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नसबंदी हो रही है फेल, ऑपरेशन के बाद महिलाएं बन रही है मां

बांसवाड़ा। जहां इस महंगाई में हर परिवार अपना परिवार छोटा रखना चाहता है इसके लिए सरकार दंपतियों को प्रेरित भी कर रही है। वहीं दूसरी तरफबांसवाड़ा जिले में हर साल 5 महिलाएं नसबंदी के बाद मां बन रही हैं। ऑपरेशन फेल होने पर चिकित्सा विभाग पहले तो कार्रवाई में उलझा रहा है और इसके बाद हर्जाने के रूप में सिर्फ 30 हजार रुपए दिए जा रहे हैं। इस राशि से एक बच्चे का भरणपोषण कैसे होगा ? क्या यह राशि बहुत कम नहीं है ?
हर साल नसबंदी के मामले में महिलाओं की संख्या बढ़ रही है। वहीं, नसबंदी फेल होने के मामले भी सामने आ रहे हैं। वैसे तो आमतौर पर एक फीसदी केस का फेल होना सैद्धांतिक माना जाता है। हालांकि इसके चलते पैदा होने वाले बच्चों का भार भी माता-पिता के लिए कठिनाई खड़ी कर रहा है।
गौरतलब है कि बीते छह वर्ष यानी वर्ष 2018 से लेकर वर्ष 2023 में अभी तक नसबंदी फेल होने के 30 मामले समाने आ चुके हैं। इन मामलों में महज 11 पीडि़तों को ही हर्जाना मिल सका है। जब कि 15 मामलों को खारिज कर दिया गया है। वहीं, तीन मामले अभी तक लंबित हैं और एक ताजा मामला अभी तक विभाग के पास नहीं पहुंचा है।
पुरुषों की संख्या आधा फीसदी भी नहीं
जिले में यदि बीते छह वर्ष के आंकड़ों पर नजर डालें तो महिलाओं की तुलना में आधा फीसदी पुरुषों ने भी नसबंदी नहीं कराई है। वर्ष 2018 -19 में 0.48त्न, वर्ष 2019-20 में 0.38त्न, वर्ष 2020-21 में 0.19त्न, वर्ष 2021 -22 में 0.09त्न और वर्ष 2022-23 में 0.15त्न पुरुषों ने ही नसबंदी कराई है। जानकार बातते हैं कि वर्तमान में परिवार नियोजन को लेकर कई विकल्प मौजूद हैं। इसलिए पुरुष नसबंदी कराने से कतराते हैं।
बांसवाड़ा रह चुका अव्वल
एमपीवी(मिशन परिवार विकास) के तहत 14 जिलों में बांसवाड़ा ने वर्ष 20-21 में प्रथम और 21-22 में द्वितीय स्थान प्राप्त किया।
लगाते हैं कैंप
एडिशनल सीएमएचओ डॉ भरत मीणा ने कहा कि नसबंदी के मामले में प्रदेश में पुरुषों की संख्या काफी कम है। नसबंदी को लेकर पुरुषों को जागरुक भी किया जाता है। यदि कोई बिना कैंप के ही नसबंदी कराना चाहता है तो सीधे अस्पताल भी पहुंच सकता है। एक फीसदी केस फेल होना सैद्धांतिक है।

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