
बात विधानसभा चुनाव की : श्रीडूंरगरगढ़ विधानसभा में कौन किस पर रहेगा भारी, किसे मिलेगा और किसका कटेगा टिकट, पढ़ें यह रिपोर्ट






पत्रकार, कुशाल सिंह मेड़तिया की कलम से
खुलासा न्यूज बीकानेर। डूंगरगढ़ विधानसभा का चुनाव इस बार बेहद रोचक होने वाला है। हालांकि यहां पर अभी तक मुकाबला सीधे तौर पर कांग्रेस व बीजेपी के बीच दिखाई दे रहा है, लेकिन यहां तीसरा मोर्चा वोटों की गणित जरूर बिगाड़ेगा, क्योंकि यह मोर्चा क्षेत्र की जनता के मुद्दों को लेकर पिछले लंबे समय से लड़ रहा है। प्रमुख पार्टियों की बात की जाए तो इस बार यहां कांग्रेस और बीजेपी में सीधा मुकाबला हो सकता है। कांग्रेस से प्रमुख दावेदार मंगलाराम गोदारा एक्टिव नजर आ रहे हैं, लेकिन अगर बात कांग्रेस से दावेदारी की जाए तो इस बार मंगलाराम गोदारा की टिकट कटता माना जा रहा है, क्योंकि पार्टी इस बार जीत के फार्मूले पर काम कर रही है और जीत पर मंगलाराम गोदारा का पक्ष कमजोर माना जा रहा है। इस मुख्य कारण यह है कि एक तो लगातार लोगों में उनका विरोध हो रहा है। बीते पिछले तीन बार के चुनाव की भी बात करे तो हमेशा डूंगरगढ़ की राजनीति में एक ही चीज हावी रही है, वह यह है कि पार्टियों के किसी भी प्रत्याशी को ना जीताकर दूसरे प्रत्याशी को जिताना। इसी का फायदा पिछले चुनाव में वर्तमान के विधायक गिरधारी महिया को हो गया और वो चुनाव जीत गए। पिछले विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो जहां तीन प्रत्याशियों में मुकाबला देखने को मिला था कॉमरेड गिरधारी महिया, मंगलाराम गोदारा और ताराचंद सारस्वत में त्रिकोणीय संघर्ष रहा। चुनाव में एक बार ऐसा लग रहा था की मुकाबला ताराचंद सारस्वत और गिरधारी मैया के बीच होना है, लेकिन डूंगरगढ़ विधानसभा से सबसे कमजोर प्रत्याशी के रूप में ताराचंद साबित हुए क्योंकि दो जाट कैंडिडेंट की लड़ाई को अपनी जीत में तब्दील नहीं कर सके है, जबकि उनके पास बड़ा अवसर था, खो दिया। हालांकि ताराचंद सारस्वत इस बार भी टिकट के लिए पूरी जोर आजमाइश कर रहे हैं, लेकिन अगर बात उनके वोट बैंक हो तो आज भी उनका ग्राफ डूंगरगढ़ में बढ़ा नहीं है क्योंकि ताराचंद सारस्वत के पास खुद उनके समाज की वोट भी पूरी तरीके से नहीं है और अदर वोट बैंक भी साथ लाना उनके लिए बहुत मुश्किल काम है। चाहे रामगोपाल सुथार की बात कर ले, या चाहे छैलू सिंह शेखावत की बात कर ले, या चाहे तोलाराम जाखड़ की बात कर ले, ये सभी नेता ताराचंद से दूरी बनाये हुए बैठे हैं। बीजेपी को अगर यहां चुनाव जीत की रेस में आना है तो प्रत्याशी के रूप में यहां किसी जाट प्रत्याशी को मैदान में उतरना होगा, अगर जाटों के वोटों की बात की जाए तो तोलाराम जाखड़ सबसे मजबूत कैंडिडेंट है, क्योंकि वे यहां पिछले पांच साल पहले से और इस पूरे चार साल कुल नौ सालों से अपनी विधानसभा में सक्रिय नजर आ रहे हैं, लगातार वे लोगों से जनसंपर्क कर रहे हैं। पीडि़तों की मदद कर रहे हैं तो क्षेत्र की जनता के मुद्दे भी उठा रहे है। इनकी छवि भी बिल्कुल साफ है, वे किसी भी प्रकार के विवाद से दूर रहते हैं, एक किसान परिवार से जुड़े हुए हैं, सीधा सिंपल उनका व्यवहार भी लोगों में काफी लोकप्रिय है। राजनीति के जानकारों का मानना है कि कांग्रेस ने अगर यहां से मंगलाराम गोदारा को चुनाव टिकट देती है तो कांग्रेस को यहां पर हाल झेलना पड़ सकता है। गोदारा की हार की वजह एक यह भी हो सकती है कि रामेश्वर डूडी भी मंगलाराम गोदार के एंटी माने जाते है। हालांकि यहां हरिराम बाना रामेश्वर डूडी की पहली पसंद है और हरिराम बाना भी लगातार डूंगरगढ़ में सक्रिय नजर आ रहे हैं, खास बात यह है कि युवा नेता हैं, पढ़े-लिखे हैं, लोगों में उनकी अच्छी पकड़ है, साधारण परिवार से आते हैं।
इस तरह श्रीडूंगरगढ़ विधानसभा में इस बार चुनावी मुकाबला सीधे-सीधे कांग्रेस वर्सेज बीजेपी में है। हालांकि तीसरा मोर्चा आरएलपी के युवा नेता विवेक माचरा भी पिछले लंबे समय से यहां से सक्रिय है, जो क्षेत्र की जनता की हरेक समस्या को उठाते आ रहे है। राजनीति के जानकारों का मानना है कि भले ही माचरा यहां से चुनाव नहीं निकाल पाए, लेकिन वोट समीकरण जरूर बिगाड़ेंगे। इससे कांग्रेस को ज्यादा नुकसान होगा। वहीं वर्तमान के विधायक कॉमरेड गिरधारी महिया की बात करें तो महिया का क्रेज काफी गिर चुका है, इसका मुख्य कारण यह है कि महिया क्षेत्र के विकास में कुछ विशेष नहीं कर पाए। क्षेत्र की जनता को उनसे काफी उम्मीदे थी, जिन पर वे खरा नहीं उतर पाए, चुनाव में उनकी यही कमजोरी उन्हें हार के रूप में झेलनी पड़ सकती है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि पार्टियां किस प्रत्याशी पर यहां पर अपना दावेदार बनाकर भेजेगी। कांग्रेस व बीजेपी दोनों ही पार्टियों ने यहां किसी जाट नेता पर दाव खेला तो मुकाबला बहुत रोमांचक होगा।

