वैज्ञानिकों ने साबित किया, चिप्स-कोल्ड ड्रिंक जैसे डिब्बाबंद खाने से बच्चे हो रहे मोटे-नाटे

वैज्ञानिकों ने साबित किया, चिप्स-कोल्ड ड्रिंक जैसे डिब्बाबंद खाने से बच्चे हो रहे मोटे-नाटे

नई दिल्ली। ब्राजील में इंस्टेंट नूडल्स, सॉफ्ट ड्रिंक, बर्गर जैसे अल्ट्रा-प्रॉसेस्ड खाने वाले 2 से 4 साल की उम्र के बच्चों की 5 साल तक मॉनीटरिंग की गई। इसमें सामने आया कि इन बच्चों की लंबाई मानक से कम और वजन मानक से अधिक रहा। यह आगे चलकर बच्चों में हाइपरटेंशन और डायबिटीज जैसे गैर-संचारी रोग का कारण बन सकता है। साथ ही, यह युवा होने पर इन बच्चों की आर्थिक गतिविधियों में शामिल होने की क्षमता पर भी असर डालेगा। ब्राजील में हुआ यह अध्ययन ब्रिटिश जर्नल ऑफ न्यूट्रिशन में प्रकाशित हुआ है। यह अध्ययन इसलिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि इसने पहली बार छोटे बच्चों पर अल्ट्रा-प्रॉसेस्ड फूड के असर को मापा है। वैज्ञानिकों ने इस अध्ययन को आधार बनाते हुए एक बार फिर जोर दिया है कि बच्चों के लिए घर का खाना ही सबसे बेहतर होता है।
तीन हजार चार सौ अ_ानबे बच्चों पर किए गए अध्ययन में कहा गया है कि दुनियाभर में अल्ट्रा-प्रॉसेस्ड फूड की खपत बढ़ रही है। बच्चों का अल्ट्रा-प्रॉसेस्ड फूड खाना सीधे तौर पर गैर-संचारी बीमारियों के बढ़ते जोखिम से जुड़ा है। छोटे बच्चों में अल्ट्रा-प्रॉसेस्ड फूड का चलन सबसे बड़ी चिंता की बात है, क्योंकि बच्चों को ये बेहद स्वादिष्ट लगते हैं और कंपनियां भी इनसी मार्केटिंग पर भरपूर खर्च करती हैं।
ये हैं अल्ट्रा प्रॉसेस्ड फूड
इंस्टैंट नूडल्स, सॉफ्ट ड्रिंक, दूध में चॉकलेट पाउडर, नगेट्स, बर्गर या सॉसेज, डिब्बाबंद नमकीन, कैंडीज, लॉलीपॉप, च्युइंग गम, चॉकलेट या जेली, कुकी या मीठा बिस्किट,कैन या बॉक्स में जूस।
गैर-सरकारी संगठन न्यूट्रिशन एडवोकेसी इन पब्लिक इंटरेस्ट के समन्वयक डॉ. अरुण गुप्ता से बातचीत में कहते हैं, अल्ट्रा-प्रॉसेस्ड फूड नॉर्मल फूड के मैट्रिक्स को बदल देता है। इसमें माइक्रोन्यूट्रिएंट कम हो जाते हैं। इसमें नुकसान पहुंचाने वाले तत्व जैसे कि ट्रांस फैट, ज्यादा शुगर और नमक मौजूद होते हैं। अल्ट्रा-प्रॉसेस्ड फूड एडिक्टिव होते हैं, यानी इन्हें बार-बार खाने की इच्छा करती है और इससे होने वाला नुकसान बढ़ता जाता है।न्यूट्रिशनिस्ट कविता देवगन भी डॉ. गुप्ता से इत्तेफाक रखते हुए कहती हैं, अल्ट्रा-प्रॉसेस्ड फूड फ्रेश नहीं होते। लंबी शेल्फ लाइफ के लिए इनमें प्रिजर्वेटिव मिलाए जाते हैं, जो कि केमिकल होते हैं। टेस्ट और टेक्सचर अच्छा बनाने के लिए इनमें एडेटिव भी मिलाए जाते हैं। ये हार्मोनल चैलेंज, अर्ली प्यूबर्टी का कारण बनते हैं।

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