पंचायत निकाय चुनाव पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला 15 अप्रैल तक एक साथ चुनाव कराए सरकार



पंचायत निकाय चुनाव पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला 15 अप्रैल तक एक साथ चुनाव कराए सरकार
जयपुर। राजस्थान में करीब 6,759 पंचायतों और 55 नगरपालिकाओं का कार्यकाल पूरा हो चुका है। (्रढ्ढ जनरेटेड फोटो)
राजस्थान हाईकोर्ट ने सरकार को पंचायत और नगर निकाय चुनाव 15 अप्रैल 2026 तक कराने के निर्देश दिए हैं। हाईकोर्ट ने कहा- सरकार पंचायत और निकाय चुनाव एक साथ करवाए। 31 दिसंबर तक परिसीमन की प्रक्रिया पूरी करें।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश (एक्टिंग सीजे) एसपी शर्मा की खंडपीठ ने गुरुवार को गिरिराज सिंह देवंदा और पूर्व रूरु्र संयम लोढ़ा की जनहित याचिका सहित अन्य याचिकाओं पर फैसला सुनाया।
याचिकाओं में कहा गया था कि सरकार ने संविधान के प्रावधानों के खिलाफ जाकर अवैध और मनमाने तरीके से पंचायत व निकाय चुनावों को स्थगित किया है।
हाईकोर्ट ने पंचायतों के पुनर्गठन और परिसीमन से जुड़ी करीब 450 याचिकाओं पर सुनवाई पूरी करते हुए 12 अगस्त को फैसला सुरक्षित रख लिया था। अब तीन महीने बाद फैसला सुनाया है। प्रदेश में करीब 6,759 पंचायतों और 55 नगरपालिकाओं का कार्यकाल पूरा हो चुका है।
चुनाव को एक दिन भी स्थगित नहीं किया जा सकता
याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता प्रेमचंद देवंदा ने बहस करते हुए कहा था कि राज्य सरकार ने 16 जनवरी, 2025 को अधिसूचना जारी करके इन पंचायतों के चुनावों को स्थगित कर दिया। जो संविधान के अनुच्छेद 243ई, 243के और राजस्थान पंचायत राज अधिनियम 1994 की धारा 17 का उल्लंघन है।
सरकार ने प्रजातंत्र की सबसे छोटी इकाई और ग्रामीण संस्थाओं को अस्थिर करते हुए राज्य की तकरीबन 6,759 पंचायतों के आम चुनाव पर रोक लगाई है। जबकि संविधान एवं पंचायत राज के प्रावधानों के अनुसार पंचायत का 5 साल का कार्यकाल पूरा हो जाने पर चुनाव एक दिन भी स्थगित नहीं किया जा सकता है। साथ ही, जिन निवर्तमान सरपंचों का कार्यकाल पूरा हो चुका है और वे अब जनप्रतिनिधि नहीं हैं, केवल निजी व्यक्ति हैं। इसलिए निजी व्यक्ति को नियमानुसार पंचायतों में प्रशासक नहीं लगाया जा सकता है।
सरकार ने मनमानी कर लगा दिए प्रशासक
वहीं, नगर निकायों के चुनाव टालने के मामले में संयम लोढ़ा की याचिका पर बहस करते हुए उनके अधिवक्ता पुनीत सिंघवी ने कहा था कि राज्य सरकार ने प्रदेश की 55 नगरपालिकाओं, जिनका कार्यकाल नवंबर 2024 में ही पूरा हो गया है, उनमें चुनाव नहीं करवाकर बिना अधिकार ही प्रशासक लगा दिए हैं।
सरकार ने इस तरह से मनमाना रवैया अपनाकर संवैधानिक प्रावधानों और नगरपालिका अधिनियम-2009 का खुला उल्लंघन किया है।
उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि प्राकृतिक आपदाओं के अलावा स्थानीय निकायों के चुनाव नहीं टाले जा सकते हैं। लेकिन यहां सरकार अपने संवैधानिक कर्तव्य को पूरा करने में विफल हो गई है।




