मकर सक्रांति पर बीकानेर में करोड़ रुपये के घेवरों की होती बिक्री, देश के कोने-कोने में जाते है घेवर - Khulasa Online मकर सक्रांति पर बीकानेर में करोड़ रुपये के घेवरों की होती बिक्री, देश के कोने-कोने में जाते है घेवर - Khulasa Online

मकर सक्रांति पर बीकानेर में करोड़ रुपये के घेवरों की होती बिक्री, देश के कोने-कोने में जाते है घेवर

बीकानेर । शहर बीकाण ऐसे तो खान पान के लिए बहुत प्रसिद्ध है शहर रसगुल्ला, भुजिया, कचौरी आदि लोग चाव से खाते है और यह बाहर भी सप्लाई होते है। वैसे ही घेवर बीकानेर के अलावा कई जिलों में बनते है। सर्दी के के दो महीने में ये घेवर बीकानेरवासियों की थाली में एक बार नहीं बल्कि कई बार पहुंचता है। एक अनुमान के मुताबिक महज दो महीने में करीब दस करोड़ रुपए के घेवर की बिक्री होती है। मिठाई के शौकीन बीकानेरियों ने अब घेवर इतने प्रयोग कर लिए हैं कि सर्दी के सीजन में राजस्थान से बाहर भी एक्सपोर्ट होने लगे हैं। बीकानेर में मळ मास से मकर सक्रांति तक घेवर खाने की अनूठी परम्परा है। इस एक महीने में बेटियों के घर घेवर भेजने की बकायदा रस्म है। जिसे निभाना ही पड़ता है। मळ मास के साथ ही बीकानेर में सर्दी भी बढऩे लगती है। ऐसे में घेवर की दुकानें भी बढ़ जाती है। इस समय शहरी क्षेत्र में चार सौ से ज्यादा घेवर की दुकानें हैं। जहां हर रोज सैकड़ों घेवर बिक जाते हैं। कई बड़े रेस्टोरेंट भी ताजा व गर्म घेवर बनाने में जुट जाते हैं। ऐसे ही एक रेस्टोरेंट अम्बरवाला के संचालक रवि पुरोहित बताते हैं कि सिर्फ मळ मास से मकर सक्रांति तक चार करोड़ रुपए के घेवर की बिक्री बीकानेर में होती है। शेष सर्दी के समय को जोड़े तो ये आंकड़ा करीब दस करोड़ तक पहुंच जाता है।
घेवर बनाने के लिए मैदा और दूध को मिलाकर उसे मथना पड़ता है। काफी देर मथने के बाद इसे खौलते हुए घी में एक निश्चित मात्रा में डाला जाता है। खौलते हुए घी में ये मिश्रण डालते ही इसमें बुलबुले उठने लगते हैं। ये बुलबुले ही इसमें आरपार के छेद बना देते हैं। मधुमक्खी के जाले की तरह आकार बना जाता है। कुछ ही मिनट में घेवर बनकर तैयार हो जाता है। ये घेवर फीका होता है लेकिन बाद में इस पर चासनी (चीनी से बनी) डाली जाती है। गर्म चासनी डालने से ठंडा घेवर भी गर्म का असास होता है।
एक वक्त था जब देशी घी के सफेद घेवर ही बेटियों के यहां दिए जाते थे लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब सगा संबंधित के यहां रबड़ी के घेवर दिए जाते हैं। घेवर पर रबड़ी लगाई जाती है। फिर इस पर कई तरह के ड्राई फूट्स डाले जाते हैं। जिसमें केसर, पिश्ता, काजू, बादाम की भरपूर मात्रा होती है। सामान्य और रबड़ी घेवर की कीमत में भारी अंतर होता है लेकिन फिर भी आजकल सामान्य से ज्यादा रबड़ी घेवर की बिक्री होती है।
यहां भी बनते हैं घेवर
बीकानेर में घेवर मळ मास में ही बनते हैं लेकिन जयपुर में सावन तीज के अवसर पर घेवर का चलन है। तब बीकानेर के ही कारीगर जयपुर में जाकर घेवर बनाते हैं। इसके अलावा जोधपुर में भी घेवर बनाने का चलन है।
बीकानेर में बनने वाले घेवर अब उत्तरप्रदेश, बंगाल, बिहार, पंजाब, हरियाणा व नई दिल्ली तक जाते हैं। दरअसल, फीके घेवर कई दिनों तक खराब नहीं होते। इन राज्यों में बीकानेर के ही लोग चासनी बनाकर इन्हें मीठा करके बेचते हैं। यहां भी राजस्थानी ही इनकी खरीदार होते हैं।

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