नाम बराबर लोगों की जुबान पर सुना। भाजपा प्रत्याशी के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी जाति के वोटों का बड़ा हिस्सा हासिल करने की है, क्योंकि मंत्री रहते हुए राजपूतों को तरजीह दिए जाने से जाट खफा हैं। उमेदाराम को कांग्रेस के कद्दावर नेता हेमाराम चौधरी का भरपूर समर्थन मिल रहा है।

 

 

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