बचत के लिये कौनसा विकल्प बेहतर एफडी या शेयर मार्केट ? जानते है इन्वेस्टमेंट एक्सपर्ट शंगारी से

बचत के लिये कौनसा विकल्प बेहतर एफडी या शेयर मार्केट ? जानते है इन्वेस्टमेंट एक्सपर्ट शंगारी से

खुलासा न्यूज,बीकानेर। पी एस इंवेस्टमेंट्स के इस नए आलेख में आपका स्वागत है। हरबार की तरह इस बार भी हम  पीयूष शंगारी से शेयर मार्केट की ज्ञानवर्धक गुफ़्तगू कर रहे हैं।पीयूष अपनी बात शुरू करते हुए कहते हैं, जब आप अपने रोजगार के माध्यम से किसी भी तरह की मासिक आमदनी कमाते हैं तो आप उसका कुछ हिस्सा अपनी बचत के लिए अवश्य रखते हैं। आमतौर पर हम यह उम्मीद करते हैं कि उसी बचत में से हम एक भाग को कहीं निवेश कर दें और वह निवेश किया हुआ भाग हमें अधिक से अधिक लाभ दिला सके।
जब कभी भी हम निवेश की बात करते हैं तो हमारे सामने दो तरह के चयन विशेष रूप से होते हैं। उनमें से पहला होता है फिक्स डिपाजिट जो कि हमारे माता-पिता भी हमें सबसे पहले सुझाते हैं और दूसरा जो चुनाव होता है वह होता है स्टॉक मार्केट का। तुलनात्मक रूप से फिक्स डिपाजिट का चुनाव अधिक आसान माना जाता है जबकि दूसरी और स्टॉक मार्केट में निवेश करने के लिए हमें थोड़ा सा जोखिम उठाना पड़ता है।

अपनी चर्चा को आगे बढ़ाते हुए पीयूष शंगारी कहते हैं कि आओ अब आपको दिखाता हूं की स्टॉक मार्केट बनाम फिक्स्ड डिपॉजिट के तुलनात्मक अध्ययन में कौन आगे निकलता है? पहले हम बात कर लेते हैं फिक्स्ड डिपॉजिट की, जिसे हम एफडी के नाम से भी जानते हैं। एफडी के रूप में निवेश आमतौर पर किसी बैंक के साथ किया जाता है तथा यह अन्य वित्तीय सेवा प्रदाता फर्म के साथ भी किया जा सकता है। एफडी के ऊपर निवेशक को एक तय ब्याज दर के अनुसार लाभ मिलता है और यह दर पहले से ही निश्चित की गई होती है, जिसकी घोषणा रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा की जाती है। आप चाहें तो यह ब्याज त्रैमासिक /अर्धवार्षिक/ वार्षिक रूप से प्राप्त कर सकते हैं।

दूसरी तरफ हमारे सामने जो चुनाव होता है वह है स्टॉक मार्केट इन्वेस्टमेंट। जिसका मतलब है आप किसी कंपनी के स्टॉक खरीद रहे हैं। प्रथम दृष्टया दोनों उत्पादों को देखकर ही हमें यह ज्ञात हो जाता है की दोनों के प्रकृति में कितना अंतर है। जहां बाजार के उतार-चढ़ाव का फिक्स्ड डिपाजिट के ब्याज पर कोई असर नहीं पड़ता, वहीं स्टॉक मार्केट इन्वेस्टमेंट के समय हमें अपनी निवेश रणनीति को बाजार उतार-चढ़ाव के अध्ययन के अनुसार ही बनाना पड़ता है।

शंगारी कहते हैं कि अगर आपको अपनी बचत के लिए इन दोनों चुनावों में से एक पर निर्णय लेना हो तो आपको उन तथ्यों को अवश्य देखना होगा जिनके आधार पर आप अपना निवेश करेंगे।कभी भी निवेश का मन बनाने से पहले हम जो आधार ढूंढते हैं उसमें सबसे पहला नाम आता है जोखिम का। किसी निवेश में कितना जोखिम उठाया जाए यह जानना थोड़ा मुश्किल जरूर होता है। कुछ निवेशक जोखिम उठाना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें यह आइडिया अच्छा लगता है जिसमें कहा जाता है कि जहां अधिक जोखिम होगा वहां लाभ के अवसर भी अधिक होंगे। अगर आप भी किसी ऐसे निवेशक को जानते हैं जो अपना लाभ बढ़ाने के लिए जोखिम बढ़ाने को भी तैयार हो तो ऐसा निवेशक स्टॉक मार्केट निवेशक की श्रेणी में जा सकता है। वहाँ आपका लाभ बाजार के उतार-चढ़ाव के अनुसार मिलता है और जोखिम का खतरा थोड़ा अधिक रहता है। जबकि दूसरी तरफ अगर हम देखें तो जो निवेशक बिल्कुल भी जोखिम उठाना नहीं चाहते और अपने निवेश के साथ सतर्कता बरतना चाहते हैं, वे निवेशक फिक्स्ड डिपॉजिट की तरफ आकर्षित होते हैं परंतु जहां निवेश में खतरे का अंदेशा अथवा जोखिम कम है वहां तुलनात्मक रूप से लाभ भी बहुत कम मिलने की उम्मीद रहती है।

अब यह अलग बात है कि किसी निवेशक के लिए जोखिम को पचा पाना उसकी उम्र पर भी निर्भर करता है। आमतौर पर युवा निवेशक अधिक जोखिम उठाने में रुचि रखते हैं। उन्हें हाई रिस्क और हाई रिटर्न आकर्षित करता है जबकि उम्र दराज निवेशकों की जोखिम उठाने की क्षमता थोड़ी कम होती है इसीलिए वे फिक्स्ड डिपॉजिट जैसे उत्पादों की तरफ आकर्षित होते हैं। अगर आप जोखिम उठा पाने में समर्थ होते हैं तो आपके आदर्श पोर्टफोलियो का कुछ हिस्सा इक्विटी इंस्ट्रूमेंट्स में निवेशक होगा और बाकी का हिस्सा कंसिस्टेंट लाभ देने वाले इंस्ट्रूमेंट में।

पीयूष कहते हैं, अगर इसी चर्चा में आगे बने रहें तो हम बात करेंगे लाभ की क्षमता पर और यह विषय में जोखिम से सीधे तौर पर जुड़ी है किसी भी निवेश की कमाई की क्षमता (अर्निंग पोटेंशियल)। जैसा कि हम पहले भी चर्चा कर चुके हैं कि फिक्स्ड डिपॉजिट का जो लाभ होता है, उसकी सालाना दर 7 से 9 प्रतिशत के आस-पास पास ही रहती है जबकि दूसरी तरफ अगर हम देखें तो हमारे पास जो चुनाव होता है वह होता है स्टॉक मार्केट इन्वेस्टमेंट का जहां अगर हम पहले से सही निर्णय लेकर निवेश करें तो उसका सालाना लाभ करीब करीब 12 से 15त्न के बीच बैठ जाता है।

शंगारी ने कहा हमारी चर्चा के अगले बिंदु पर अगर हम गौर करेंगे तो हम पाएंगे कि यह भी एक महत्वपूर्ण बिंदु है जिसे हम इंपैक्ट ऑफ़ इन्फ्लेशन यानी कि महंगाई के असर के तौर पर जानते हैं। अगर कभी हम ध्यान दें तो हम पाएंगे कि हमारे निवेश की भविष्य गत वैल्यू इन्फ्लेशन यानी कि महंगाई दर से बहुत मोटे तौर पर प्रभावित होती है। जैसा कि हमने चर्चा में जाना कि फिक्स्ड डिपॉजिट का जो लाभ होता है वह पहले से तय किया गया होता है परंतु यह अक्सर अधिक से अधिक 7 से 9 प्रतिशत के बीच में ही रहता है। परंतु भारत के आज तक के ट्रैक रिकॉर्ड को अगर हम देखें तो महंगाई दर ऊपर से ऊपर 13त्न तक पहुंची है जबकि कभी भी यह 3.44त्न से कम नहीं हुई ऐसे में वास्तविक लाभांश को प्राप्त करने के लिए हमारे लिए यह जानना अधिक जरूरी हो जाता है कि हमारे निवेश पर महंगाई दर से अधिक लाभ मिल पाता है अथवा नहीं।स्टॉक मार्केट में यदि विवेक से निवेश किया जाए तो आपको 12 से 15 प्रतिशत तक का लाभ वार्षिक दर पर मिल सकता है जो कि महंगाई दर और दूसरे आर्थिक उतार-चढ़ाव से आपके निवेश की सुरक्षा कर सकता है। अगर इस हिसाब से हम देखें तो स्टॉक मार्केट में विवेकपूर्ण निवेश हमारे लिए अधिक लाभ कर हो सकता है।अगले बिंदु को अपनी इस चर्चा में लिस्ट में रखूं तो वह है तरलता अर्थात लिक्विडिटी।

किसी भी प्रकार के निवेश में लिक्विडिटी बहुत महत्वपूर्ण है लिक्विडिटी का यह मतलब है कि कितनी आसानी से आप अपने निवेश के कुछ हिस्से को बाहर निकाल सकते हैं अथवा इनकैश कर सकते हैं। अगर हम इस संबंध में फिक्स डिपाजिट को देखें तो हम पाएंगे कि जिस समय अवधि के लिए हमने अपने निवेश को फिक्स डिपॉजिट में लगाया है उतने समय के लिए आपका निवेश वहां लॉक रहेगा जो कि आमतौर पर 5 वर्ष तक हो सकता है। वहीं स्टॉक मार्केट निवेश में किसी प्रकार का कोई लॉक-इन पीरियड नहीं होता। निवेश का यह तरीका पूर्णरूप से तरलता को लिए हुए है। आप कभी भी निवेश कर सकते हैं और कभी भी इससे बाहर आ सकते हैं। इसी तरह के कारण स्टॉक मार्केट को लचीलापन भी मिलता है एक उदाहरण के लिए आप स्टॉक मार्केट के ट्रेंड को अध्ययन करके पुन: अपने निवेश को रिलोकेट कर सकते हैं और अपने निवेश को बांटने के लिए अलग-अलग प्रतिभूतियों (शेयर्स) में निवेश भी कर सकते हैं। यह सब आपके जोखिम को कम करने और आपके निवेश पर सकारात्मक प्रभाव बनाने के लिए किया जाता है। यह ऑप्शन आपको फिक्स्ड डिपॉजिट में नहीं मिलते, क्योंकि वहाँ पहले से सब कुछ फिक्स्ड ही होता है।

पीयूष चर्चा के अंत में टैक्सेशन पर भी बात करते हैं। वे कहते हैं कि आपको अपने निवेश के साथ उससे जुड़े करों पर भी ध्यान देना चाहिए। फिक्स्ड डिपॉजिट के मामले में आपको जो भी वार्षिक लाभ मिलता है यदि वह 5000 से अधिक हो तो वह कर की श्रेणी में आता है। साथ ही एफडी की मैच्यूरिटी का अमाउंट भी टैक्सेबल होता है। जबकि स्टॉक मार्केट इन्वेस्टमेंट में डिविडेंड टैक्स फ्री की श्रेणी में आता है। वैसे अगर हम देखें तो स्टॉक मार्केट निवेश और फिक्स्ड डिपॉजिट दोनों के अपने लाभ और हानी है, पर फिर भी अगर आप अपने वेल्थ क्रिएशन की तरफ ध्यान दें और उसके लिए थोड़ा सा जोखिम उठाना आपको सही लगे तो आपको शेयर मार्केट में भी निवेश करना चाहिए। परंतु अपने निवेश पर केवल आपको स्टेबल इनकम ही ज्यादा आकर्षित करती हो तो आपको केवल और केवल फिक्स्ड डिपॉजिट के साथ ही रहना चाहिए। आपको अपनी रिस्क उठाने की क्षमता पर ध्यान देते हुए बुद्धिमता से निर्णय लेना चाहिए और सदैव अपने निवेशित पोर्टफोलियो को संतुलित रखना चाहिए।

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