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जामताड़ा गैंग के इस नए ब्रांच से बचके! यूपी, राजस्थान, हरियाणा बॉर्डर पर बने त्रिकोण से पुलिस भी है पस्त

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के मथुरा, राजस्थान के भरतपुर और हरियाणा के मेवात का त्रिकोण में फंसकर बड़े-बड़े लोग अपनी दौलत गंवा रहे हैं। साइबर ठगों के जामताड़ा गैंग का तेजी से विस्तार हो रहा है। जैसे-जैसे देश डिजिटल हो रहा है, जामताड़ा गैंग के नए-नए ब्रांच खुल रहे हैं। मथुरा, भरतपुर और मेवात का त्रिकोण दरअसल इन्हीं नए-नए ब्रांच से बना है। यूपी पुलिस ने पिछले कुछ महीनों में साइबर क्राइम के जिन मामलों की जांच की है, उनमें कम से कम 400 केस के तार इसी त्रिकोण से जुड़े मिले। यूपी साइबर सेल के एसपी त्रिवेणी सिंह बताते हैं कि ठग अपने पुरुष शिकारों को आपत्तिजनक हालत में लाकर उनसे पैसे ऐंठने में माहिर हो गए हैं। उन्होंने कहा, ‘फर्जी पॉर्न वीडियो बनाकर अपने टार्गेट को कॉल करते हैं और 5 हजार से 50 हजार रुपये तक मांग करते हैं। कई ठग तो मुंबई, कोलकाता जैसे महानगरों के शिकार से फर्राटेदार अंग्रेजी में बात करते हैं।’
तेज पकड़ रहा सेक्सटॉर्शन का धंधा
हाल ही में लखनऊ का एक कारोबारी सेक्सटॉर्शन का शिकार हुआ था। उसने सोशल मीडिया पर एक महिला का फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट किया। उसके बाद उसके वॉट्सऐप पर एक वीडियो कॉल आई। 15 सेकंड की वीडियो कॉल में लडक़ी ने अपने कपड़े उतारे और अश्लील बातें कीं। फिर कॉल काट दी। कुछ मिनट बाद ही कारोबारी को फोन कॉल आई। उसे कहा गया कि 30 लाख रुपये दे दे या फिर आपत्तिजनक में लडक़ी को देखता उसका वीडियो सोशल मीडिया पर डाल दिया जाएगा। आरोपियों को मेवात से धर दबोचा गया। पिछले एक वर्ष में करीब 300 लोगों ने साइबर सेल से गुहार लगाई है। इनमें उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग (क्कक्कष्टस्) के एक सीनियर अधिकारी भी शामिल हैं। इन सबसे वीडियो कॉल पर लडक़ी के कपड़े खोलने और गंदी बातें करने के बाद पैसे मांगने की कॉल आई थी।
ठगों की इसी अदा पर तो भरोसा कर लेते हैं लोग
सेक्सटॉर्शन के अलावा ठग सबसे ज्यादा ई-कॉमर्स साइटों और ऑनलाइन प्लैटफॉर्मों पर शिकार को चपत लगाते हैं। साइबर सेल से जुड़े एक सीनियर ऑफिसर ने कहा, ठग ओएलएक्स जैसे ऑनलाइन मार्केटप्लेस पर नजरें गड़ाए रहते हैं। वो फर्जी अकाउंट्स बनाकर खुद को ग्राहक बताकर विक्रेता को कॉल करते हैं। कीमत तय करके वो विक्रेता को क्यूआर कोड भेजते हैं। ऐसे में बेचने वाला खरीदने वाले पैसे लेने की बजाय उसे दे देता है। लखनऊ और नोएडा में साइबर सेल से लंबे वक्त तक जुड़े रहे पुलिस अधिकारी विवेक रंजन राय कहते हैं कि सेक्सटॉर्शन और ई-कॉमर्स साइट्स के जरिए फ्रॉड के लिए विशेष ज्ञान की जरूरत नहीं है जबकि जामताड़ा गैंग वाले लोगों के बड़ी मेहनत से समझाकर अपना शिकार बनाते हैं। उन्होंने कहा, ऐसे मामलों में ठग या तो अपने शिकार को झांसा देकर या उन्हें लिंक भेजकर या फिर वीडियो कॉल करके मोबाइल ऐप इंस्टॉल कर देते हैं। आखिर में वो खुद को पुलिस वाला बताकर धमकी देते हैं।
खरीद-बिक्री के वक्त रहें सतर्क
ठग अखबारों और ऑनलाइन वेबसाइटों पर प्रकाशित विज्ञापनों को खंगालते हैं। वो खुद को आर्मी या पैरा मिलिट्री से जुड़ा शख्स बताकर अपने शिकार को भरोसे में लेते हैं। यहां तक कि वो अपना फर्जी बैज नंबर, बटालियन का नाम, पोस्टिंग की जगह भी बताते हैं और आईडी लगी यूनिफॉर्म में अपनी तस्वीर भेजते हैं। मथुरा और भरतपुर के ठग अक्सर उन लोगों को टार्गेट करते हैं जो सेकंड हैंड बाइक, कार, गैजेट या रोजमर्रा के सामानों की खरीद या बिक्री का विज्ञापन डालते हैं। हाल ही में एक रिटायर्ड बैंक मैनेजर को 5 लाख रुपये का चूना लगा था। उन्होंने एक महीना पुराने डबल डोर को 50 हजार में बेचने का विज्ञापन दिया था। उनका भरोसा जीतने के लिए ठग ने खुद को आर्मी पर्सन बताकर उनके अकाउंट में 100 रुपये डाल दिए। उसके बाद उसने कहा कि चूंकि वह सीमाई इलाके में तैनात है, इसलिए वहां नेटवर्क की दिक्कत है और पेमेंट नहीं हो पा रहा है। उसने एक क्यूआर कोड भेजा। जैसे ही क्यूआर कोड स्कैन किया, 5 लाख रुपये खाते से निकल गए।
ठगों के त्रिकोण की साजिश समझिए
स्पेशल टास्क फोर्स के एडिशनल एसपी विशाल विक्रम सिंह कहते हैं कि राज्यों की सीमाओं के आसपास से फोन कॉल को ट्रेस करना बड़ा मुश्किल काम होता है। वहां कभी किसी राज्य का तो कभी किसी राज्य का टेलिकॉम नेटवर्क पकड़ लेता है। ठगों ने मथुरा, भरतपुर और मेवात का त्रिकोण इसीलिए बनाया है। उन्होंने कहा, ‘यह त्रिकोण मोबाइल नेटवर्क के लिए एक ब्लैक स्पॉट बना देता है। यह पुलिस के लिए अंधेरी सुरंग में हाथ-पैर मारने जैसा हो जाता है। इसलिए ठगों की चांदी होती रहती है। उनके फोन का सही लोकेशन ही नहीं पता चल पाता है।’ वो बताते हैं कि ठग फर्जी आईडी पर पूर्वोत्तर के राज्यों से थोक में सिम कार्ड ले आते हैं। वो बार-बार सिम बदलते रहते हैं जिससे पुलिस को उनका पता लगा पाना बहुत कठिन हो जाता है।
ठगी से बचना है तो इतना तो करना पड़ेगा…
सोशल मीडिया अकाउंट्स को प्राइवेट मोड में डालें।
ऑनलाइन अपनी पहचान छिपाने के लिए वीपीएन का इस्तेमाल करें।
खासकर मोबाइल पर एंटी-मालवेयर जरूर इंस्टाल करें।
गांठ बांध लें कि पैसे लेने के लिए क्यूआर कोड स्कैन करने की जरूरत नहीं पड़ती है। अगर कोई आपको पैसे देने के लिए आपसे ही क्यूआर कोड स्कैन करने को कह रहा है तो समझ लीजिए 100त्न ठगी की कोशिश है।
कभी क्यूआर कोड स्कैन करके कोई ऐप डाउनलोड नहीं करें। सिर्फ गूगल और ऐपल प्ले स्टोर से ही ऐप डाउनलोड करें।
क्यूआर कोड स्कैन कर भी लिया तो खुलने वाली वेबसाइट के यूआरएल पर गौर कीजिए। अगर सब ठीक लगे तभी अपना बैंक अकाउंट डीटेल डालिए। थोड़ी सी भी शंका हो तो बिल्कुल मत डालिए।
क्यूआर कोड से पेमेंट मांगने वाली कंपनी के डीटेल अच्छे से देखें। यानी, आपका पेमेंट कहां जाएगा, यह ठीक से देख लें।
क्यूआर कोड स्कैन करके किसी वेबसाइट पर जाने की आदत छोड़ दें। ब्राउजर में टाइप करके वेबसाइट पर जाने की आदत डालें।

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