
सुशीला कंवर का महापौर कार्यकाल क्यों रहा असफल, समझें एक-एक पॉइंट से






खुलासा न्यूज, बीकानेर। (पत्रकार, कुशाल सिंह मेड़तिया की रिपोर्ट) नगर निगम बीकानेर में जब बीजेपी का बोर्ड बना और सुशीला कंवर राजपुरोहित एक महिला के रूप में महापौर चुनी गई, तब शहर की जनता को विकास के मामले में काफी उम्मीदें थी, लोगों में आस जगी थी कि वर्षों से अटकें काम अब हो जाएंगे, समस्याओं का समाधान होगा, महिलाओं से जुड़ी समस्याओं का समाधान होगा, लेकिन ये सारी उम्मीदे धरी की धरी रह गई। इसका बड़ा कारण यह रहा है कि महापौर ने शहर की समस्याओं पर ध्यान देने की बजाय अपनी राजनीति को चमकाने में रखा। कभी किसी से विवाद लिया तो कभी किसी से। सुशीला कंवर सुर्खियों में तो रही, लेकिन यह सुर्खियां केवल और केवल विवादों में रहने वाली थी, ना की शहर के विकास कार्यों को लेकर। भलें ही विकास न होने की वजह सुशीला कंवर द्वारा पूर्व सरकार को ठहराया जा रहा हो, कहा जा रहा है कि सरकार ने और यहां के पूर्व मंत्री ने काम करवाने नहीं दिया। अगर ऐसा ही है तो यह सुशीला कंवर का महापौर के रूप में सबसे बड़ा फैलियर कार्यकाल माना जाएगा, क्योंकि अगर ऐसा था तो फिर महापौर अपने अधिकार व शहर की जनता के लिए क्यों नहीं सड़कों पर उतरी, क्योंकि नहीं एक ही दिन शहर की जनता को साथ लेकर आंदोलन किया, क्यों नहीं व्यवस्था से लड़ी। केवल अधिकारियों से विवाद का इनका नाता रहा। नगर निगम में आयुक्त गोपालराम बिरदा, उपायुक्त हंसा मीणा के साथ ट्यूनिंग नहीं बिठाकर विवाद को बढ़ावा ही दिया गया, पुलिस थानों तक गए। जिसका नतीजा यह रहा कि शहर के अधिकांश विकास काम ठप हो गए। हालांकि इनके कार्यकाल का अधिकांश समय विपक्ष में बीता, लेकिन जनप्रतिनिधि व शहर का प्रथम नागरिक होने के नाते सुशीला कंवर की यह जिम्मेदारी बनती थी कि भले ही सरकार के नुमाईंदे विकास में अड़चन बन रहे हो तो उस अड़चन का ईलाज कैसे किया जाए, उसका ईलाज भी ढूंढना था, लेकिन महापौर अपने इगो पर अड़ी रही। हर दिन विवाद हुआ, आरोप-प्रत्यारोप का दौर चले, इन सबके बीच मारा गया तो शहर वह नागरिक जो इस उम्मीद में बैठा था कि उसकी घर के आगे सड़क बनेगी, नाली बनेगी, सीवरेज की लाईन बिछाई जाएगी, रोड लाईट लगेगी। इनके कार्यकाल में इस प्रकार की समस्याओं को लेकर पहुंचने वाले फरियादों की लंबी-लंबी कतारे देखी गई, लेकिन काम नहीं हुए, मायूस होकर ही वापिस घर लौटना पड़ा। शहर में हालात बदत्त हो गए। कहीं, रोड नहीं तो कहीं रोड़ होते हुए उस पर बड़े-बड़े मौत को न्यौता देते गड्ढे बने रहे। कहीं सीवरेज नहीं तो जहां सीवरेज थी, वो बार -बार ओवरफ्लो हो रही थी, जिसकी कोई सुनवाई नहीं थी। इसी तरह मूलभूत सुविधाओं को लेकर वार्डवासियों को तरसना ही पड़ा। गहलोत सरकार के कार्यकाल के अंतिम दिनों में कांग्रेस ने जरूर काम करवाए, जो एक बार दिखा, लेकिन अब वो भी दिख नहीं रहा। मात्र लिपापोती हुई, जिसका खामियाजा आज शहर की जनता भुगत रही है।
सुशीला कंवर राजपुरोहित के कार्यकाल में कुछ काम जरूर हुए है, लेकिन वो ऊंट के मुंह में जीरो के समान है। शहर के प्रमुख बाजारों में महिलाओं के लिए शौचालय का बहुत पुराना मुद्दा था, जिस पर सुशीला कंवर द्वारा बड़े-बड़े दावे किये गए, लेकिन पूरे कार्यकाल में नहीं बना पाई। अब कार्यकाल के अंतिम दिनों में पिंक बसे लगाई है, वो भी मात्र दो। जो पर्याप्त नहीं है। हालांकि ये बसे भी कितने दिन चलेगी, इसका कोई पता नहीं। अपने अंतिम दिनों में महापौर ने यह काम कर वाहवाही लूटने का प्रयास किया है, परंतु शहर की जनता इन सबको खुली आंखों से देख रही है और महसूस कर रही है।
इसके अलावा शहर के विकास के मुद्दों को लेकर जो पार्षदों के साथ साधारण सभाओं की बैठकें होनी चाहिए थी, मात्र एक ही बैठक हो पाई, नतीजा पार्षद अपने मुद्दे सार्वजनिक तौर पर बता ही नहीं पाए। शहर में विकास नहीं होने का यह भी एक बड़ा कारण रहा।
इसी तरह, स्वच्छता की रैंकिंग में कभी सुधार नहीं हुआ। सुधार होने की बजाय रैंकिंग घटती ही गई। क्योंकि शहर की साफ-सफाई पर प्रॉपर तरीके से काम ही नहीं हुआ। इसका बड़ा कारण यह रहा कि महापौर ने इस संबंध में कभी रुचि ही नहीं दिखाई, एक बार भी फिल्ड में नजर नहीं आई। सारा काम ठेकेदारों के भरोसों छोड़ दिया।
वहीं, विपक्ष के पार्षदों के अलावा अपनी ही पार्टी के पार्षदों से कभी इनकी ट्यूनिंग बैठी। हालांकि कांग्रेस के दो धड़ों में बंटे पार्षदों में से एक धड़े के पार्षदों को साधने में सुशीला कंवर जरूर सफल रही। जिनके वार्डों में बकायदा काम भी हुए। लेकिन अपनी पार्टी के पार्षदों को इस पूरे कार्यकाल में खाली हाथ रहना पड़ा। जिसका पार्षदों में विरोध भी कई बार देखने को मिला।
शहर के ड्रेनेज सिस्टम में सुधार के बड़े-बड़े दावे किये गए, लेकिन समाधान के लिए कोई कदम नहीं बढ़ाया गया। करमीसर डंपिंग यार्ड को स्थानांतरण करवाना था, लेकिन आज भी वहां से उठते धुएं से बड़ी आबादी परेशान है। लोग सिस्टम को जिम्मेदार ठहरा रहे है, लेकिन लोगों की समस्यों का समाधान नहीं हुआ। इसी तरह सुजानेदसर में गंदे पानी की निकासी का स्थाई समाधान नहीं हो पाया। लोग परेशान होते रहे और आज भी हो रहे है, परंतु एक बार भी महापौर ने वहां जाकर समस्या को नहीं जाना।
महिला सशक्तिकरण की बड़ी-बड़ी बातें हुई, लेकिन महिलाओं के रोजगार हेतु कोई बड़ा कदम नहीं उठाया। एक-दो फैसले लिये गए, जो धरातल पर सफल नहीं हो पाए।
इस तरह अनेक समस्याएं शहर की थी, जो आज भी कायम है।
नगर निगम के ढांचे में कोई सुधार नहीं, जबकि इसके सुधार के लिए कई मर्तबा प्लान बने, बड़ी-बड़ी बातें हुई, लेकिन धरातल पर लागू नहीं कर पाए।
नया यूडी टैक्सी लागू हो, इसके लिए कोई प्रयास नहीं किया गया, जिसके कारण सरकार को बड़ा नुकसान हो रहा है। शहर में कई ऐसे काम संचालित होते रहे, जो नियमों के हिसाब से गलत है, जिनके खिलाफ एक्शन लेने में महापौर कार्यवाही सक्षम थी, लेकिन एक्शन नहीं लिया गया। जिसके कारण धड़ल्ले के साथ अवैध काम होते रहे। शहर की आवारा पशुओं की समस्या शहर के लिए नासूर बन चुकी है, हर रोज हादसे हो रहे है, कई लोगों ने अपनी जान गंवाई, परंतु महापौर रहते सुशीला कंवर ने इस बड़ी समस्या पर ध्यान नहीं दिया।
इनके पूरे कार्यकाल में लोगों की यह भी शिकायत रहती थी कि सुशीला कंवर ने खुद कभी फोन रिसीव नहीं किया, रिसीव करना तो दूर की बात, इनके नंबर भी लोगों के पास नहीं थे। लोग फोन पर अपनी समस्या इनके परिजनों को बताते थे, जिन्होंने समाधान करने की बजाय हमेशा इग्रोर किया। जिनको पर्सल असिस्टें रखा, उन्होंने भी अपने पर्सन या निजी लोगों को महत्व दिया। इस तरह अनेक काम थे, जिनको महापौर रहते सुशीला कंवर नहीं करवा पाई। यही उनके असफल कार्यकाल की वजह बनी।


