अर्जुनराम की जीत……..? - Khulasa Online अर्जुनराम की जीत……..? - Khulasa Online

अर्जुनराम की जीत……..?

अब ‘ऊंट की करवटÓ पर निर्भर
बीकानेर।
महाभारत में श्रीकृष्ण सारथी बनकर रणभूमि में अर्जुन के साथ थे। लेकिन राजस्थान का एक जिला ऐसा भी है जहां इस बार अर्जुन का मुकाबला स्वयं कृष्ण के पर्याय मदनगोपाल से है और इस कर्मयुद्व में जीत किसकी होगी। इसक ा फैसला तो बीकानेर क्षेत्र की जनता ने कर दिया है। जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा, हालांकि इसका खुलासा तो आगामी 23 मई को होगा परन्तु मतदाताओं की चुप्पी और मतदान प्रतिशत ने प्रत्याशियों की नींद उड़ा दी है। यहीं नहीं जिस तरह पिछले चुनाव के मुकाबले मतदाताओं की संख्या बढ़ी और जो वोटिंग हुई है,उसको देखते हुए जीत-हार का गणित गड़बड़ाने की स्थिति में आ गया है। विशेषतौर से ग्रामीण क्षेत्रों में मतदाताओं का उदासीन रवैया तथा शहरी क्षेत्र में जमकर मतबारिश से जीत हार का अंदेशा तय सा माना जा रहा है। यह ठप्पा ऐसी स्थिति में और गहरा हो जाता है जब नोखा, डूंगरगढ़ व कोलायत में मतदान प्रतिशत काँग्रेशियों की उम्मीद से बेहद कम हुआ…चूंकि भाटी की बगावत को संजीवनी बूंटी मानकर चलने वाली मदन गोपाल टीम कुछ हैरान नजर आ रही है। आखिरकार भाजपा के परंपरागत वोटर बेशक भाटी की बात को टाल नहीं सकते लेकिन शायद केंद्रीय नेतृत्व के विरोध में मतदान करना उनके बस की बात नहीं थी….
कशमकश की इस स्थिति में शायद न्यूट्रल रहने का मूड बना चुका एक बड़ा धड़ा टीम मदन के लिए चिंता का विषय बन गया।
बीजेपी के कार्यकर्ता जहां बड़ी जीत मानकर अतिआत्मविश्वासी बनते नजर आ रहे हैं वहीं न्यूट्रल समीकरणवादियों फैशला अति उत्साही टीम अर्जुन को तकरीबन 1 लाख वोटों की बढ़त तय करता है।
चूंकि 2014 की जीत की तुलना में यह जीत ज्यादा खुशी मनाने की नैतिक इजाजत नहीं देती क्यों कि 3 मई की प्रधानमंत्री की सभा मे उमड़ी भीड़ से साफ है कि वोट बैंक केवल टीम अर्जुन से नाराजगी की वजह से कम रहा
ये है जीत का गणित
सर्वे में सामने आया है कि टिकट वितरण से विरोध का दंस झेल रहे अर्जुनराम मेघवाल को पीएम नरेन्द्र मोदी की रैली ने संजीवनी दी है। इसके साथ-साथ लगातार विरोध ओर काले झंडे दिखाने की घटनाओं ने अपनी जाती में अर्जुन राम को अपेक्षाकृत अधिक मजबूत कर दिया है। बताया जा रहा है कि लोकसभा क्षेत्र में करीब साढ़े चार लाख अनुसूचित जाति मतदाताओं में से अर्जुन के पक्ष में आधे से अधिक मतों का धु्रवीकरण हुआ माना जा रहा है। वहीं ओबीसी वर्ग का रूझान भी अर्जुन के लिए सकारात्मक रहा है। यहीं नहीं भाजपा के परम्परागत वोटों का बिखराव भी कुछ हद तक रुका है। ऐसे हालातो को आधार मानकर भाजपा प्रत्याशी अर्जुनराम अपनी जीत तय मान रहे है। हालात ये है कि जहां भाजपा के विधायक है वहां जिस तरह की वोटिंग हुई है। उसने कहीं न कहीं भाजपा को जमीनी हकीकत से भी रूबरू करवाया होगा। उधर कांग्रेस के प्रत्याशी मदन मेघवाल अपनी जाति में वोटों के बंटने और अल्पसंख्कों के वोटों के सहारे चुनावी बैतरणी पार लगाने के सपने संजोए हुए है। किन्तु बीकानेर पूर्व व पश्चिम के शहरी विधानसभा क्षेत्र में पैंसठ प्रतिशत से उपर मतदान होना कांग्रेस के लिए चिंता का विषय हो सकता है। उधर कोलायत व नोखा में वोट कम पडऩे से कांग्रेस खेमे में हलचल मचाने वाली खबर से कम नहीं है।
दोनों प्रत्याशियों की समानता
बीकानेर संसदीय लोकसभा चुनावी रण में जूझ रहे दोनों नेताओं में काफी समानता भी है। पहली समानता यह है कि ये दोनों स्थानीय है। दूसरी खास बात यह है कि ये दोनों ही यहां बड़े वोट बैंक वाले समुदाय से है। इतना ही नहीं दोनों मौसेरे भाई होने के कारण नाते-रिश्तेदारी में दोनों की सैंधमारी भी लगभग बराबर है। इसके अलावा दोनों प्रत्याशी सेवानिवृत अधिकारी है।
कौन किसके साथ और कौन नहीं
ें इस सीट के लिये हुए मतदान में जहां भाजपा प्रत्याशी अर्जुनराम को पीएम मोदी का सहारा रहा। लेकिन अर्जुनराम को अपनों से ही दो दो हाथ करने पड़े। तो दूसरी ओर कांग्रेस के मदनगोपाल को अर्जुन विरोधी से
आस रही। किन्तु उनके अपने भी ज्यादा दमखम नहीं दिखा पाए। कांग्रेस ने जिनको स्टार प्रचारक बनाया वे अपने आप को वास्तव में स्टार प्रचारक समझ कर अन्य जिलों में प्रचार करते नजर आए। मजे की बात
है कि कांग्रेस के इन स्टार प्रचारकों का उन लोकसभा क्षेत्रों में किसी प्रकार का कोई प्रभूत्व नहीं था। इस चुनाव में मदनगोपाल की सेना के प्रमुख सिपाही कहे जाने वाले सभी प्रमुख कांग्रेसी नेता भूमिगत तरीके से चुनाव प्रचार करने में लगे रहे।
दिखावटी एकजुटता
2014 के लोकसभा चुनाव की तुलना में यह चुनाव बेशक बदला-बदला सा है लेकिन भाजपा प्रत्याशी के जीत के दावे के बीच जानकारों, यहां तक की पार्टी के लोग भी जीत को लेकर असमंजस में हैं। जहां गत चुनाव में भाजपा ने एकजुट होकर चुनाव लड़ा। जिसके फलस्वरूप भाजपा प्रत्याशी को 5,84,952 (62.84),कांग्रेस के शंकर पन्नू को 2,76,853 (29.74) को वोट मिले। वहीं इस चुनाव में उपरी तौर पर तो भाजपाई एक थे। लेकिन अंदर ही अंदर भाजपा नेता केन्द्रीय मंत्री की कारसेवा करने की रणनीति बना चुके थे। जिसका नतीजा सामने है कि अनूपगढ़ को छोड़कर कही भी बम्पर मतदान नहीं हो पाया, जो कही न कही खतरे की घंटी बजा रहा है। इन सबके बीच लोकसभा के सांसद बनने का ताज किसके सिर बंधेगा इसे लेकर असमंजस की स्थित बरकरार है। सभी को 23 मई को होने वाली मतगणना का ही इंतजार है।



error: Content is protected !!
Join Whatsapp 26