गणगौरी तीज पर नहीं निकलेगी तीज की सवारी नहीं लगेगे मेले

गणगौरी तीज पर नहीं निकलेगी तीज की सवारी नहीं लगेगे मेले

बीकानेर,। सुयोग्य वर अखंड सुहाग व मंगलमय जीवन की कामना को लेकर होलिका दहन के दूसरे दिन चल रहा गणगौर पर्व में पूजन का विशेष अनुष्ठान शुक्रवार व शनिवार गणगौरी तीज और चतुर्थी को संपन्न होगा। पांच शताब्दी से अधिक प्राचीन धार्मिक व सांस्कृृतिक नगर बीकानेर में पहली बार महिलाओं के इस त्यौहार पर शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में कहीं भी मेले नहीं लगेंगे ना ही जूनागढ़ से शाही लवाजमें के साथ सवारी निकलेगी। बेसकीमती आभूषणों के लिए प्रसिद्ध चांदमल ढढ्ढा की गणगौर भी नहीं निकलेगी।
गणगौरी तीज पर शुक्रवार को घरों में गेहूं, बाजरी के आटे, बेशन आदि के ढोकले बनाएं जाएंगे तथा उसका गणगौर माता के भोग लगाया जाएगा। ढोकलों के काम में आने वाली सुगंधित विशेष तरह की बूर घास भी नहीं मिली। घास की अनउपलब्धता के कारण महिलाएं वैकल्पिक रूप् से ढोकले बनाने के बारे में मोबाईल के जरिए रिश्तेदार महिलाओं से पूछती नजर आई वहीं आस-पड़ौस से बूर की घास को मांगते नजर आई। बालिकाएं, युवतियां व महिलाएं गीत गाएंगी तथा अपने परिवार के साथ करोना वायरस से देश-दुनियां को बचाने के लिए देवी पार्वती के गणगौर स्वरूप, ईसर यानि देवों के देव महादेव से प्रार्थना करेंगी। इस बार गणगौर के पर्व के दौरान वे गणगौर को तरह-तरह की मिठाई व नमकीन की दुकानों के लॉक डाउन के बंद के कारण वे अपनी पसंद की मिठाई का गणगौर  के भोग भी नहीं लगा पाई। गणगौर, ईसर व भाइए की प्रतिमा को नए आभूषण व वस्त्र भी नहीं पहना सकी।
पहला मौका है कि वे समूह सुबह पूजन, दोपहर दांतणियां अनुष्ठान तथा शाम को गीत गाने की परम्परा का भी निर्वहन नहीं कर सकी। जिन मंदिरों में वे दोपहर के को गुलाल से गणगौर ईसर की आकृृति बनाकर पूजन करती वे मंदिर भी इन धार्मिक स्थलों के व्यवस्थापकों ने करोना के डर से ताले लगा दिए। बालिकाओं को सर्वाधिक चिंता गणगौर पूजन की सामग्री के विसर्जन का है वे कहां करेगी। शासन प्रशासन, सामाजिक व राजनीतिक संगठनों ने जस्सूसर गेट के अंदर के मोहता कुआं, चैतीना कुआं, केसरदेसर कुआं, नया कुआं आदि स्थानों पर उनके लिए कोई व्यवस्था नहीं की। ऐसे में बालिकाएं मन मार कर बैठी है, इस चिंता में है कि होली की राख से बनाई गई पिंडलियों की पूजन सामग्री को कब व कहां विसर्जित करेंगी। घर से 21 दिन तक बाहर  निकलने की पाबंदी ने उनके त्यौहारी उत्साह व उमंग को भी खाख में मिला दिया। बालिकाओं व महिलाओं ने पारम्परिक गीतों के साथ करोना के कहर को भी गीतों को को अभिन्न अंग बनाया है। करोना के खौफ से वे चार से अधिक संख्या में मिलकर गीत भी नहीं गा सकी। परिवार की बंदिश के चलते दो-चार संख्या में ही मिलकर गीत गाते नजर आई।

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