गहलोत-पायलट खेमे के इन 6 नेताओं की कांग्रेस में एंट्री, पहले क्यों हुआ था निलंबन? अब क्यों हुई वापसी?, पढ़े पूरी खबर …

गहलोत-पायलट खेमे के इन 6 नेताओं की कांग्रेस में एंट्री, पहले क्यों हुआ था निलंबन? अब क्यों हुई वापसी?, पढ़े पूरी खबर …

गहलोत-पायलट खेमे के इन 6 नेताओं की कांग्रेस में एंट्री, पहले क्यों हुआ था निलंबन? अब क्यों हुई वापसी?, पढ़े पूरी खबर …

जयपुर। राजस्थान कांग्रेस ने हाल ही में छह नेताओं मेवाराम जैन, बालेंदु सिंह शेखावत, संदीप शर्मा, बलराम यादव, अरविंद डामोर और तेजपाल मिर्धा के निलंबन को रद्द कर उनको पार्टी में वापस लिया है। इन नेताओं को विभिन्न कारणों से अनुशासनहीनता के आरोपों में निष्कासित किया गया था, लेकिन इनमें से एक नेता की वापसी से प्रदेश की सियासत में भूचाल आया हुआ है।

दरअसल, पार्टी के इस निर्णय को पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के खेमों के बीच संतुलन साधने की कोशिश बताया जा रहा है। हालांकि, कुछ नेताओं की वापसी पर विरोध भी सामने आया है, जिससे पार्टी के भीतर गुटबाजी फिर से उभर रही है।

किन-किन नेताओं की हुई वापसी?
AICC के राजस्थान प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा के निर्देश पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने इन छह नेताओं का निष्कासन रद्द करने का आदेश जारी किया। इनमें से कुछ नेता गहलोत खेमे से जुड़े हैं तो कुछ पायलट समर्थक माने जाते हैं। इन नेताओं के निलंबन के पीछे अलग-अलग कारण थे, जैसे अनैतिक आचरण, पार्टी विरोधी गतिविधियां और पार्टी आदेशों की अवहेलना। अब इनकी वापसी से पार्टी ने दोनों खेमों को साधने की कोशिश की है, लेकिन इस निर्णय पर सवाल भी उठ रहे हैं।

मेवाराम जैन- विवादों के बीच वापसी
इन सभी नेताओं में बाड़मेर के पूर्व विधायक मेवाराम जैन की वापसी की सबसे अधिक चर्चा हो रही है। जनवरी 2024 में उन के खिलाफ जोधपुर के राजीव नगर थाने में एक विवाहिता ने रेप का मामला दर्ज कराया था। इसके बाद उनके कथित अश्लील वीडियो वायरल होने पर डोटासरा ने उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया था। निलंबन पत्र में कहा गया था कि मेवाराम का आचरण पार्टी संविधान के खिलाफ है।

मेवाराम जैन अशोक गहलोत के करीबी माने जाते हैं। उन्होंने 2008 से 2018 तक लगातार तीन बार बाड़मेर से विधानसभा चुनाव जीता था। हालांकि, 2023 के विधानसभा चुनाव में वे 13,337 वोटों से हार गए थे।

27 सितंबर 2025 को उनकी वापसी के बाद बाड़मेर, बालोतरा और जैसलमेर में उनके खिलाफ विरोध शुरू हो गया। जिला कांग्रेस कमेटी के नाम से उनके कथित अश्लील फोटो वाले होर्डिंग्स लगाए गए। सियासी जानकार इसे गहलोत खेमे की ताकत के प्रदर्शन के रूप में देख रहे हैं, क्योंकि उनकी वापसी के पीछे गहलोत का प्रभाव माना जा रहा है।

बालेंदु सिंह शेखावत- पायलट खेमे की जीत
शेखावाटी के दिग्गज नेता और पूर्व विधानसभा स्पीकर दीपेंद्र सिंह शेखावत के बेटे बालेंदु सिंह शेखावत को लोकसभा चुनाव 2024 से पहले पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में निष्कासित किया गया था। यह कार्रवाई वैभव गहलोत की शिकायत पर हुई थी, जिन्होंने उन पर जालोर लोकसभा क्षेत्र में पार्टी के खिलाफ काम करने का आरोप लगाया था। बालेंदु ने इस कार्रवाई को अनुचित ठहराते हुए कहा था कि उन्हें बिना नोटिस के निष्कासित किया गया, जो पार्टी संविधान के खिलाफ है।

बालेंदु के पिता दीपेंद्र सिंह पायलट खेमे के समर्थक माने जाते हैं और 2020 में गहलोत सरकार के खिलाफ बगावत में शामिल थे। ऐसे में बालेंदु की वापसी को पायलट खेमे की जीत के रूप में देखा जा रहा है। यह कदम पार्टी के भीतर पायलट समर्थकों को मजबूती देने का संदेश देता है।

संदीप शर्मा- क्लीनचिट के बाद राहत
चित्तौड़गढ़ नगर परिषद के पूर्व सभापति संदीप शर्मा पर नवंबर 2024 में एक महिला ने दुष्कर्म का आरोप लगाया था। इस मामले में हाईकोर्ट से स्टे मिलने के बावजूद कांग्रेस ने मार्च 2025 में उन्हें 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया था। पुलिस जांच में उनके खिलाफ आरोप झूठे पाए गए और 11 सितंबर 2025 को हाईकोर्ट के निर्देश पर अंतिम रिपोर्ट (FR) दाखिल की गई। इसके बाद शर्मा की वापसी की राह आसान हो गई।

संदीप शर्मा की वापसी में प्रदेश कांग्रेस की अनुशासन समिति के अध्यक्ष उदयलाल आंजना की भूमिका अहम मानी जा रही है, जो खुद चित्तौड़गढ़ से हैं। यह कदम स्थानीय स्तर पर कांग्रेस को मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।

अरविंद डामोर- गठबंधन विवाद से वापसी तक
बांसवाड़ा के अरविंद डामोर को लोकसभा चुनाव 2024 में पार्टी आदेशों की अवहेलना के लिए निष्कासित किया गया था। कांग्रेस और भारतीय आदिवासी पार्टी (BAP) के बीच गठबंधन के तहत डामोर से नामांकन वापस लेने को कहा गया था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और कांग्रेस के टिकट पर ही चुनाव लड़ा, जिसमें वे हार गए। उनकी वापसी को वागड़ क्षेत्र में कांग्रेस को मजबूत करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। डामोर ने अपनी वापसी का श्रेय डोटासरा और पूर्व स्पीकर सीपी जोशी को दिया है।

तेजपाल मिर्धा- नागौर में कांग्रेस की नई रणनीति
नागौर के तेजपाल मिर्धा को 2024 लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) के हनुमान बेनीवाल की शिकायत पर निष्कासित किया गया था। बेनीवाल ने उन पर गठबंधन प्रत्याशी के प्रचार में सहयोग न करने का आरोप लगाया था। निष्कासन के बाद मिर्धा के समर्थन में कुचेरा नगरपालिका के कई पार्षदों और कार्यकर्ताओं ने सामूहिक इस्तीफा दे दिया था।

नागौर में कांग्रेस की कमजोर स्थिति को देखते हुए मिर्धा की वापसी को पार्टी की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। बेनीवाल के गठबंधन से अलग होने के बाद मिर्धा की वापसी से कांग्रेस इस क्षेत्र में फिर से अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है।

बलराम यादव- बगावत से वापसी तक
सीकर के श्रीमाधोपुर से बलराम यादव ने 2023 विधानसभा चुनाव में दीपेंद्र सिंह शेखावत के खिलाफ बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ा था। इस त्रिकोणीय मुकाबले में शेखावत हार गए और यादव को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। उनकी वापसी को डोटासरा के प्रभाव और शेखावाटी में कांग्रेस की स्थिति मजबूत करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।

वापसी का सियासी संदेश और गुटबाजी
इन नेताओं की वापसी से साफ है कि कांग्रेस गहलोत और पायलट खेमों के बीच संतुलन साधने की कोशिश कर रही है। मेवाराम जैन और अरविंद डामोर जैसे गहलोत समर्थकों के साथ-साथ बालेंदु सिंह और तेजपाल मिर्धा जैसे पायलट खेमे के नेताओं की वापसी इस रणनीति का हिस्सा है। हालांकि, मेवाराम की वापसी पर विरोध और पोस्टर विवाद से पार्टी के भीतर असंतोष साफ झलक रहा है।

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