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उपचुनाव के रिजल्ट से गहलोत मजबूत हुए या पायलट ?, क्या राजे को साइडलान करना पड़ा महंगा

दीपोत्सव के शुभारंभ पर विधानसभा की दो सीटों पर आए उपचुनाव के परिणामों ने बड़ा धमाका कर दिया। सबसे ज्यादा विस्फोटक नतीजा धरियावद का है। 23 हजार वोट की लीड के साथ मुख्य चुनाव जीती भाजपा को उप चुनाव में कांग्रेस ने 18 हजार वोटों से हरा दिया। कांग्रेस के लिए धरियावद जीतना किसी तिलिस्म से कम नहीं है। उधर, भाजपा के लिए ये हार काफी उठा-पटक वाली साबित होगी। पिछले दोनों उप चुनावों में प्रत्याशियों को लेकर भाजपा का हर प्रयोग विफल साबित हुआ है। भाजपा ने जिस तरह जनाधार खोया है और दोनों जगह दूसरी पार्टी भी नहीं बन पाई। ऐसे में लंबे समय तक गुटबाजी, भितरघात और टिकट वितरण की बातें ही होती रहेंगी। ये उप चुनाव 2023 के चुनावों की दिशा तय करेंगे। इनके मायने ऐसे समझ सकते हैं?

1. इस चुनाव के रिजल्ट से क्या अशोक गहलोत मजबूत होंगे?

बिल्कुल। यह दोनों चुनाव अशोक गहलोत के नेतृत्व में लड़े गए। कांग्रेस में एक धड़ा जो गहलोत के नेतृत्व पर सवाल उठा रहा था, उनके लिए सेट बैक होगा। खास तौर पर वल्लभनगर सीट। यहां से सचिन पायलट खेमे के गजेंद्र सिंह शक्तावत थे। वहां से प्रीति शक्तावत की जीत गहलोत और प्रदेश में कांग्रेस सरकार को मजबूत करेगी। उधर, दो सीट बढ़ने कांग्रेस के पास बहुमत से 1 सीट ज्यादा हो गई। राज्य में अब कांग्रेस के 102 ‌‌‌विधायक है। ऐसे में BSP और BTP विधायकों के समर्थन के बिना भी सरकार सुरक्षित है।

2. क्या पायलट कमजोर हुए हैं? क्या उनका कद घटेगा?

बिल्कुल नहीं। पायलट मजबूत हुए हैं। पिछले दोनों उप चुनाव में उन्होंने मैच्योरिटी दिखाई। गहलोत के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। सक्रिय रहे। उप चुनाव में केंद्रीय मंत्री ने गहलोत की भाषणों में खिल्ली उड़ाई तो उन्होंने उसका जबाब देकर विरोधियों की बोलती बंद की। अब उनका कद भी बढ़ेगा और जिम्मेदारी भी। उप चुनावों में राज्य के बाहर भी प्रचार किया।

3. इस रिजल्ट का क्या राजनीतिक नियुक्तियों में असर दिखेगा?

हां, राजनीतिक नियुक्तियों पर भी इसका बड़ा असर देखने को मिलेगा। दीपावली के बाद प्रदेश में राजनीतिक नियुक्तियां होनी हैं। ऐसे में एक बार फिर इन नियुक्तियों में अशोक गहलोत और पायलट की बराबर की चलेगी।

4. क्या भाजपा में हार का ठीकरा पूनिया पर फूटेगा?

बिल्कुल नहीं। गुटबाजी को जिम्मेदार माना जाएगा। स्टार प्रचारकों की सूची में वसुंधरा राजे के होने के बावजूद वे एक बार भी प्रचार के लिए धरियावद और वल्लभनगर नहीं गईं। गुलाबचंद कटारिया ने धरियावद में अपने समर्थक को टिकट नहीं देने से दूरी बनाए रखी। भाजपा के स्टार प्रचारकों ने दूरियां रखीं।

5. क्या बीजेपी नेताओं के प्रयोग पर सवाल उठेंगे?

हां, बीजेपी के वर्तमान में प्रदेश स्तर के नेताओं पर सवालिया निशान लगेगा। धरियावद में पूर्व विधायक गौतमलाल मीणा के पुत्र कन्हैयालाल मीणा का टिकट बीजेपी ने काटा। इसका नुकसान धरियावद में हुआ। वल्लभनगर में भी सबसे बड़े दावेदार उदयलाल डांगी को टिकट नहीं दिया गया और उन्होंने नुकसान पहुंचाया।

6. वसुंधरा राजे को साइड लाइन करने के कारण भी क्या भाजपा को हार का सामना करना पड़ा?

हां, उप चुनाव में बीजेपी का पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को साइड लाइन करना महंगा पड़ा। धरियावद पर कन्हैयालाल मीणा और वल्लभनगर पर रणधीर सिंह भींडर को वसुंधरा राजे को टिकट दिलाना चाहती थीं। मगर उन्हें दूर रखने के लिए दोनों को टिकट नहीं दिए गए। ऐसे में अब इन परिणामों के बाद वसुंधरा बीजेपी में और मजबूत होगी। मैसेज जाएगा कि वसुंधरा के बिना राजस्थान में बीजेपी की जीत इतनी आसान नहीं।

7. क्या हनुमान बेनीवाल ने भाजपा को सबक सिखाया है?

RLP का BJP से गठबंधन टूटने के बाद लगातार दो उप चुनावों में जिस तरह से आरएलपी ने भाजपा को नुकसान पहुंचाया है, इससे साबित हो गया है कि आगामी चुनावों में बड़ी चुनौती के रूप में उभरेगी। गठबंधन टूटने के बाद बेनीवाल ने सबक सिखाने की बात कही थी, वह लगातार दिख रही है।

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