
बच्चों के स्वास्थ को चैक करने वाले गाडिय़ां स्कूल व आंगनबाड़ी केन्द्रों पर कागजों में ही पहुंची, बंद स्कूलों में कहां जांचा स्वास्थ्य






बीकानेर। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम यानी आरबीएसके में बच्चों की देखभाल कैसे हो रही है इसका प्रमाण गुरुवार को तब मिला जब कलेक्टर ने इस कार्यक्रम में जुटी सभी मोबाइल वैन को अपने ऑफिस बुलाया। ड्राइवर से लॉग बुक मांगी। हैरानी इस बात पर हुई कि जिन गाडिय़ों को रोजाना स्कूलों, आंगनबाड़ी केन्द्रों में जाकर बच्चों का स्वास्थ्य जांचना है उनमें से अधिकांश की लॉग बुक ही नहीं भरी थी।
ड्राइवर यह तक नहीं बता पाए कि पिछले सप्ताहभर में वे कहां-कहां गए। कई गाडिय़ों की हालत ऐसी थी कि धक्का मारने पर भी स्टार्ट नहीं हुई। ये सभी वे गाडिय़ां हैं जिन्हें हर महीने 25 हजार रुपए किराया दिया जा रहा है। प्रत्येक गाड़ी में एक डॉक्टर, नर्स, फार्मासिस्ट नियुक्त हैं।
अचानक हुई जांच में पूरी पोल खुल गई। कलेक्टर ने सीएमएचओ डॉ.बीएल मीणा को मौके पर ही कहा, पूरे आरबीएसके कार्यक्रम की ऑडिट करो। अब तक किसको, कितना भुगतान हुआ है। इन डॉक्टर्स ने कहां, क्या सेवाएं दी हैं। कितने बच्चों के ऑपरेशन हुए आदि। बीकानेर शहर के सात ब्लॉक में आरबीएसके की 14 टीमें लगी हुई हैं।
जन्म से 18 वर्ष तक के बच्चों का स्कूल, आंगनबाड़ी आदि स्थानों पर जाकर स्वास्थ्य परीक्षण करना। खासतौर पर फोर-डी यानी बर्थ डिफेक्ट, डेफिसिएंसी, डवलपमेंट डिले, डिसेबिलिटी की जांच कर उपचार करना। जरूरत पडऩे पर बड़े अस्पताल में रैफर कर इलाज कराना।
कोविड में स्कूल बंद रहे तो गाडिय़ां चलीं कहां
बीते दो सालों में ज्यादातर प्राइमरी स्कूल बंद रहे हैं। आंगनबाड़ी केन्द्रों पर भी बच्चों की आवाजाही लगभग बंद रही। ऐसे में परीक्षण-उपचार कैसे हो पाया, यह बड़ा सवाल है। ऐसा नहीं हुआ तो फिर इन टीमों-गाडिय़ों का क्या उपयोग हुआ, यह भी जांच की जाएगी।
हर गाड़ी का 25 हजार किराया, डॉक्टर, नर्स, फार्मासिस्ट नियुक्त हैं।
अब तक 131 बच्चों की हार्ड डिजीज का इलाज कराया गया।
आरबीएसके की गाडिय़ों और कामकाज का रियलिटी चैक करने के बाद जो निर्देश मिले हैं उसके अनुरूप सभी तथ्यों की जांच कर रहे हैं। ब्लॉकवार रिपोर्ट तैयार करेंगे। दोषी के खिलाफ कार्रवाई होगी।
डॉ.बीएल मीणा, सीएमएचओ


