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कोबरा के डसने से स्नेकमैन की मौत, रेस्क्यू करते समय अंगुली में काटा, मरने से पहले बोले

सरदार शहर। चूरू जिले के सरदार शहर कस्बे में स्नेकमैन नाम से मशहूर विनोद तिवाड़ी (45) की कोबरा के डसने से मौत हो गई। इस घटना का सीसीटीवी फुटेज भी सामने आया है। तिवाड़ी शहर के वार्ड 21 के गोगामेड़ी के पास में शनिवार को सुबह 7 बजे एक कोबरा का रेस्क्यू कर रहे थे। विनोद ने कोबरा को पकड़ कर बैग में डाल लिया था, तभी सांप ने उनकी उंगली पर डस लिया। डंक लगने का एहसास हुए तो विनोद खड़े हुए और कुछ कदम चले तभी बेहोश हो कर गिर पड़े। कुछ ही सेकेंड में उनकी मौत हो गई।
आखिरी शब्द थे- आज तो गया लगता है
सरस बूथ संचालक और मौके पर मौजूद शंकर लाल चौधरी ने बताया कि विनोद तिवाड़ी ने अंगुली को चूसकर जहर निकालने की कोशिश की। उसके बाद वह पास ही लोक देवता महाराज की गोगामेड़ी पर माथा टेकते हैं। उस दौरान उनका जी घबराने लगता है, पास ही स्थिति नागरिक उन्हें संभालते हैं तो उन्होंने आखिरी बोला कि आज जच(बुरी तरह से डस लिया) गया लगता है, इसी के साथ जमीन पर गिर गए और सांसें थम गईं।
घटना के बारे में पता चलते ही तिवाड़ी के घर से उनका बेटा हर्ष (22) और पत्नी मौके पर पहुंचते हैं। उन्हें ऑटो से अस्पताल भी ले जाया जाता, लेकिन तब तक विनोद ने दम तोड़ दिया। रविवार को उनके निजी निवास से उनकी अंतिम यात्रा निकाली गई और कच्चा बस स्टैंड मुक्ति धाम में अंतिम संस्कार कर दिया गया। इस मौके पर सैकड़ों की संख्या में लोग उन्हें अंतिम विदाई देने पहुंचे।
तिवाड़ी के दोस्त नंदराम सहारन ने बताया कि सांपों को पकड़ कर सुरक्षित स्थान पर छोडऩे का काम करीब बीस सालों से कर रहे थे। उसे सांप पकडऩे में महारत हासिल थी। एक साथ पांच-पांच ब्लैक कोबरा जैसे जहरीले सांपों को इन्होंने काबू किया था। सांप, गोह, गोहिरे को मारने नहीं देते थे, बल्कि इन्हें बचाने के लिए खुद पहुंच जाते थे, आसानी से इन जानवारों को पकडक़र जंगल में रेस्क्यू कर देते थे।
घायल सांपों का करते थे इलाज
विनोद तिवाड़ी के बेटे रजत ने बताया कि उनके पिता जीवीएम संस्थान में बागवानी कर्मचारियों का सूपरवाइजर की नौकरी करते थे, लेकिन जब भी कहीं से सांप निकलने की सूचना मिलती तो तत्काल वहां पहुंचते थे, हालांकि उनके पास जीव उपचार की डिग्री नहीं थी, लेकिन मामूली घायल सांपों का उपचार के लिए अपने पास मरहम पट्टी रखते थे। जब तक सांप ठीक नहीं हो जाता उसे अपने साथ रखते थे और फिर जंगल छोडक़र आते थे।

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