
लॉकडाउन में मध्यम वर्ग की भी सुध ले प्रशासन, जानें क्या हो रही लोगों को समस्या






बीकानेर। लॉकडाउन में एक पखवाड़े के दौरान प्रशासन, सामाजिक, राजनीतिक संस्थाओं का ध्यान गरीब और जरूरतमंद परिवारों की ओर सबसे ज्यादा गया। उनके लिए दोनों समय के भोजन की व्यवस्था भी की गई। कई जगह तो हालात ये हुए कि एक ही परिवार के पास तीन-तीन बार भोजन लेकर पहुंचा। इस वर्ग पर प्रशासन और समाजसेवियों की पूरी कृपा रही, जो सही भी है। लेकिन समाज का एक तबका ऐसा भी है जो न तो अमीर है न बेहद गरीब। सामान्य मध्यम वर्ग के ये परिवार अब लॉकडाउन के एक पखवाड़े से अधिक समय के बाद मुसीबत में आ रहे हैं। इनके पास न तो प्रशासन पहुंचा है न सामाजिक संस्थाएं। जो राशन इन परिवारों के घरों में था वो खत्म होता जा रहा है। ऐसे में शासन से सुविधा के लिए ये भी गुहार लगा रहे हैं। लॉकडाउन की लम्बी अवधि और इसके आगे बढऩे की संभावना के बाद यह बेहद आवश्यक हो गया है कि गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों के साथ मध्यम वर्ग के परिवारों का भी ध्यान रखा जाए। शहर के कई प्रबुद्धजनों और जनप्रतिनिधियों ने यह बात उठाई है।
सूची बनाकर प्रशासन मोहल्ले में बांटे किट
सरकार के पास गरीबों की सूची है, लेकिन मध्यम वर्ग के लिए तो मैदानी स्तर पर कार्य करने की जरूरत है। दरअसल, अब वो समय आया है जब समाजसेवी संस्थाओं के कार्यकर्ताओं को सही में क ाम करने की जरूरत है और प्रशासन को सहयोग करने की। भाजपा के जस्सूसर गेट मंडल के अध्यक्ष पूर्व जे पी व्यास का कहना है कि शहर के गली मोहल्लों में जाकर प्रशासन यह पता करना चाहिए कि वास्तव में मदद किसे चाहिए और रसोईघर में राशन की कमी से कौन सा परिवार जूझ रहा है। कई ऐसे परिवार हैं जिनके पास सामान्य राशन कार्ड है। सरकारी नौकरी में नहीं होने के कारण उनके घर में वेतन इस महीने आया है है या नहीं? नहीं आया तो बच्चों और परिवार का पालन वे कैसे करेंगे, यह जानकारी लेनी चाहिए। उनकी सूची बनाकर सामान की एक किट तैयार कर उन्हें वितरित की जाए। कांग्रेस के प्रदेश सचिव राजकुमार किराडू का कहना है कि गरीब परिवारों को प्रतिदिन भोजन प्रदान किया जा रहा है, परंतु मध्यम परिवारों के समक्ष भी अब घर में रखी खाद्यान्न सामग्री समाप्त होने के क ारण खाने पीने का संकट उत्पन्न हो रहा है। इन परिस्थितियों में आवश्यक है कि शासन प्राथमिकता के आधार पर सार्थक कदम उठाए। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा ध्यान देने कहा है क्योंकि वहां और ज्यादा दिक्कतें हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में भी पूर्ण प्रतिबंध होने के कारण आवश्यक खाद्य सामग्री लोगों तक नहीं पहुंच पा रही है। इन परिस्थितियों में आवश्यक है कि शासन कार्ययोजना बनाकर गांव-गांव तक राशन पहुंचाने की व्यवस्था करे। विप्र फाउण्डेशन जोन 1 बी प्रदेशाध्यक्ष भंवर पुरोहित का कहना है कि प्रशासन अगर आने वाले दिनों में ऐसे स्वाभिवान मध्यम वर्ग की सूची बनाकर उन्हें रसद किट का वितरण करें तो शायद ऐसे परिवार ों को आ रही समस्याओं से निजाद मिल पाएगा। राजीव यूथ क्लब के अनिल कल्ला ने कहा कि वास्तव में इस संकट काल में मध्यम वर्ग ज्यादा पिस रहा है। हमारी क्लब ने ऐसे लोगों को सूचीबद्व करने का काम शुरू किया है,जिनको मदद की नितान्त आवश्यकता है। प्रशासन से भी ऐसे लोगों के मदद के लिये बात की गई है।
ये लोग है शामिल
ऐसी श्रेणी में पान की दुकान लगाने वाले,छूटकर व्यापारी जो रोजाना की कमाई पर निर्भर,निजी क्षेत्रों में कार्य करने वाले,राजकीय कार्यालयों में संविदा पर लगे कार्मिक (6-10 हजार के वेतनभोगी),दैनिक रोजमर्रा के सामान बेचने वाले दुकानदार,अल्पवेतन भोगी पत्रकार सहित अनेक ऐसे लोग है। जिनका वेतन इस मंहगाई को देखते हुए 15000 रूपये से कम है। वेतन इस मंहगाई को देखते हुए 15000 रूपये से कम है।


