स्कूल संचालकों की ये मनमानी आखिर कब बंद होगी, क्या प्रशासन इनके आगे है नतमस्तक

स्कूल संचालकों की ये मनमानी आखिर कब बंद होगी, क्या प्रशासन इनके आगे है नतमस्तक

बिना मान्यता की चल रही है शहर में स्कूलें
स्कूल संचालकों की ये मनमानी आखिर कब बंद होगी, क्या प्रशासन इनके आगे है नतमस्तक
बीकानेर(शिव भादाणी)। नया सत्र शुरु होते ही स्कूल संचालकों द्वारा अपनी मनमानी शुरु कर दी जाती है जिससे अभिभावकों बेहद परेशान हो जाते है। शहर की नामी स्कूलें अपनी मनमानी हर साल करते है और मजे की बात है प्रशासन की नाक के नीचे करते है लेकिन इनको रोकने वाला कोई नहीं है। जबकि अभिभावक कई बार निजी स्कूलों की मनमानी को लेकर प्रशासन को शिकायत करते है लेकिन प्रशासन इस ओर कभी भी ध्यान नहीं दे रहा है। कई स्कूल अपने यहीं से ड्रेस, किताबे व अन्य सामान बिक्री करते है। किताबों की किमतों में कोई कमी नहीं करते है जो प्रिंट रेट है उसी के आधार बेच रहे है जिससे छोटी कॉलाशा की किताबे भी 6 से 8 हजार तक की आ रही है लेकिन अभिभावक मजबूर है उसको किसी तरह से लेनी पड़ती है। जबकि संभाग मुख्यालय पर शिक्षा निदेशालय होने के बावजूद कुछ निजी स्कूल प्रकाशकों से मिलीभगत कर महंगी पाठ्य पुस्तकें खरीद करवाने के लिए अभिभावकों पर दबाव डाल रहे हैं। जबकि सीबीएसई और आरबीएसई से मान्यता प्राप्त विद्यालयों में एनसीईआरटी की पाठ्य पुस्तकें पाठ्यक्रम में लगाई हुई हैं।अभिभावकों ने स्कूलों के खिलाफ आवाज उठाते हुए जिला कलक्टर के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा है। उन्होंने निजी स्कूलों की ओर से मनमानी फीस वसूली, दुकान विशेष से ड्रेस से लेकर किताब और नोटबुक खरीद करवाने की गैर कानूनी बाध्यता लागू कर रखी होने की शिकायत की है।छात्र अभिभावक संघर्ष समिति के विजेन्द्र सिंह राठौड़ व योगेश शर्मा के नेतृत्व में जिला कलक्टर को ज्ञापन देकर निजी स्कूलों के खिलाफ विरोध प्रकट किया गया। साथ ही अवगत कराया कि प्राथमिक कक्षाओं के विद्यार्थियों से 4 हजार से 8 हजार रुपए तक की राशि पुस्तकों की वसूल रहे हैं। इस मामले में शिक्षा विभाग के आदेशों की खुली अवहेलना हो रही है। जब खुलासा से अभिभावकों से इस बारे में जानकारी ली तो सामने आया कि स्कूल संचालक अभिभावकों पर इतना दबाब बना देते है उनको किताबों से हर व वस्तु स्कूल से लेनी पड़ती है महंगें दामों पर अब स्कूल वालों ने बच्चों के काम आने वाले टिफिन सेट, पेंसिल रबर तक बेचते है। जो पेंसिल बाजार में 2 रुपये मिलती है वो ही पेंसिल स्कूल में 10 से 15 रुपये तक मिलती है। आखिर इन सब पर कब अंकुश लगेंगा। क्या प्रशासन इनके आगे है नतमस्तक।
बिना मान्यताएं की चल रही है स्कूलें
शहर में कई ऐसे इलाके है जहां कोचिंग के नाम पर बिना मान्यता के स्कूलों का संचालन हो रहा है। जबकि सरकार के आदेशों के अनुसार कोई भी व्यक्ति बिना सरकार की मान्यत लिये स्कूल नहीं चला सकते है। लेकिन कुछ लालची लोग है जो बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करते हुए बिना मान्यता के ही उनको पढ़ा रहे है। जबकि स्कूल की मान्यता लेकर चलाने वालों पर सरकार लकड़ी लगी रहती है। लेकिन बिना मान्यता वाले धड़ल्ले से स्कूल का संचालन कर रहे है।
कब हो हादसे
बिना मान्यता की चलने वाली स्कूल में अगर कोई हादसा हो जाये तो उसकी जिम्मेदारी किसकी है अगर बच्चों के कुछ हो जाये तो उसकी भरपाई कौन करेंगे। प्रशासन को इसकी कई बार शिकायतें मिलती है लेकिन आज तक इसकी ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है और बच्चों का भविष्य खराब कर रहा है।

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