हिदायतें व नसीहतें हजारों,बजट के नाम पर चुप्पी!

हिदायतें व नसीहतें हजारों,बजट के नाम पर चुप्पी!

बीकानेर। सुस्त चाल से चल रही व्यवस्था अब बजट के अभाव में हांफने लगी है। शिक्षा विभाग के जिम्मेदारों की कथित लापरवाही के कारण यह निराशाजनक स्थिति बनी हुई है। विद्यालय निरीक्षण के नाम पर आए दिन वातानुकूलित कारों में शहर के आस-पास के विद्यालयों में निरीक्षण के नाम पर आंकड़ों की रिपोर्ट बनाकर इतिश्री करने और व्यवस्थाओं के नाम पर नसीहतें व हिदायतें देने वाले शिक्षा महकमे के आला अधिकारी भुगतान के नाम पर ज्यादा कुछ कहने को तैयार ही नहीं है। उनका जवाब बस यही रहता है कि प्रोसेस में हैं। अनाज, दूध व सब्जी के विक्रेता भुगतान के लिए स्कूल का चक्कर लगा रहे हैं, तो कहीं स्कूल के शिक्षकों को जेब से भुगतान कर व्यवस्था को चलाना पड़ रहा है। सरकारी विद्यालयों में कुकिंग कनवर्जन से लेकर दूध योजना और बालसभा के आयोजन से लेकर वार्षिकोत्सव की राशि तक का भुगतान अब तक नहीं हो पाया है। ऐसे में उधारी में यह व्यवस्था कितनी लंबी चल सकेगी, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। विद्यालयों में पढऩे वाले विद्यार्थियों के पोषाहार और दूध की व्यवस्था अपने जेब से भुगतान कर संबंधित संचालकों को करनी पड़ रही है। पड़ताल में यह बात सामने आई है कि कई विद्यालयों में छह महीने से अन्नपूर्णा दूध योजना के तहत दूध का भुगतान नहीं हो पा रहा है। रोजी-रोटी के जुगाड़ में अन्य जिलों से आए शिक्षक-शिक्षिकाओं को अपने वेतन की राशि का एक हिस्सा पोषाहार सामग्री के भुगतान और दूध के बिल को चुकाने में देना पड़ रहा हैै। सरकारी विद्यालयों में तो इन दिनों व्यवस्था यह है कि स्टाफ के कभी किसी सदस्य तो कभी किसी और किसी ओर सदस्य को जेब से ही पोषाहार व दूध का भुगतान करना पड़ रहा है। विभागीय जिम्मेदार यह मानते हैं कि बजट के अभाव में ये योजनाएं गलफांस बनती जा रही है। जिम्मेदारों की कथित नाकामी सरकारी विद्यालयों के विद्यार्थियों की जेब पर भारी पड़ रही है। चार माह से बजट नहीं मिलने के कारण शिक्षकों को अपने स्तर पर दूध की व्यवस्था करनी पड़ रही है। जिससे शिक्षकों को खासी परेशानी होती है। बजट नहीं मिलने से इन व्यवस्थाओं के बंद होने की आशंका कई विद्यालयों में बनी हुई है। बावजूद इसके शिक्षा विभाग की ओर से बजट आवंटित करने को लेकर कोई कवायद नहीं की जा रही है। जिले के बाहरी जिलों से यहां नियुक्त शिक्षिकाओं को तो परिवीक्षण काल में आर्थिक परेशानियां झेलनी पड़ रही है। जानकारी के मुताबिक अन्नपूर्णा दूध योजना के अंतर्गत दूध का भुगतान करना अगस्त महीने से अक्टूबर महीने तक शेष हैै। इसी तरह माह कुक कम हेल्पर का मानदेय भुगतान करना शेष है। सरकारी विद्यालयों में कुकिंग कन्वर्जन और दूध का भुगतान बकाया होने से ग्रामीण क्षेत्रों में कई विद्यालयों में कर्ज के कारण दूध वितरण भी समय पर नहीं हो रहा है।

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