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…तो क्या सचिन बनेंगे प्रदेश अध्यक्ष?

खुलासा न्यूज। पिछले लंबे समय से गहलोत सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले सचिन पायलट को एक बार फिर कांग्रेस हाईकमान सुलह के रास्ते पर लाने में कामयाब होने का दावा कर रहा है। अशोक गहलोत और सचिन पायलट की चुप्पी के बीच सियासी सीजफायर की घोषणा हो गई है।सचिन पायलट के आंदोलन के अल्टीमेटम से ठीक पहले कांग्रेस हाईकमान से जुड़े नेताओं ने उन्हें मनाने और गहलोत-पायलट के फिर एकजुट होने का दावा किया है। जुलाई 2020 से लेकर अब तक यह तीसरा मौका है, जब पायलट से सुलह हुई है, लेकिन उनकी मांगें अब भी जस की तस हैं। ऐसे में इसे परमानेंट सुलह नहीं माना जा रहा। कल देर रात कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के घर पर हुई बैठक के बाद केसी वेणुगोपाल ने सुलह की घोषणा भी इशारों में की, न कोई फॉर्मूला बताया, न गहलोत और पायलट ने कोई बयान दिया। कांग्रेस हाईकमान के लिए राहत वाली बात यह है कि विधानसभा चुनाव से पहले राजस्थान जैसे राज्य में रोज झगड़ों से होने वाली किरकिरी पर कुछ विराम लगेगा।

क्या अब कांग्रेस में गहलोत-पायलट गुट की बजाय गहलोत-पायलट जोड़ी दिखेगी?

अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सियासी मतभेद बहुत आगे बढ़ चुके हैं। दोनों के बीच तल्खियां नेक्स्ट लेवल पर पहुंच चुकी हैं, ऐसे में राजनीतिक जानकार इसे टेम्परेरी सियासी सीज-फायर के तौर पर देख रहे हैं। हाईकमान के दबाव और विधानसभा चुनाव सिर पर होने की वजह से गहलोत और पायलट की अपनी-अपनी सियासी मजबूरियां थीं, जिनकी वजह से सुलह का रास्ता तैयार हुआ। दिमाग से हुए इस समझौते में दिल मिलने की उम्मीद कम ही है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि हाईकमान ने दखल देकर कुछ समय के लिए समझौता भले करवा दिया, लेकिन पायलट की सियासी मांगों को भी चुनाव के वक्त पूरा करना आसान नहीं है। गहलोत भी विधायकों के समर्थन के भरोसे कई मुद्दों पर अड़े हुए हैं।

इतने विरोध के बाद भी पायलट पर कार्रवाई नहीं, हाईकमान क्या संकेत देना चाहता है?

पायलट ने जब 11 अप्रैल को अनशन किया, उस वक्त प्रभारी ने इसे पार्टी विरोधी गतिविधि बताया था। अनशन के बाद पायलट को नोटिस देने की तैयारी थी, लेकिन हाईकमान ने कर्नाटक चुनावों की वजह से इसे रुकवा दिया। 11 मई से जब पायलट ने पेपर लीक और बीजेपी के करप्शन पर यात्रा निकाली और गहलोत को घेरा तो प्रभारी के सुर बदले हुए थे। पायलट विरोधी खेमा यात्रा और अल्टीमेटम के बाद उन्हें नोटिस देकर कार्रवाई का दबाव बना रहा था, लेकिन वह कामयाब नहीं हुआ। अनशन, यात्रा और फिर आंदोलन के अल्टीमेटम के बाद भी उन्हें बुलाकर बातचीत करना इस बात का संकेत है कि हाईकमान पायलट को भी साधकर रखना चाहता है। सचिन पायलट को अनशन के बाद मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम कमलनाथ ने मनाया था, लेकिन फिर उन्होंने यात्रा निकाली और अल्टीमेटम दिया। हाईकमान की रणनीति राजस्थान में गहलोत और पायलट, दोनों को तवज्जो देकर रखने की है।

पायलट की पुरानी मांगें जस की तस हैं तो इस सुलह में पायलट को क्या मिला? कौन मजबूत हुआ?

सचिन पायलट की नई और पुरानी मांगें अब भी जस की तस हैं। पायलट 25 सितंबर को विधायक दल की बैठक के बहिष्कार के मामले में तीन नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग लंबे समय से कर रहे हैं। यात्रा के बाद 15 मई की सभा में पायलट ने 15 दिन का अल्टीमेटम देते हुए बीजेपी राज के करप्शन की जांच के लिए हाईपावर कमेटी बनाने, आरपीएससी को भंग कर पुनर्गठन करने और पेपर लीक से प्रभावित बेरोजगारों को मुआवजे की मांग की थी। सचिन पायलट को नई और पुरानी मांगों को पूरा करने का हाईकमान से केवल आश्वासन मिला है। इससे पहले भी पायलट को कई बार आश्वासन मिल चुके हैं, लेकिन वे पूरे नहीं हुए। अगस्त 2020 में बगावत के बाद हुई सुलह के समय केसी वेणुगोपाल ने सुलह के फॉर्मूले का लिखित आदेश जारी किया था। उस वक्त की भी कुछ मांगें ही पूरी हुईं। 25 सितंबर की घटना के जिम्मेदारों पर एक्शन नहीं होने पर नाराज पायलट को राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से पहले भी केसी वेणुगोपाल ने मनाया। उस वक्त पायलट और गहलोत को असेट बताकर झगड़ा टलवा दिया।

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