कोरोना वायरस की वैक्सीन को लेकर क्यों उठ रहे हैं सवाल?

कोरोना वायरस की वैक्सीन को लेकर क्यों उठ रहे हैं सवाल?

पूरी दुनिया में कोरोना वायरस की वैक्सीन पर ट्रायल चल रहे हैं. इस समय सात वैक्सीन ह्यूमन ट्रायल के अंतिम चरण में हैं जिसमें सबसे आगे चीन निकलता दिखाई दे रहा है. हालांकि, तेजी से बनाई जा रही इन वैक्सीन की सुरक्षा को लेकर भी सवाल खड़े होने लगे हैं. ये भी कहा जा रहा है कि कई देश वैक्सीन के जरिए राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश कर रहे हैं.चीन का कहना है कि वो अपनी वैक्सीन को लेकर इतना आश्वस्त है कि उसे क्लिनिकल स्टडी के नतीजों का इंतजार करने की जरूरत नहीं है. चीन में अधिकारियों को  क्लिनिकल स्टडी के नतीजे आने के एक महीने पहले से ही वैक्सीन दी जा रही है. यहां पर सैनिकों, बिजनेसमैन और स्वास्थ्य क्षेत्र में काम कर रहे लोगों में इंफेक्शन का ज्यादा खतरा देखते हुए वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी पहले ही दी जा चुकी है. खबरें हैं कि चीन की ये वैक्सीन अब वहां ट्रांसपोर्ट और सेवा विभाग से जुड़े कर्मचारियों को भी जल्द दी जाएगी. इमरजेंसी में इस्तेमाल होने वाली इन वैक्सीन पर तरह-तरह के सवाल भी उठने लगे हैं. स्वास्थ्य सुरक्षा विशेषज्ञ और हॉन्ग कॉन्ग के सिटी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर निकोलस थॉमस ने कहा, ‘इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि बिना टेस्ट की हुई वैक्सीन सही तरीके से काम करेगी. इस वैक्सीन को लगवाने वाले लोग ये समझेंगे कि अब वो वायरस से सुरक्षित हैं, जबकि ऐसा सोचना और खतरनाक हो सकता है. ये अनजाने में जोखिम बढ़ाने वाला है.प्रोफेसर थॉमस ने कहा, ‘वैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल का मकसद इसके शॉर्ट और लॉन्ग टर्म रिस्क को कम करना होता है. बिना इसकी जानकारी के वैक्सीन लगाना किसी व्यक्ति को खतरे में डालने जैसा है.’हालांकि चीन की सरकार की तरफ से इस बात की ठीक-ठीक जानकारी नहीं दी गई है कि लोगों को कौन सी वैक्सीन दी जा रही है और अब तक कितने लोगों को वैक्सीन दी जा चुकी है. इससे लोगों के मन में ये भी सवाल उठ रहे हैं कि ये वैक्सीन लोग अपनी मर्जी से लगवा रहे हैं या उन्हें जबरदस्ती दी जा रही है. पिछले हफ्ते, पापुआ न्यू गिनी ने चीन से आने वाली फ्लाइट को इसलिए रद्द कर दिया था क्योंकि उसे यात्रियों को वैक्सीन दिए जाने की आशंका थी. पापुआ न्यू गिनी को डर था कि उसके स्थानीय लोगों पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है.हॉन्ग कॉन्ग यूनिवर्सिटी के महामारी विभाग के प्रमुख बेन काउलिंग ने कहा, ‘सामान्य तौर पर एक आबादी के लिए ये बेहतर है कि वहां ज्यादा से ज्यादा लोगों को वैक्सीन लगाई जाए. इससे कोरोना का प्रकोप कम होगा. सिर्फ कुछ लोगों को वैक्सीन देना काफी नहीं है और इससे सोशल डिस्टेंसिंग में किसी तरह की छूट नहीं दी जा सकती है.’वहीं, कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक यांगयांग चेंग का कहना है कि चीन की सरकार विज्ञान और तकनीक को देश हित में काम आने वाले एक उपकरण के तौर पर देखती है. उन्होंने कहा, ‘वैक्सीन की दौड़ जीतना सरकार की उपलब्धियों पर जोर देगा. ये दुनिया विरोधियों से भरी है और हम चीन के लोगों को खुद पर ही भरोसा करना होगा.’चीन अपनी वैक्सीन के जरिए कूटनीति की रणनीति पर भी काम करने की योजना बना रहा है. चीन सबसे पहले अपनी वैक्सीन फिलीपींस, कंबोडिया, लाओस, म्यांमार, थाईलैंड और वियतनाम जैसे दक्षिण पूर्व एशियाई देशों को देने का वादा कर चुका है.

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