वोकल फोर लोकल: कागजी मंत्र नहीं फूंक सका घरेलू कारोबार में जान

वोकल फोर लोकल: कागजी मंत्र नहीं फूंक सका घरेलू कारोबार में जान

खुलासा न्यूज,बीकानेर। कोरोना की मार से कराह उठे घरेलू व्यवसाय में जान फूंकने का ‘वोकल फोर लोकलÓ महज कागजी मंत्र साबित हुआ है। नारों में भले ही यह जुबां पर है, लेकिन हकीकत का प्रोत्साहन अभी कोसों दूर नजर आता है। कोरोना की विदाई के बाद भी पलायन का दर्द इसकी सच्चाई बयां करता नजर आता है। अधूरी योजना और धरातल पर आधे प्रयासों के बीच यह नारा ‘जुबानी प्रयासों से कतई आगे नहीं बढ़ सका है।कोरोना के दूसरी लहर में जब महामारी चरम पर थी तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आपदा में अवसर खोजने के लिए ‘वोकल फोर लोकल का मंत्र दिया। इसका अर्थ था, न केवल स्थानीय उत्पाद खरीदें, बल्कि उन्हें बढ़ावा भी दें। राजस्थान में एग्रो आधारित उद्योग, पर्यटन, हस्तशिल्प, बुनकर एवं दस्तकारी आदि से लाखों परिवार पल रहे हैं। इनसे जुड़े व्यवसायियों, कामगारों एवं श्रमिकों से इसकी हकीकत जानने के लिए बात की तो उनका दर्द जुबां पर आ गया। ‘वोकल फोर लोकल शुरूआती दौर में ही उम्मीद के साथ ट्रेंडिंग नारा बना, लेकिन जमीनी सच्चाई एकदम जुदा नजर आती है। यह मंत्र घरेलू व्यवसाय में जान नहीं डाल पाया। प्रदेशभर में इस पर डेढ़ साल में कोई ठोस काम नहीं हुए। बुनिदादी ढांचे में निवेश, बेहतर वातावरण, गांव-गांव कौशल विकास के साथ प्रौद्योगिकी व नवाचार को अपनाने और प्रोत्साहन देने के कागजी क्रियान्वयन के अलावा कोई सार्थक पहल धरातल पर नहीं दिखती। हालात सामान्य होने के बाद फिर से पलायन करते हुए लोगों को ‘वोकल फोर लोकलÓ स्वर मुंह चिढ़ा रहा है। एग्रो और हैण्डीक्रॉफ्ट व्ययवसाय से जुड़े लोग मानते हैं कि कोरोना के बाद अब तक स्थितियां नहीं सुधरी हैं। इसलिए पुख्ता तौर पर कह सकते हैं कि नारा महज बातों और बयानों में ही है।

Join Whatsapp
खबरें और विज्ञापन के लिए इस नंबर पर व्हाट्सएप करें- 76659 80000 |खबरें और विज्ञापन के लिए इस नंबर पर व्हाट्सएप करें- 76659 80000 |