
नापासर नगर पालिका की पूर्व अध्यक्ष का निलंबन हाईकोर्ट ने किया रद्द





नापासर नगर पालिका की पूर्व अध्यक्ष का निलंबन हाईकोर्ट ने किया रद्द
बीकानेर। राजस्थान हाईकोर्ट ने बीकानेर के नापासर नगरपालिका की अध्यक्ष सरला देवी के निलंबन आदेश को खारिज करते हुए राहत दी है। जस्टिस सुनील बेनीवाल की एकलपीठ ने कहा- याचिकाकर्ता को तत्काल पद पर बहाल किया जाए, लेकिन उनके खिलाफ अनुशासनात्मक जांच स्थानीय स्वशासन विभाग को पूरी छूट के साथ तीन माह में पूरी करनी होगी।
दरअसल, सरला देवी ग्राम पंचायत नापासर (तहसील बीकानेर) की पूर्व सरपंच रही हैं। अक्टूबर 2020 में वे सरपंच चुनी गई थीं। स्टाफ की कमी के चलते ग्राम सभा ने साल 2020 में 20 नवंबर और 21 दिसंबर को तीन कर्मचारियों – कल्याण सिंह (सहायक), गजेन्द्र पारीक (चौकीदार) व प्रेम सिंह (चपरासी) – को तय मानदेय पर अस्थाई तौर पर नियुक्त किया थी।
बाद में पंचायत समिति से अनुमोदन (अप्रूवल) मांगा गया। लेकिन शिकायत के बाद दिसंबर 2021 में ये नियुक्तियां समाप्त कर दी गईं। जांच रिपोर्ट में पाया गया कि पहले अनुमोदन लिए बिना नियुक्ति नियम विरुद्ध थी। बाद में विभाग ने सरला देवी के खिलाफ गैरकानूनी नियुक्ति और वित्तीय नुकसान का आरोप लगाते हुए अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की।
इसी दौरान नवंबर 2024 में ग्राम पंचायत नापासर को चौथी श्रेणी की नगर पालिका घोषित कर दिया गया। सरला देवी वहां की चेयरपर्सन बन गईं। इसके बाद फिर से जून 2025 में राजस्थान नगर पालिका अधिनियम, 2009 की धारा 39(1) के तहत उन्हीं पुराने आरोपों में जांच आरंभ कर दी गई और उनका निलंबन आदेश जारी किया गया। सरला देवी ने इस कार्रवाई को हाईकोर्ट में चुनौती दी।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील राजेश जोशी व माधव व्यास ने कोर्ट में दलील दी कि सरला देवी पर जो आरोप लगे, वे सरपंच रहते हुए की कार्रवाई से जुड़े हैं। अब नगर पालिका अधिनियम के तहत चेयरपर्सन की भूमिका है। ऐसे में पूर्व की कथित अनियमितताओं पर नए सिरे से उसी आधार और उन्हीं तथ्यों पर नगर पालिका अधिनियम के तहत जांच व सस्पेंशन मनमाना और दोहरी सजा जैसा है।पहले जब पंचायत राज अधिनियम के तहत जांच चली थी, तब कोई निलंबन नहीं किया गया। अब तीन साल बाद सवाल उठाना पूरी तरह अनुचित है। उन्होंने कोर्ट के समक्ष “डबल जियोपार्डी” यानी दो बार सजा न देने के सिद्धांत की भी दलील दी। साथ ही यह भी कहा कि उक्त नियुक्तियां केवल अस्थाई थीं। आवश्यकता के कारण की गई थीं, आगे चलकर सेवाएं समाप्त कर दी गईं।
राज्य सरकार की तरफ से वरिष्ठ वकील व अतिरिक्त महाधिवक्ता राजेश पंवार, मोनल चुग व आयुष गहलोत ने कोर्ट को बताया- पंचायत समिति की पूर्व अनुमति के बिना नियुक्तियां करना स्पष्ट रूप से नियमों के विरुद्ध है। आरोप साबित होने पर विभाग से करीब 5 लाख रुपए का वित्तीय नुकसान हुआ है। इसकी जिम्मेदारी भी सरला देवी पर बनती है।
इसी आधार पर अनुशासनात्मक कार्रवाई उचित है। नगर पालिका क्षेत्र बनने पर अधिनियम, 2009 की कार्रवाई में कोई कानूनी बाधा नहीं है। उन्होंने कोर्ट में बताया- पुराने मामलों में भी यदि कार्रवाई नहीं हो सके तो पंचायत या नगर पालिका के अधिकारियों को हमेशा सक्षम कार्रवाई से छूट मिल जाएगी, जो विधायिका की मंशा के खिलाफ है। विभाग ने कहा- दोनों अधिनियमों की अनुशासन संबंधी धाराएं (पंचायत राज की धारा 38, नगर पालिका अधिनियम की धारा 39) समान हैं, इसलिए पुराने आरोपों पर अभी की जांच वैध है।
कोर्ट ने विस्तृत रूप से दोनों पक्षों की दलीलों को सुना और पाया कि पंचायत समिति की पूर्व अनुमति के बिना अस्थाई नियुक्तियां नियम विरुद्ध थीं। इससे ग्राम पंचायत को वित्तीय नुकसान भी हुआ, जिसकी जांच जरूरी है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जब पहले चरण में विभाग ने उपयुक्त दस्तावेजों के बावजूद निलंबन नहीं किया था और सभी तथ्य सामने आने के बाद भी कोई नया गंभीर तथ्य सामने नहीं आया।
इतने अंतराल के बाद वही कार्रवाई दोहराकर निलंबन आदेश देना अविवेकपूर्ण, अनुचित और न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता। चूंकि अनुशासनात्मक जांच पहले ही न्यायिक अधिकारी को सौंपी जा चुकी है, और अब विभागीय दखलंदाजी की कोई आशंका भी नहीं बनती, ऐसे में निलंबन युक्तिसंगत नहीं है।
कोर्ट ने यह भी साफ कहा- जब पंचायत क्षेत्र नगर पालिका क्षेत्र घोषित हो गया तो पंचायत राज अधिनियम, 1994 की कार्रवाई समाप्त हो गई और अब केवल नगर पालिका अधिनियम, 2009 के तहत आगे की कार्रवाई संभव है। चूंकि दोनों अधिनियमों की धाराओं में अपेक्षित प्रविधान मौजूद हैं, इसलिए पुराने आरोपों पर भी नए कानूनी ढांचे के तहत कार्रवाई जारी रह सकती है। डबल जियोपार्डी या दोहरा दंड यहां लागू नहीं होगा, क्योंकि दोनों कार्रवाइयों का उद्देश्य समान है और पुराने अधिनियम की जांच अब नए अधिनियम में समाहित हो गई है।

