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बात लूणकरणसर विधानसभा की…यहां कांग्रेस से धतरवाल तो भाजपा से काजला मार सकते है बाजी

-पत्रकार कुशाल सिंह मेड़तिया की खास रिपोर्ट बीकानेर। हर कोई अब आचार संहिता लगने का इंतजार कर रहा है। इसके लगने के साथ ही राजस्थान में चुनाव का बिगुल बज जाएगा। दोनों ही पार्टिया अपने प्रत्याशियों के चयन को लेकर मंथन में जुटी हुई है। वहीं दूसरी तरफ पिछले लंबे समय से पार्टी के लिए काम कर रहे नेता भी अपनी टिकट की उम्मीदवारी जोरोशोरों से कर रहे है। टिकट तो अभी तक फाइनल नहीं हुई है, लेकिन उम्मीदवारी कर रहे नेता अपने अलग-अलग दावें कर रहे है। लेकिन जिस दिन भाजपा और कांग्रेस की सूची आएगी उसी दिन ही स्थिति साफ हो सकेगी। बात करें बीकानेर की सात विधानसभा क्षेत्रों की तो अब तक दोनों ही पार्टी में 100 से अधिक नेता अपनी दावेदारी संगठनों के सामने कर रहे है। दावेदारों की इस सीरीज में हम अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों के उम्मीदवारों की बात करेंगे। आज हम बात करेंगे जिले की लूणकरणसर विधानसभा क्षेत्र की तो अभी यहां भाजपा के सुमित गोदारा विधायक है। इस बार भी चुनाव लड़ने के लिए वह तैयार है और जयपुर जाकर संगठन के सामने अपनी दावेदारी भी जता चुके है। लेकिन अपने ही पार्टी के कार्यकर्ताओं की नारजगी के चलते गोदारा का टिकट कट भी सकता है। जिस दिन देवीसिंह भाटी भाजपा में शामिल हुए थे, उसी दिन सुमित गोदारा के टिकट कटने की संभावना बढ़ गई। क्योंकि भाटी की वापसी से वसुंधरा राजे गुट को मजबूती मिली। क्योंकि पिछले दिनों वसुंधरा के बीकानेर दौरे के दौरान गोदारा नजर नहीं आए थे। अब अगर टिकट में राजे की चलती है तो सुमित गोदारा की जगह पार्टी किसी ओर पर भरोसा जता सकती है। इसी विधानसभा क्षेत्र से अनेकों भाजपा कार्यकर्ताओं ने जयपुर पहुंचकर प्रदेशाध्यक्ष के सामने नाराजगी भी व्यक्त की थी। साथ ही सुमित गोदारा की टिकट काटने की मांग भी कर चुके है। इसके अलावा कार्यकर्ताओं ने किसी भी भाजपा से जुड़े कार्यकर्ता को टिकट देने का आह्वान किया। वहीं बात करें अन्य दावेदारों की तो भाजपा से ही युवा नेताओं में अजय काजला, महेश मूंड, मोहन दुसाद भी अपनी दावेदारी पेश कर चुके है और लगातार अपने क्षेत्र में सक्रीय नजर आ रहे है। यह तीनों ही नेता चाहे भाजपा की परिवर्तन यात्रा हो या कोई संगठन का कार्यक्रमों हो, लगातार अपनी विधानसभा में एक्टिव ही दिखे। दूसरी तरफ बात करें कांग्रेस की तो यहां पर पिछले कई सालों से वीरेंद्र बेनीवाल का दबदबा रहा है। लेकिन पिछले दो चुनावों में हार के बाद इस बार पार्टी बेनीवाल की बजाय किसी दूसरे नेता पर भी दाव खेल सकती है। बात करें यहां से दावेदारों की तो प्रमुख रूप से पहला नाम मुखराम धतरवाल का ही सामने आ रहा है। क्योंकि धतरवाल पिछले लंबे समय से संगठन के कार्यों में सक्रिय है तथा गुटबाजी से भी दूर नजर आते है। अगर पार्टी बेनीवाल का टिकट काट कर किसी ओर चेहरे पर विचार करती है तो, सबसे पहला नाम धतरवाल का ही होगा। धतरावाल इससे पहले दो बार सरपंच भी रह चुके है। इनके अलावा कांग्रेस राजेंद्र मूंड तथा रामनिवास कूकणा भी यहां से दावेदारी कर चुके है। हालंकि सूची जारी होने के बाद ही स्थिति स्पष्ट हो सकेगी।
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