विधानसभा सत्र बुलाने को लेकर क्या हैं राज्यपाल के पास विकल्प, सुप्रीम कोर्ट के इन फैसलों से समझिए - Khulasa Online विधानसभा सत्र बुलाने को लेकर क्या हैं राज्यपाल के पास विकल्प, सुप्रीम कोर्ट के इन फैसलों से समझिए - Khulasa Online

विधानसभा सत्र बुलाने को लेकर क्या हैं राज्यपाल के पास विकल्प, सुप्रीम कोर्ट के इन फैसलों से समझिए

नई दिल्ली। राजस्थान में सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी की ओर से विधानसभा सत्र बुलाने की मांग की जा रही है। कैबिनेट की सिफारिश के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने खुद राज्यपाल कलराज मिश्र से मुलाकात करके उनसे सत्र बुलाने की अपील की। हालांकि, अभी तक इस मुद्दे पर राज्यपाल की ओर से कोई फैसला नहीं लिया गया है। जिसको लेकर सत्ताधारी पार्टी की ओर से सवाल भी खड़े किए जा रहे हैं। वहीं इस पूरे घटनाक्रम पर जानकारों के मुताबिक, कैबिनेट की सिफारिश के बाद राज्यपाल को विधानसभा का सत्र बुलाना ही होता है। पूरे मामले पर अगर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को देखें तो आखिर राज्यपाल के पास क्या कोई विकल्प है? बताते हैं आगे…
सत्र को लेकर राज्यपाल के पास क्या हैं विकल्प?
राजस्थान में बदले सियासी हालात में सीएम अशोक गहलोत विधानसभा सत्र बुलाकर फ्लोर टेस्ट कराना चाहते हैं। उनकी कोशिश बहुमत साबित करके विरोधियों को जवाब देने की है। यही वजह है कि वो लगातार विधानसभा सत्र बुलाने की कवायद में जुटे हुए हैं। वहीं कांग्रेस का आरोप है कि राज्यपाल ऊपरी से दबाव की वजह से ऐसा नहीं कर रहे हैं। इस पूरे घटनाक्रम को लेकर अगर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर गौर करें तो माना जा रहा कि राज्यपाल के पास ज्यादा विकल्प नहीं है। कैबिनेट की सिफारिश के बाद राज्यपाल को विधानसभा का सत्र बुलाना ही होता है। हालांकि, उनके पास कुछ और विकल्प भी हैं…
जानिए क्या है आर्टिकल 174
राज्यपाल आर्टिकल 174 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए, अशोक गहलोत सरकार की सलाह को टाल सकते हैं या फिर देरी कर सकते हैं। लेकिन ऐसा तभी किया जा सकता है जब सरकार को बहुमत पर संदेह हो। आर्टिकल 174 के मुताबिक, ‘राज्यपाल के पास ये शक्ति है कि समय-समय पर राज्य के विधानमंडल के प्रत्येक सदन को स्थिति के मद्देनजर बैठक के लिए बुला सकते हैं। लेकिन इसमें पिछले सत्र की अंतिम बैठक और आगामी सत्र की पहली बैठक के बीच 6 महीने का अंतर नहीं हो।’
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर एक नजर
ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या राज्यपाल, मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्री परिषद की सिफारिश को अपने विवेक से अस्वीकार कर सकते हैं? इसको लेकर जुलाई 2016 नबाम रेबिया फैसले को देखना चाहिए, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 174 के प्रावधान की समीक्षा करते हुए अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि हम इस फैसले पर पहुंचे हैं कि राज्यपाल सदन की कार्यवाही को रोक सकते हैं, सलाह दे सकते हैं और सदन को भंग कर सकते हैं। लेकिन ऐसा केवल मुख्यमंत्री और मंत्री परिषद की सहायता और सलाह पर ही किया जा सकता है। राज्यपाल खुद से ऐसा कोई फैसला नहीं ले सकते हैं।
राज्यपाल के पास नहीं है ज्यादा विकल्प
एक विकल्प ये भी है कि अगर राज्यपाल को लगता है कि प्रदेश सरकार विश्वास मत खो चुकी है, ऐसी स्थिति में वो अपना फैसला ले सकते हैं। हालांकि, इसके लिए राज्यपाल फ्लोर टेस्ट करा सकते हैं, जिसमें सरकार को अपना बहुमत साबित करना होगा, ऐसा नहीं करने पर राज्यपाल के पास आर्टिकल 174 के तहत अपनी शक्तियों के इस्तेमाल करने की छूट रहेगी।
राजस्थान में राज्यपाल के फैसले पर सभी की निगाहें
ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या राजस्थान के राज्यपाल को लगता है कि गहलोत सरकार ने अपना बहुमत खो दिया है और वह मंत्री परिषद सलाह के बावजूद सदन को बुलाने के लिए बाध्य नहीं है? अगर ऐसा है तो भी राज्यपाल को सीएम को सदन के पटल पर बहुमत साबित करने का निर्देश देना होगा। सुप्रीम कोर्ट की ओर से इस संब ंध में कई बार आदेश सामने आ चुके हैं। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि बहुमत का परीक्षण सदन के पटल पर ही होना चाहिए।

error: Content is protected !!
Join Whatsapp 26