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यह सच्चाई है..भिक्षावृत्ति में बीत रहा है बचपन, विभाग व सर्वे टीम का ध्यान नहीं

निखिल स्वामी की रिपोर्ट
बीकानेर. चिलचिलाती धूप, नंगे पांव, 4 से 6 साल के बच्चे भी हाथ में गुब्बारा, पेन-पेंसिल व छोटे-छोटे खिलौने लेकर गाड़ियों व लोगों के पीछे दौड़ लगा रहे है। कोई बच्चा कहता है कि पेन व गुब्बारा ले लो तो कोई कहता है भूख लगी है पैसे दे दो कहकर बच्चे हर मंदिर, रेस्टोरेंट, ठेलों के आगे के भीख मांगते हुए दिखाई दे देते है। ये बच्चे भीख के लिए सुबह से शाम तक न गर्मी और न सर्दी देखते है भीख मांगने के लिए चले जाते है। इन बच्चों को भीख में कोई पांच या दस रुपए देते ही यह वहां से दूर चले जाते है और उनके पीछे उनकी मां भी चली जाती है। यह बच्चे मां को रुपए पकड़ाकर फिर से भीख मांगने के लिए चल पड़ते है। रोजाना इस तरह के गंदा खेल चल रहा है। इससे बच्चे भिक्षावृत्ति के जाल में धंसते जा रहे है। जिस उम्र में बच्चों के हाथ में कॉपी-किताब होना चाहिए। उस उम्र में बच्चों के हाथ भीख मांगने के लिए आगे बढ़ रहे है। जब माता-पिता के हाथ बच्चों का हाथ पकड़कर उन्हें सही राह दिखाने के लिए आगे बढ़ना चाहिए उस समय वे भीख मांगने का रास्ता दिखा रहे है।  ऐसा नहीं है कि सिर्फ छोटे बच्चे ही भीख मांगते है, बड़ी महिलाएं और बुजुर्ग भी भीख मांगते हुए आपको दिख जाएंगे। लिहाजा कई बार लोग इनको अनदेखा या इग्नोर करके आगे बढ़ जाते है। तो कई बार कुछ सवाल उनको सोचने पर विवश कर देता है। हालांकि कई बार इसके पीछे एक संगठित गिरोह भी काम करता रहता है तो कई बार बच्चों के माता-पिता ही भीख मंगवाते है। इस तरह ये बच्चे पढ़ने की उम्र में बंधुआ बनकर रह जाते है। धीरे-धीरे यह तमाम तरह की बंदिशों में बंध जाते है। बच्चों को भिक्षावृत्ति करवाने की प्रवृत्ति कम होने की बजाय लगातार बढ़ती जा रही है और प्रशासन के इसे रोकने के तमाम दावे फेल होते दिखाई दे रहे है। सरकार ने बच्चों के लिए कई तरह की योजनाएं बनाई है और मानव अधिकार कानून भी बने है। ऐसे में बाल विभाग व सर्वे टीम को ध्यान भी ओर नहीं जाता है। सरकार की ओर से कई समितियां बनाई गई है, इन समितियों के पदाधिकारी तो सिर्फ कागजों में खानापूर्ति करने में लगे हुए है। इनके सामने बच्चे भिक्षा मांग रहे है लेकिन वे इन्हें अनदेखा कर देते है।

हर अधिकारी व कर्मचारी इन्हें देता है भिक्षा
मंदिर व रेस्टोरेंट में प्रशासन के अधिकारी व कर्मचारी जाते है और कई बार इन बच्चों को कुछ रुपए के रूप में भिक्षा भी देते है। जिन अधिकारियों के ऊपर भिक्षावृत्ति को समाप्त करने की जिम्मेदारी है क्या वे कभी इन मंदिरों व रेस्टोरेंट व चौराहों से नहीं गुजरते है। शहर के जूनागढ़ के आस-पास के मंदिर व ठेलों के आगे, पब्लिक पार्क के पास, जेएनवी कॉलोनी मार्केट के पास, हर मंदिर के आगे भिक्षा मांगने वाले बच्चों की तादाद दिखाई जाएगी। इन स्थानों से हर अधिकारी निकालता है और इन बच्चों को अनदेखा कर आगे निकल जाते है। ऐसे में अधिकारी व प्रशासन इन पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। ऐसे में यह बच्चे भिक्षावृत्ति करने को मजबूर है।

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