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शहर के इन 15 वार्डों की है सबसे ज्यादा चर्चा, यहां मुकाबला भी होगा रोचक

जयनारायण बिस्सा

बीकानेर। शहर की सरकार के चुनाव में 80 में से करीब 15 वार्ड अधिक चर्चा में हैं। जहां पार्षद के चुनाव के आगे मुखिया (महापौर) बनने की कुर्सी के किस्से हैं। वार्ड चुनाव के प्रचार में भी आगे की दावेदारी को जनता के सामने चुपके से रखा जाता है। ताकि जनता को लगे कि उनका चुना पार्षद चेयरमैन भी बन सकता है। नगर निगम के कुछ ऐसे वार्डों की तस्वीर आपके सामने हैं। यह जरूरी नहीं कि इन्हीं वार्डों के जीते पार्षद महापौर बनेंगी। लेकिन, जनता के बीच में चुनाव से पहले यही चेहरे महापौर के रूप में घूम-घूम कर आने लगे हैं।इस बार महिला सामान्य सीट होने के कारण किसी भी वार्ड का पार्षद ही महापौर बन सकता है लेकिन, प्रमुख पार्टियों तो हर बार की तरह तो अपने सोशल इंजीनियरिंग को सुलझाने में ही विश्वास रखेंगी। जिसके कारण आमजन को लगता है कि शहर के गिने-चुने वार्डों में कुछ खास चेहरे ऐसे हैं जो आगे की कुर्सी तक पहुंच सकते हैं।

भाजपा के ये 10 वार्ड चर्चा में
भाजपा ने नगर निगम में 80 वार्डों में प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे हैं लेकिन, एक प्रत्याशी का पर्चा खारिज होने के कारण 79 वार्ड में ही भाजपा चुनाव लड़ रही है। इनमें से 9 वार्ड ऐसे हैं जहां इनके महापौर के चेहरे के रूप में देखे जा रहे हैं। जिनमें प्रमुख रूप से वार्ड 14 से सुमन कंवर, वार्ड 64 से मीना आसोपा, वार्ड 73 से आरती आचार्य, वार्ड 36 से कमल कंवर, वार्ड 37 से लक्ष्मीकंवर हाडलां, वार्ड 47 से सुमन छाजेड़, वार्ड 28 से मंजू सोनी, वार्ड 2 से सुधा आचार्य, वार्ड 17 से रंजना कंवर का नाम चर्चा में है।

कांग्रेस में इन नामों पर चर्चा
उधर कांग्रेस का भी एक पर्चा खारिज होने के बाद 79 वार्डों में प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे है। महापौर क ी कुर्सी पर इस बार सामान्य महिला के पदासीन होने के चलते कांग्रेस में भी महपौर के रूप कुछ प्रत्याशियों को लेकर चर्चा शुरू हो चुकी है। इसमें वार्ड 32 से अंजना खत्री,वार्ड 11 से रेणू कंवर,12 से सुहानी शर्मा,वार्ड 47 से सविता जोशी,वार्ड 50 से अर्चना सिंह राठौड तथा वार्ड 74 से सुनयना पुरोहित के नाम प्रमुखता से चल रहे है।

ज्यादातर सीट पर मुकाबला भी
जिन वार्डों में महापौर के दावेदार हैं उनमें से कुछ वार्डों में कड़ा मुकाबला है तो कुछ की सीट त्रिकोणीय व चतुष्कोणीय मुकाबले में है। अपनी सीट बचाने के लिए आखिरी तक निर्दलीय प्रत्याशियों को भी अपने पक्ष में करने की जुगत की गई। लेकिन दोनों ही दलों को सफलता हाथ नहीं लगी।

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