
रस्सी के सहारे अपना पेट पाल रही है ये लडक़ी, कब जीवन की रस्सी टूट जाये, आखिर कहां है प्रशासन, देखे वीडियों






दर्दभरी कहानी
शिव भादाणी की खास रिपोर्ट
बीकानेर। अगर देखा जाये तो प्रदेश की सरकार से लेकर जिले व ग्रामीण स्तर में कई ऐसी संस्थाएं है जो छोटे बच्चों को पढऩे के लिए जागरुकता रैली व अन्य साधन अपनाते है। लेकिन इतने होने के बाद भी समाज में कई ऐसे परिवार है जो जहां आज भी बच्चे अपने माता पिता के साथ मजदूरी करके पेट पालते नजर आते है। कई ऐसे खेलों से आमजन का मनोरंजन करते है लेकिन वो खेल बहुत खतरनाक होते है एक छोटी सी गलती से उसका जीवन जा सकता है। लेकिन कहते है पापी पेट के लिए करना पड़ता है। ऐसा ही सीन बीकानेर शहर की मुख्य सडक़ों पर रोज देखने को मिलता है बस दिखाई नहीं देता तो जिला प्रशासन के अधिकारियों व बालश्रम विभाग को बाकी आमजन को दिनभर देखने को मिलता है। हम जब शहर की हद्य स्थल की सडक़ केईएम रोड से निकलते है तो हमें पुराने गाने सुनाई देते है जैसे ही नजर पड़ी देखा कि एक लडक़ी एक हाथ में लकड़ी है और एक हाथ कांपते हुए स्वेटर की जेब में डाले हुए गाने की धून पर चल रही थी और उसकी मां नीचे खड़ी बस एक टकटकी आंखों से अपनी लाडली बेटी को देखकर शायदा यही सोचती होगी कि बेटी मुझे माफ करने में मजबूर हो सो तेरे को मौत के मुंह में धकेल कर इतना खतरनाक काम करवा रही हूं मुझे भगवान कभी माफ नहीं करेंगे। लेकिन जैसे ही कोई राहगिर उनके पास रखी में 10, 20 रुपये डालता है तो एक उम्मीद उसकी आंख जाग जाती है कि आज के खाने के पैसे तो आये। लेकिन वो लडक़ी एक डोरी पर चल रही होती है जो सडक़ पर खोद कर लकड़ी के डंडों पर बंधी हुई होती है। कब डोरी टूट जाये और लडक़ी के जीवन की डोरी कब टूट जाये इसका कोई अंदाजा नहीं है। लेकिन बीकानेर प्रशासन ने आज तक उस बच्ची के घर जाकर उसकी मजबूरी का नहीं पूछा जबकि कई संस्थाएं इस और काम कर रही है। जिला प्रशासन भी इस और ध्यान नहीं दे रहा है क्योकि कई बार ये लडक़ी अपना करतब कचहरी परिसर में भी दिखा चुकी है जहां पर जिला मुखिया व पुलिस के आला अधिकारी बैठते है लेकिन उन्होने कभी इसकी ओर ध्यान ही नहीं जाता है वो लालबत्ती की गाड़ी आये और चले गये। लेकिन वो नन्ही जान अपनी आंखों में नये सवेरे का रोज इंतजार करती है कि उसके जीवन में कोई तो नया सवेरे आयेगा।


