
‘समता के पावन प्रांगन में खौफजदा क्यों बेटियां






मिनख नीं रैया थे फगत हवस राखस हो
बीकानेर। नगर की काव्य परम्परा में नई पहल एवं नवाचार के साथ प्रज्ञालय संस्थान एवं राजस्थानी युवा लेखक संघ द्वारा प्रतिमाह होने वाले आयोजन ‘कवि बनाम कविता की 9वीं कड़ी ‘बेटी विषय पर केन्द्रित रही। नालन्दा पब्लिक सीनियर सैकण्डरी स्कूल के सृजन-सदन में आयोजित यह आयोजन राजस्थानी के वरिष्ठ कवि-कथाकार कमल रंगा की अध्यक्षता, पाली-सोजत के वरिष्ठ साहित्यकार रशीद गौरी एवं मारवाड़ के कवि शब्बीर सागर के विशिष्ट आतिथ्य में हुआ।
इस 9वीं कड़ी में काव्य की हिन्दी, उर्दू एवं राजस्थानी काव्य धारा में ‘बेटी से जुड़ी मानवीय पीड़ाओं एवं उसकी संवेदना-वेदना को शब्दों के माध्यम से भावनात्मक अर्थवत्ता देते हुए एक से एक उम्दा कविता, गीत, गजल, दोहे आदि की प्रस्तुति में ‘बेटी को लेकर वर्तमान हालातों एवं स्थितियों के चित्रण से यह काव्यमय वातावरण खासा गंभीर और चिंतामग्न हो गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पाली-सोजत के वरिष्ठ साहित्यकार रशीद गौरी ने कहा कि ऐसे आयोजन काव्य साधना को समर्पित तो है हीं वहीं भाषायी समन्वय के लिए अपनी अलग पहचान रखते हैं। इसके लिए आयोजक व संस्थान साधुवाद के पात्र हैं। इस अवसर पर उन्होंने ‘बेटी को केन्द्र में रखकर बहुत ही भावनात्मक रचना ‘हमें तो बस फकत दोस्तों/मुहब्बत के चरागों से रोशन हिन्दुस्तान चाहिए पेश कर वाह-वाही लूटी। वहीं कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि मारवाड़ के वरिष्ठ कवि शब्बीर सागर ने अपनी रचना ‘अगर ईश्वर गरीब को बेटी देना/बेटी दे तो संग सोने की पेटी देना के माध्यम से दहेज प्रथा पर तीखा व्यंग्य पेश किया। इसी क्रम में अतिथि कवि अब्दुल समद राही ने अपनी रचना ‘मती मारो मा म्हनै कोख में/दुनिया में आवण दो के माध्यम से भ्रूण हत्या पर चिंता प्रकट की।
आयोजन की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि-कथाकार कमल रंगा ने कहा कि ‘बेटी जैसे समसामयिक और प्रासंगिक विषय के माध्यम से यह आयोजन सार्थक रहा। इस अवसर पर रंगा ने ‘बेटी को लेकर मानवीय और सामाजिक स्तर पर जो दुव्र्यवहार हो रहा है वह हमारे पौराणिक काल से वर्तमान दौर तक होता आ रहा है। इसी चिंता को लेकर उन्होंने अपनी नवीनतम राजस्थानी काव्य रचना ‘कांई थे मिनख नीं रैया/कांई थांरौ मिनखपणो खूटग्यौ/अबै तो थे फगत हवस राखस होÓ पेश कर बेटी की समग्र चिंता को रेखांकित किया।
प्रारंभ में इस अवसर पर बाहर से पधारे हुए कवि-शायरों रशीद गौरी, अब्दुल समद राही, शब्बीर सागर का सम्मान-स्वागत संस्थान के राजेश रंगा ने करते हुए आयोजन की महता को रेखांकित करते हुए कहा कि ‘बेटी विषय पर नई रचनाओं का वाचन आज की प्रासंगिकता है।
परवान चढ़ी काव्य धारा में वरिष्ठ शायर जाकिर अदीब ने ‘जिस्में ख़दशाह नहीं/बन जाएं पत्थर बेटियां पेश की तो वहीं शायर वली मोहम्मद गौरी ने अपनी ताजा गजल के शेर ‘राहत है घर की शान है इ”ात है बेटियां पेश कर बेटियों के मान-सम्मान की बात रखी। इसी क्रम में वरिष्ठ कवियत्री मनीषा आर्य सोनी ने अपने गीत-गजल ‘नाम निर्भया रख दिया डरना मेरा जारी है… पेश कर वर्तमान स्थिति को रेखांकित किया। कवि-शायर हनुमन्त गौड़ ने अपनी ताजा रचना ‘तेरे आने की आहट से मेरी दुनिया बदलती है पेश कर जीवन में बेटी के महत्त्व को उकेरा। तो शायर कासिम बीकानेरी ने अपनी ताजा गजल ‘जुल्म हद से बढ़े बेटियों पर तभी/मुस्कराती नहीं अब यहां बेटियां पेश कर वर्तमान भयावह स्थिति को पेश किया। शायर माजिद खाँ गौरी ने अपनी रचना ‘नजर की रोशनी दिल का उजाला है बेटी पेश की तो कवि कामेश्वर शुक्ल ‘तारक ने ‘मैं बेटी हूँ, सबसे इनायत है मुझको पेश की, वहीं राजस्थानी युवा कवि विप्लव व्यास ने ‘थारी धरा माँ अेक नांव म्हारौ भी पळकै पेश कर बेटी के महत्त्व को रखा। वरिष्ठ कवियत्री मधुरिमा सिंह ने अपनी रचना ‘समाज से बगावत कर मैंने दूसरी पुत्री को जन्म दिया पेश कर बेटी के महत्त्व को रखा वहीं कवि बाबूलाल छंगाणी ने ‘मुझे फक्र है कि मैं बेटियों का पिता हूँ एवं घनश्याम सिंह ने ‘स्वयं एक दिया जलाना होगा की प्रस्तुति दी। कवि नेमचंद गहलोत ने अपनी रचना ‘बेटी थूं बडभागणी रखी वहीं सिराजुद्दीन ने बेटी को केन्द्र में रखकर अपनी रचना का पाठन किया।
वरिष्ठ कवियत्री इन्द्रा व्यास ने अपनी नई रचना ‘समता के पावन प्रांगन में खौफजदा क्यों बेटियां प्रस्तुत कर बेटियों के विकृत हालातों को गंभीर स्वर दिए। कवि कैलाश टाक ने ‘यूं तो घर-घर जायी बेटियां पेश की तो कवि जुगल पुरोहित ने ‘बिटिया तू कितनी है प्यारी रखकर बेटी के लाड को रेखांकित किया। इसी क्रम में लोक कलाकार मदन गोपाल व्यास ‘जैरी ने सस्वर ‘बेटी अपणायत री खान पेश की। कवियत्री कृष्णा वर्मा, डॉ. प्रकाशचन्द्र वर्मा, डॉ. तुलसीराम मोदी, राजकुमार ग्रोवर ने अपनी रचनाओं के माध्यम से बेटी के महत्त्व को रेखांकित किया।
कार्यक्रम का संचालन शायर कासिम बीकानेरी ने किया। सभी का आभार संस्कृतिकर्मी शिवशंकर भादाणी ने ज्ञापित किया।


