आखिर पॉजिटिव मरीज किसके भरोसे,कौन ले रहा है उनकी सुध,महज पोस्टर के जरिये ही कोरोना का बचाव
जयनारायण बिस्सा
खुलासा न्यूज,बीकानेर। राज्य सरकार कोरोना को लेकर बार बार गंभीरता की बातें कर रही है और आमजन को कोरोना बचाव के लिये सजग रहने की अपील कर रही है। इस संक्रमण के बचाव के लिये जन जन को जागृत करने के लिये करोड़ों रूपये भी खर्च किये जा चुके है। लेकिन स्थानीय जिला प्रशासन इसको लेकर कितना गंभीर है,इसका जीता जागता उदाहरण इन दिनों कोविड संक्रमित मरीजों के साथ हो रहे व्यवहार से देखने को मिल रहा है। हालात यह है कि संक्रमित मरीजों के उचित देखभाल का दावा करने वाले जिला प्रशासन के आलाधिकारियों के दावे उस समय खोखले साबित हो रहे है। जब संक्रमण के शिकार होम आईसोलेट सजग नागरिक स्वयं स्वास्थ्य अधिकारियों को फोन कर अपनी दवा की व्यवस्था कर रहे है। इतना ही नहीं हारेगा कोरोना,जीतेगा बीकाणा के माध्यम से आमजन को कोरोना बचाव के संदेश देने वाले प्रशासन के मुखियाओं को इस बात का आभास तक नहीं है कि आखिर संक्रमितों की मॉनिटरिंग हो रही है या नहीं। जिसके चलते कोविड संक्रमितों के घर के आगे न तो सूचना पोस्टर लगाएं जा रहे है और न ही उनको चिकित्सकीय सलाह के लिये भी दो दो हाथ करना पड़ रहा है। एक ऐसा ही प्रकरण सामने आया है। जिसमें पिछले पांच दिनों पहले पॉजिटिव आने वाले दम्पति को दवाओं के लिये सीएमएचओ डॉ बी एल मीणा को फोन करना पड़ा। जिसके बाद संक्रमित मरीज ने अपने स्तर पर ही बाजार से दवाएं मंगवाकर अपना उपचार शुरू करवाया। मुक्ता प्रसाद के 3/309 निवासी ऋषि अनेजा ने कोरोना के लक्षण आने पर 15 नवम्बर को अपनी और अपनी पत्नी की जांच करवाई। जिसकी 16 नवम्बर को रिपोर्ट पॉजिटिव आई। इस पर होम आईसोलेट हो गये। इसके बाद न तो संबंधित क्षेत्र की डिस्पेन्सरी का स्वास्थ्यकर्मी पॉजिटिव की सुध लेने गया और न दवा देने। यहीं नहीं ऋषि की 65 वर्षीय माताजी भी शुक्रवार को पॉजिटिव रिपोर्ट हुई है। उनकी भी सार संभाल करने खबर लिखे जाने तक कोई नहीं पहुंचा। ऐसे में सीनियर सिटीजन के स्वास्थ्य के प्रति चिंता रखने वाला प्रशासन अमला आखिर कहां मसगूल है।
लोग लापरवाह तो जिम्मेदार बेपरवाह
थोड़े समय के अन्तराल के बाद वापिस कोरोना खतरनाक होने लगा है। पिछले कुछ दिनों में कोरोना संक्रमितों की संख्या में तेजी आई है। लोग लापरवाह तो जिम्मेदार बेपरवाह होते जा रहे है। गत अप्रेल में जब शहर में पहला कोरोना पॉजिटिव मरीज आया तो हड़कम्प मच गया था। शहर में कफ्र्यू लगा दिया गया। आनन-फानन में जांच से लेकर अस्पतालों में वेंटिलेटर तक की व्यवस्था कराई। लेकिन पिछले क ुछ महिनों से जब संक्रमितों की संख्या बढऩे लगी तो व्यवस्थाएं खुद ही संक्रमित हो गई। इन दिनों हालात यह है कि पॉजिटिव आने पर न ट्रेसिंग की जा रही है और न ही आसपास रहने वाले लोगों की जांच की कोई सुविधा है। हकीकत है कि अब कोरोना की जांच भी नाम मात्र की रह गई है। लोग खुद ही बचाव के लिए जांच केन्द्रों पर जाकर अपने सेम्पल देकर आ रहे है। यही कारण है कि जब ज्यादा सेंपल की जरूरत है, तब जांच की संख्या भी पहले की तुलना में काफी कम रह गई है।
पहले टीम खुद जाकर करती थी जांच
कोरोनाकाल की शुरुआत में टीम खुद रेण्डम सेंपल लेकर जांच करती थी। गली- मोहल्लों में शिविर लगाकर जांच कर संक्रमण के फैलाव का पता लगाया जाता था, लेकिन इन दिनों ज्यादातर जांच की व्यवस्थाएं ठप हो चुकी हैं।
पोस्टर से कर रहे बचाव
कोरोना संक्रमण की शुरुआत में पॉजिटिव आने पर पहले दो किलोमीटर, फिर एक किलोमीटर के दायरे में कफ्र्यू लगाकर लोगों की आवाजाही को पूरी तरह रोक दिया जाता था। संक्रमित के आसपास के क्षेत्र को हाइ रिस्क जोन घोषित कर लोगों को घरों में रहने की हिदायत दी जाती थी, लेकिन अब पॉजिटिव आने पर केवल संक्रमित के घर के बाहर एक पोस्टर लगाया जाता है, उसे भी लगाने के बाद कोई देखने तक नहीं आता। यहां तक कि कोरोना पॉजिटिव घर में हैं या बाहर घूम रहे। इसका पता लगाने की कोशिश भी दिखाई नहीं पड़ती। ट्रेसिंग के नाम पर केवल एक बार आंगनबाड़ी कार्यकर्ता या स्वास्थ्य विभाग क ा कर्मचारी संक्रमित को दवा देकर जाता है, उसके बाद वह नेगेटिव हुआ या नहीं, इसकी चिंता कोई नहीं करता। पहले कोरोना संक्रमित आने पर न केवल उसके परिजनों के सेंपल लेकर जांच कराती थी, बल्कि आसपास रहने वाले लोगों के सेंपल की जांच होती थी। वह अब सब बन्द हो गया है। कोरोना संक्रमण की मॉनिटरिंग के लिए टास्क फोर्स का गठन, आरआरटी का गठन, समेत अन्य टीमे थी। लेकिन अब सब बन्द हो गई है। सरकारी रिकार्ड के अनुसार जिले में संक्रमितों की संख्या कम बताई जा रही है। हकीकत में संक्रमित ज्यादा आ रहे है। यहीं नहीं मौत के आंकड़े भी छिपाएं जा रहे है।