मूक प्राणियों की चीत्कार क्यों नही सुन पाता वन विभाग - Khulasa Online मूक प्राणियों की चीत्कार क्यों नही सुन पाता वन विभाग - Khulasa Online

मूक प्राणियों की चीत्कार क्यों नही सुन पाता वन विभाग

रवि विश्नोई। स्वतन्त्र पत्रकार

छतरगढ़ ।वन विभाग के गठन के पीछे यकीनन यही कारण रहा होगा कि यह विभाग वन संपदा की रक्षा कर सके। यकीनन इसी भावना के चलते इस विभाग में अधिकारियों व कर्मचारियों की नियुक्ति होती होगी परन्तु क्या यह विभाग प्रकृति की बेशकीमती सम्पदा की रखवाली कर पाने में आधा भी कामयाब हो पाया है ?

आज इस सवाल का जबाव नही ही है। क्योंकि सच यही है कि रक्षक ही भक्षक बने बैठे है।
ना तो पेड़ पौधे बोल पाते है और ना ही वन्य जीव जंतु…. मानव भाषा बोलने में असमर्थ पेड़ पौधों और वन्य जीवों की भावना को समझने के लिए वन विभाग से चार कदम आगे खड़े विश्नोई जीव प्रेमियों का साहस अगर डगमगा जाए तो ना केवल प्राकृतिक संपदा पर संकट खड़ा हो जाएगा बल्कि वन विभाग भी बेलगाम हो जाएगा। जिस विभाग के अधिकारियों को बेजुबानों की फुसफुसाहट पर ही गम्भीर हो जाना चाहिए वो विभाग मूक प्राणियों की चीत्कार भी नही सुन पा रहा है। तभी तो प्रदेश भर में जीव प्रेमियो को सड़कों पर जाजम लगाकर न्याय मांगना पड़ रहा है। कभी खेजड़ी बचाने के लिए तो कभी हिरण बचाने के लिए ये वन्य जीव प्रेमी अपना सारा कामकाज छोड़कर प्रशासन से लोहा लेता नजर आता है। इन दिनों जीव प्रेमियो का पड़ाव छतरगढ़ में है जहां प्रवेश निषेध इलाके में शिकारी हिरण शिकार का दुस्साहस कर जाते है और उन्हें दण्डित करने के बजाए प्रसाशन जीव प्रेमियों को ही बेजुबानों की आवाज बनने की सजा देने को आतुर बैठा है। हाड़कंपाती सर्द रातो में बेजुबान प्राणी की चीत्कार सुनकर घटनास्थल की तरफ कूच करने वाले वन्य जीव प्रेमियों पर जाति सूचक गालियां निकालने की संगीन कानूनी धाराएं लगाई जा रही है ताकि वे भविष्य में अपने कानों में रुई ठूंस कर सोना कर दे। वन विभाग तो वन विभाग पुलिस विभाग भी ना केवल अपनी जिम्मेदारी से भागने में लगा है बल्कि मूक प्राणियों की बजाए अपने राजनैतिक आका की सुनने में ही लगा है।
खैर… यह स्थिति ज्यादा देर नही चलनी। आंदोलन के बाद ही सही इन मूक बधिर विभागों के आंख, नाक, कान… काम करने लगते ही है और 36 कौमो में मौजूद संवेदनशील जीव प्रेमियों को साथ लेकर प्रकति प्रेमी विश्नोई इन्हें इनके उत्तरदायित्व याद दिलाते ही रहते है। इसबार भी सभी शिकारियों की गिरफ्तारी व बेशर्म अधिकारियों पर कारवाई की मांग को लेकर छतरगढ़ में चल रहे जीव प्रेमियों के बेमियादी धरने का अंजाम भी सुखद ही होगा। बस देखना यही बाकि है कि आखिर कब ? आखिर कब बेजुबान प्राणियो की चीत्कार गहरी नींद में सोए लापरवाह अधिकारियों के मन मे ख़ंजर की तरह चुभेगी।

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