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साइंटिस्ट बोले-अधूरे टेस्ट का नतीजा, बिना डायबिटीज मेडिसिन देना

डॉ. एस कुमार ने बताया कि आम तौर पर डायबिटीज की जांच के लिए भारत में मरीजों के 3 तरह के ही टेस्ट प्रैक्टिस में लिए जा रहे हैं। जबकि मेडिकल और फार्मा बुक्स में कई दूसरे टेस्ट और कारणों की जांच भी लिखी हुई हैं। ब्लड ग्लूकोज फास्टिंग, रैंडम और HbA1c टेस्ट ही किए जाते हैं, लेकिन ‘डाइबोप्लास्टी प्रोटोकॉल 369’ पद्धति के तहत भारत में उनके 50 सेंटर पर इन तीनों टेस्ट के अलावा फास्टिंग सीरम इन्सुलिन, सी-पेप्टाइड, होमा-IR टेस्ट भी करवाए जाते हैं। इन टेस्ट के जरिए यह देखा जाता है कि शरीर में बीटा सेल्स कोशिका बराबर काम कर रही हैं या नहीं।

एंजियोप्लास्टी की तरह डाइबोप्लास्टी प्रोटोकॉल अपना कर उन सेल्स पर वर्क किया जाता है, जो काम नहीं कर पा रही हैं। उन्होंने बताया ज्यादातर डॉक्टर सिंप्टम्स पर काम करते हैं, जबकि वे एप्रोप्रिएट सिस्टम और कारणों पर वर्क कर इलाज करते हैं। मरीजों को कुछ सप्लिमेंट भी दिए जाते हैं। इनके जरिए बीमारी की जड़ तक पहुंचकर इलाज किया जाता है। इससे बॉडी में इन्सुलिन फिर से पर्याप्त मात्रा में बनने लग जाता है।

फ्रांस की सीनेट में मिलेगा भारत गौरव अवॉर्ड
डॉ. एस कुमार को भारत गौरव अवॉर्ड के लिए चुना गया है। जो 23 जुलाई 2022 को फ्रांस की राजधानी पेरिस में स्थित सीनेट में दिया जाएगा। इससे पहले देश की पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल भी उनका सम्मान कर चुकी हैं। डॉ कुमार ने एक किताब भी लिखी है-जिसका हिन्दी में मतलब है- डायबिटीज को जान लोगे, तो डायबिटीज कभी नहीं होगी। डायबिटीज को लेकर फैली गलत फहमियों को दूर करने के लिए सेमिनार और जागरूकता अभियान भी शुरू किया है।

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