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गणगौर स्पेशल: 450 साल से ज्यादा दोनो गवरें नहीं देख पाती है एक-दूसरे का मुंह, पुरूष दौड़ाकर ले जाते है गणगौर, निकलेगी शाही सवारी

बीकानेर. बीकानेर में करीब 450 साल से ज्यादा दोनों गवरें एक दूसरे का मुंह नहीं देख पाती है। एक तरफ तो जूनागढ़ किले से शाम 6 बजे शाही सवारी निकलेगी। इस दौरान गाजे-बाजे के साथ राजशाही वेशभूषा में गढ़ के कर्मचारी भी शामिल होंगे। शाही सवारी 6 बजे जूनागढ़ से निकलती है और 6.30 बजे चौतिना कुआं पर पानी पिलाने की रस्म निभाई जाती है वहीं शहर के परकोटे से भादाणियों की गणगौर भी पानी पीने के लिए चौतिना कुआं आती है। इनमें सबसे पहले भादाणियों की गणगौर पानी पीने के लिए चौतिना कुआं आती है। जूनागढ़ की शाही सवारी जैसे ही पब्लिक पार्क के तीनों गेट के पास पहुंचती है और ढोल नगाड़ो की आवाज भादाणियों की गणगौर के कानों पर पहुंचती है तो वैसे ही पुरूष इस गणगौर अपने सिर पर तुरंत भगाकर ले जाते है। इस चौतिना कुआं पर करीब 400 से 500 गणगौर पानी पीने के लिए आती है। भादाणियों की गणगौर एकमात्र ऐसी गणगौर है जो जूनागढ़ की शाही गणगौर को देखकर इतनी सारी गणगौर में से निकलकर वापिस भाग शहर की ओर भाग जाती है। मजे की बात है कि भादाणियों की गणगौर शाही गणगौर को पीछे से देखती रहती है। रेलवे फाटक बंद होने के दौरान भी गणगौर को रेलगाड़ी के ऊपर से कूदाकर कोटगेट के अंदर पहुंचाया जाता है। कोटगेट के अंदर पहुंचने के बाद डीजे, रथ, ढोल ताशों के साथ खोल भराई करके शाम को भादाणियों की प्रोल पहुंचती है।

जस्सूसर गेट के अंदर श्री नृसिंह मंदिर पंचायत ट्रस्ट परिसर में बने पुराने कुएं पर बाली गवर को पानी पिलाने की रस्म निभाने की तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा चुका है। जगह की सफाई कर कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारियां सौंपी गई है। हर साल जूनागढ़ से शाही गणगौर की सवारी निकलती है। जहां चौतीना कुएं पर पानी पीने की रस्म निभाई जाती है। गणगौर उत्सव के दौरान दो दिनों तक जस्सुसर गेट के अंदर मेला भरा जाएगा। धूलंडी के दिन से चल रही बाली गवर की पूजा अब अंतिम चरण में है। दो दिन तक बाली गवर को कुएं पर पानी पिलाने, गवर संभालने की परंपरा का निर्वहन किया जाएगा।

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