बीकानेर/ गायों से इतना प्यार कि पुकारते हैं नाम से

बीकानेर/ गायों से इतना प्यार कि पुकारते हैं नाम से

हिन्दू धर्म में गाय को बेहद महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उसे मां का दर्जा दिया गया है। कई व्रत त्योहारों के दौरान उसे पूजा जाता है। गाय के इसी महत्व को सुरक्षित और संरक्षित बनाए रखने के लिए प्रयासरत है हनुमानगढ़ जिले के एक अधिकारी। ऐसे अधिकारी जिसे गाय से प्रेम है और उन्होंने गायों को नाम भी घर के बच्चों की तरह दिए हैं। आलम यह है कि जिस किसी गाय को वे आवाज देते हैं गाय दौड़ती हुई उनके पास चली आती है। ये अधिकारी है नोहर कृषि उपज मंडी समिति के सचिव विष्णुदत्त शर्मा।
पैसा कमाना नहीं, गाय बचाना है उद्देश्य
शर्मा बताते हैं कि उनका उद्देश्य गाय से पैसा कमाना नहीं है, वे गाय को बचाना चाहते हैं और इसकी क्वालिटी मजबूत करना चाहते हैं। इसी को ध्यान में रखकर करीब बीस वर्ष पहले गाय पालना शुरू किया। शुरुआत से अब तक गायों को पालते हैं। उन्हें बाड़े में खुला रखते हैं जिससे कि कोई भी बछड़ा आसानी से अपनी मां के दूध से पेट भर सके। वे बताते हैं कि उनका उद्देश्य गाय को बचाना है। गाय का दूध यदि उसके बछड़े पिएंगे तो वे मजबूत होंगे और अच्छा गोवंश तैयार हो सकेगा। वे बताते हैं कि उन्होंने गाय का दूध कभी बेचा नहीं है।
गाय पहचानती है नाम
वे बताते हैं कि उनके यहां गाय के नाम गोपाल,कान्हा, गजानन, गायत्री, गुन्नू, राधा और गौरी है। उन्होंने इन्हें ये नाम इसलिए दिए हैं कि उनसे जुड़ाव हो और वे खुद का नाम पहचानने लगे। वे बताते हैं कि इनमें गोपाल और कान्हा नंदी है। गजानन बछड़ा है , गायत्री और गौरी गाय हैं तथा गुन्नू और राधा बछिया है। उन्होंने बताया कि इसके अलावा गणेश और गिरिराज दो नंदी और थे जिन्हें जयपुर जिले की घासीपुरा गौशाला में पिछले वर्ष भेट किया गया। जिससे गाय को कृत्रिम गर्भाधान के नुकसान से बचाया जा सके। वे बताते हैं कि ये गाय अपना नाम पहचानती हैं और आवाज लगाने पर दौड़ी चली आती है।

गौ उत्पाद बनाने के लिए देते हैं प्रशिक्षण
पंडित शर्मा गाय ही नहीं नंदी भी पालते हैं। उनका कहना था कि अच्छे नंदी होंगे तो गाय भी अच्छी क्वालिटी की तैयार होगी। वे इसके अलावा गाय पालने, गोबर और गोमूत्र के अनेक उत्पाद बनाकर गौशालाओं को इसका प्रशिक्षण देने, गाय के गव्यों के उत्पाद बनवाकर उनकी मार्केटिंग में भी सहयोग कर रहे है।

बीस वर्ष पहले जागृत हुआ गौप्रेम
वे बताते हैं कि बीस वर्ष पहले उनका यह गौप्रेम जागृत हुआ। उन्होंने एक बछड़ी से शुरुआत की। अभी उनके पास सात गोवंश है। वे बताते हैं कि वे जयपुर के जाेबनेर इलाके में आसलपुर के रहने वाले हैं। सरकारी सेवा में भीलवाड़ा और अलवर में भी रहे। जहां रहते वहां गोवंश को भी साथ ले जाते। बहुत से नंदी गोवंश की अच्छी किस्म के लिए उन्हाेंने गोशालाओं को भी दिए।

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