कही यहां भी न हो जाएं सूरत जैसा हादसा,जागो प्रशासन - Khulasa Online कही यहां भी न हो जाएं सूरत जैसा हादसा,जागो प्रशासन - Khulasa Online

कही यहां भी न हो जाएं सूरत जैसा हादसा,जागो प्रशासन

बायलॉज की धज्जियां उड़ाकर कोचिंग संस्थान चल रहे हैं
बीकानेर। अनेक बार ऐसा होता है कि हादसे होने के बाद ही सरकार चेतती है। परन्तु अब तो स्थिति ये है कि बड़े हादसे होने के बावजूद सरकार नहीं चेती बल्कि शहर में धड़ल्ले से नियम विपरीत इमारतें खड़ी हो रही हैं। ज्यादातर कोचिंग सेंटर ऐसी ही इमारतों में चल रहे हैं, जिससे लाखों बच्चों को जान सांसत में है। सूरत के क ॉमर्शियल कॉम्पलेक्स में संचालित सेंटर में आग लगने से बच्चों और शिक्षक की अकाल मौत के बाद शहर में फिर ऐसी इमारतों को लेकर सवाल गहरा रहे हैं। यहां भी स्थिति चिंताजनक है।
शहर के विभिन्न हिस्सों में बिल्डिंग बायलॉज की धज्जियां उड़ाकर कोचिंग संस्थान चल रहे हैं। पॉश कॉलोनियों में लगातार नए कोचिंग सेंटर खुल रहे हैं। यहीं नहीं आवासिय व शहर के व्यस्ततम इलाकों में भी धडल्ले से कोचि ंग सेन्टर खोले जा रहे है। यहां न तो पार्किंग है, न आग से निपटने के लिए संसाधन। जबकि सरकार ने 4 साल पहले कोचिंग सेंटर संचालन के लिए नियम जारी किए थे। इसके बावजूद 95 प्रतिशत इमारतों में तो फायर एन ओसी तक नहीं है।
यहां लगी थी आग, फिर भी नहीं चेते
कुछ माह पहले ही जेएनवी स्थित एक कोचिंग सेंटर में आग लग चुकी है। तब वहां 50-60 बच्चे मौजूद थे। हालांकि बड़ा हादसा टल गया लेकिन सीलिंग कार्रवाई दिखावे के लिए हुई। इसके बाद तो बेसमेंट में कोचिंग और लाइब्रेरी संचालन का आंकड़ा तेजी से बढ़ता गया। तंग गलियों तक में कोचिंग सेंटर चल रहे हैं जहां न तो आग बुझाने के यंत्र हैं, न दमकलों के पहुंचने का कोई रास्ता।
शहर में हर कदम पर नियमों का हो रहा उल्लंघन
सड़क नियम
कोचिंग सेंटर अब 40 फीट या उससे चौड़ी सड़क व 300 वर्ग मीटर से बड़े भूखण्डों पर खोले जा सकेंगे। हर म ंजिल पर प्रवेश व निकासी के लिए दो सीढिय़ा होंगी। किन्तु ऐसा नही है 25 फीट चौड़ी सड़क और 50 वर्गगज क्षेत्रफल में धड़ल्ले से कोचिंग चल रहे हैं। प्रवेश-निकासी को अलग-अलग सीढिय़ां तो दूर, कई जगह 3 फीट का ही रास्ता है।
विद्यार्थी नियम
10 से 100 तक विद्यार्थी वाले संस्थानों पर नए नियम लागू होंगे। अधिक विद्यार्थी वालों के लिए पुराने नियम (संस्थानिक) ही लागू रहेंगे। मंजर ये है कि विद्यार्थी संख्या के दोनों ही मामलों में नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। संस्थानिक उपयोग के लिए तो अनुमति ली ही नहीं गई बल्कि आवासीय में व्यावसायिक-संस्थानिक गतिविधियां चल रही हैं।
कॉर्नर भूखण्ड नियम
कॉर्नर वाले भूखण्ड पर कोचिंग या ट्यूशन सेंटर खोलने की अनुमति नहीं होगी। क्योंकि कॉर्नर के भूखण्डों पर ज ंक्शन के कारण दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। परन्तु शहर में ऐसा नहीं है। कॉर्नर के भूखण्डों पर कोचिंग से ंटर चल रहे हैं। छात्रों और वाहन चालकों का जमावड़ा रहता है।
पार्किंग नियम
प्रत्येक अभ्यर्थी पर एक इसीयू जरूरी। कुल इसीयू का 25 प्रतिशत पार्किंग चौपहिया व 75 प्रतिशत दोपहिया के लिए। लेकिन वास्तविकता में कुछ संस्थानों को छोड़कर कहीं भी पार्किंग की सुविधा नहीं है। गाडिय़ां सड़क पर खड़ी की जाती हैं।
फायर नियम
कहने को तो कॉम्पलेक्सों व कॉचिंग चलाने वाले संस्थानों में पर्याप्त अग्निशमन यंत्र सुनिश्चित होने च। हकीकत बड़े-बड़े कोचिंग सेंटरों में तो अग्निशमन यंत्र हैं लेकिन ज्यादातर पर सुरक्षा भगवान भरोसे है।
गफलत
समाधान नहीं सुझाए मास्टर प्लान में प्रस्तावित वाणिज्यिक, संस्थागत (शैक्षणिक), सार्वजनिक, अद्र्धसार्वजनिक (शैक्षणिक), मिश्रित भू-उपयोग पर ही कोचिंग सेंटर खोलने का नियम है। शहरी क्षेत्र में मौजूदा संचालित कोचि ंग सेंटरों के लिए इतनी भूमि एक जगह उपलब्ध नहीं है। ऐसे में तो कोचिंग सेंटर बाहरी इलाकों में चल सकते है ं। लेकिन नगर नियोजकों ने ऐसे इलाकों में एजुकेशन हब के लिए जगह आरक्षित की, जहां आसानी से पहुंचा जा सके।

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