गणगौर स्पेशल: 200 साल पहले बीकानेर लाए गए ईसरजी, जैसलमेर में आज भी अकेली है गवर - Khulasa Online गणगौर स्पेशल: 200 साल पहले बीकानेर लाए गए ईसरजी, जैसलमेर में आज भी अकेली है गवर - Khulasa Online

गणगौर स्पेशल: 200 साल पहले बीकानेर लाए गए ईसरजी, जैसलमेर में आज भी अकेली है गवर

बीकानेर. राजस्थान के चैत्र महीने में हर शहर में ईसर-गणगौर की सवारी निकाली जाती है। शुक्ल पक्ष की तृतीया पर हर साल इसका आयोजन होता है। ईसर के साथ गणगौर की धूम.धाम से सवारी निकलती है। लेकिनए जैसमलेर की एक मात्र गवर ऐसी है जो आज भी अकेली है।

शाही गणगौर में गवर माता की सवारी निकाली जाती है लेकिन इसमें ईसर नहीं होते हैं। इतिहासकार बताते हैं कि ईसर को बीकानेर रियासत ले गए थे। तभी से पिछले 200 साल से गवर माता अकेली हैं। इतिहासकार नंद किशोर शर्मा ने बताया कि चूंकि एक पत्नी अपने पति के बिना दूसरा पति नहीं चुनती इसलिए आज तक गवर के लिए दूसरे ईसर को नहीं लाया गया है।

उदयपुर में हुआ था विवाद
इतिहासकार नन्द किशोर शर्मा ने बताया कि एक बार जैसलमेर के महारावल गजसिंह का विवाह उदयपुर में हुआ था। उस दौरान एक बारात बीकानेर से आई थी। इस शादी में तत्कालीन जैसलमेर रियासत के दीवान सालमसिंह ने शादी के बाद दूल्हे पर स्वर्ण मुद्राओं की घोल कर उसे चंवरी में उछाला था। ये बीकानेर के शासकों को अच्छा नहीं लगा।

उस समय तो वह कुछ नहीं बोले। बाद में जैसलमेर पर धावा बोलने की फिराक में रहे और जैसलमेर क्षेत्र को लूटने लगे। उसी समय बीकानेर के लोगों ने गणगौर मेले के अवसर पर गड़ीसर जाती सवारी पर अचानक धावा बोल दिया। जैसलमेर के लोग लड़े उन्होंने गवर को तो बचा लिया लेकिन ईसर की प्रतिमा को ले जाने में बीकानेर के लोग सफल हो गए। तब से गणगौर अकेली शोभायात्रा में निकलती है।

लवाजमे के साथ निकलती थी शाही गणगौर की सवारी
जैसलमेर में बरसों पहले शाही गणगौर का आयोजन होता आया है, लेकिन किन्हीं कारणों से पिछले कुछ अरसे से शाही गणगौर की सवारी नहीं निकल रही है। सोनार दुर्ग स्थित राजा महल और आईनाथ मंदिर में पूजा के बाद रानियां, महारानियां, ठकुरानियां और भाटी कुल की महिलाएं मौजूद रहती हैं। गवर गौरी की प्रतिमा को सिर पर रखकर गड़ीसर तक गौरी-ईसर के गीत गाती जाती थी और वहां पूजा करती थी। सवारी दुर्ग से 5 बजे रवाना होती थी। आगे घोड़ों ऊंटों नगाड़े बजाने वाले चलते थे। नगर के दरोगा, छड़ीदार, रावणा राजपूतों की महिलाएं अपने सिर पर गणगौर को उठाती थी। उनके पास दो महिलाएं चंवर डोलती थी। जगह जगह पर गवर की घुमाई की जाती थी। इस समय नगर के लोग गौरी माता के खोला भरती थी।

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