
तुर्किये से लौटे NDRF सैनिक बोले- हम प्यार लेकर आए:रातों-रात बनाए गए 140 पासपोर्ट्स, 10 दिन बिना नहाए लोगों का रेस्क्यू करते रहे






तुर्किये में 6 फरवरी को आए भूकंप में रेस्क्यू के लिए भारत से गईं नेशनल डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स (NDRF) की टीमें लौट आई हैं और अपने साथ लाई हैं तुर्किये के लोगों का प्यार, सम्मान और बहुत सारी यादें।
टीम के सदस्यों ने बताया कि कैसे वहां आपदाग्रस्त लोगों ने भारतीय रेस्क्यू टीम का ख्याल रखा, कैसे भाषा का फर्क होते हुए भी वहां के लोगों ने बचाव दल के प्रति सम्मान और प्यार जाहिर किया, कैसे 10 दिन तक रेस्क्यू दल के सदस्य बिना नहाए लोगों को बचाने में लगे रहे और लौटते वक्त अपना सारा सामान जरूरतमंदों को दे आए। आते वक्त भी उनके दिल में बस यही खयाल रहा कि काश कुछ और लोगों को बचा पाते।
7 फरवरी को NDRF ने तुर्किये में रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू कर दिया था। 10 दिनों में टीम ने 2 लड़कियों का रेस्क्यू किया और 85 लाशों को मलबे से निकाला। पिछले हफ्ते टीम भारत लौटकर आई। सोमवार 20 फरवरी को प्रधानमंत्री आवास पर सभी टीम मेंबर्स का अभिवादन किया गया। वहां से लौटे अफसरों और जवानों ने इन 10 दिनों के प्रोफेशनल, पर्सनल अनुभव और चुनौतियां शेयर कीं।
पढ़िए रेस्क्यू टीम के सदस्यों की जबानी इस रेस्क्यू ऑपरेशन की कहानी…
रातोंरात बनाए गए पासपोर्ट्स
भूकंप आने के 48 घंटों के भीतर भारत ने 152 NDRF पर्सनल्स को डिजास्टर जोन में भेज दिया था। अफसरों ने बताया कि विदेश जाने के लिए सिर्फ कुछ ही मेंबर्स के पास ही डिप्लोमैटिक पासपोर्ट थे। NDRF इंस्पेक्टर जनरल एन एस बुंदेला ने बताया कि कोलकाता और वाराणसी से NDRF की टीमों ने फैक्स और ईमेल के जरिए सैंकडों डॉक्यूमेंट भेजे जिन्हें विदेश मंत्रालय के पासपोर्ट एंड वीजा डिवीजन ने मिनटों में सैंकड़ों डॉक्यूमेंट प्रोसेस किए और रातोंरात पासपोर्ट जारी कर दिए।
सेकंड इन कमांड ऑपरेशंस रैंक अफसर राकेश रंजन ने बताया कि तुर्किये ने हमारी टीमों को वीजा ऑन अराइवल दिया और टीमों को गाजियांटेप प्रांत में नूरदागी और हताय में तैनात किया गया।
नमक और मसाले छिड़ककर अहमद ने खिलाए सेब
डिप्टी कमांडेंट दीपक ने बताया कि एक शख्स जिसकी पत्नी और तीन बच्चों की भूकंप में मौत हो गई थी, उसने इस बात का खयाल रखा कि मैं कहीं भी तैनात रहूं, मुझे वेजिटेरियन खाना मिलता रहे। उसके पास टमाटर या सेब कुछ भी होता तो वह नमक और वहां के मसाले छिड़ककर मुझे दे जाता। उसने मुझे गले लगाकर बिरादर कहा था, ये बात मैं कभी नहीं भूल सकता हूं।
18 महीने के जुड़वां बच्चों को छोड़कर मिशन पर गई महिला कॉन्सटेबल
कॉन्सटेबल सुषमा यादव (32 साल) टीम की उन पांच महिला बचावकर्मियों में शामिल थीं, जिन्हें पहली बार विदेश में डिजास्टर कॉम्बैट ऑपरेशन में भेजा गया था। इसके लिए उन्हें अपने 18 महीने के जुड़वां बच्चों को अपने सास-ससुर के पास छोड़ना पड़ा।
उन्होंने कहा कि मेरे दिमाग में एक बार भी ये खयाल नहीं आया कि मैं न जाऊं। मैंने बस ये सोचा कि अगर हम नहीं करेंगे, तो कौन करेगा। ये पहली बार था कि मैं बच्चों के बिना इतने दिन रही लेकिन इससे मुझे रेस्क्यू ऑपरेशन में कोई परेशानी नहीं हुई।
उन्होंने बताया कि वे और एक पुरुष साथी NDRF टीम के दो पैरामेडिक थे। उनका काम था रेस्क्यू दल को सुरक्षित, स्वस्थ और तंदरुस्त रखना ताकि वे सब-जीरो तापमान में भी बिना बीमार पड़े अपना मिशन जारी रख सकें।
लोगों ने यादगार के तौर पर NDRF के बैज रख लिए
मैदान पर अपनी टीम को लीड करने वाले सेकेंड इन कमांड रैंक अफसर वीएन पाराशर ने बताया कि वहां के लोगों ने धन्यवाद जताने के लिए पुलिस और आर्मी यूनिफॉर्म पर लगाए जाने वाले मिलिट्री पैच उन्हें दिए और उनकी टीम के पास जो NDRF India और NDRF लोगो थे, उन्हें भारतीय दोस्ती की यादगार के तौर पर रख लिया।
पाराशर ने बताया कि उन्हें और बाकी टीम मेंबर्स को वॉट्सऐप पर कई मैसेज मिले, जिसमें लोगों ने थैंक्स लिखा था। लोगों ने गूगल से ट्रांसलेट करके उन्हें हिंदी में धन्यवाद भेजा था। उन्होंने बताया कि स्थानीय लोगों को हिंदी और अंग्रेजी नहीं आती थी। जो हमने देखी वो भाषा इंसानियत और भारत के प्रति सम्मान की थी। काश हम और जिंदगियां बचा पाते… लेकिन हमें वहां मिला ऐसा प्यार है जो आसानी से नहीं कमाया जा सकता है।


