
महिला शिक्षा की अलख जगाने में सावित्रि बाई का योगदान अविष्मरणीय






श्रीडूंगरगढ़। तहसील के गांधी पार्क में युवाओं ने सावित्रि बाई फूले की 189 वीं जयंती श्रद्वापूर्वक मनाई। इस दौरान उपस्थित युवाओं ने उनके तेल चित्र पर पुष्पाजंलि अर्पित की। समारोह में गोविन्द सारस्वत ने कहा देश में महिला शिक्षा की अलख जगाने वाली सावित्री बाई फुले पहली शिक्षिका रही हैं। इसी बदौलत आज महिलाएं शिक्षा के पायदान पर पुरुषों से आगे होती जा रही हैं। सांवरमल सोनी ने कहा कि सावित्री बाई फूले का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। समाज की कुरीतियों को मिटाकर सुधार करने में फूले का योगदान रहा है। मनीष यच ने कहा कि सावित्रीबाई फुले देश की क्रांति ज्योति थीं। उन्होंने तत्कालीन रूढि़वादी समाज में नारी शिक्षा के लिए एक जनवरी 1848 को नौ बालिकाओं को लेकर पुणे में कन्या पाठशाला की शुरुआत कर अभूतपूर्व कार्य किया। सुरेन्द्र स्वामी ने कहा कि लोगों के विरोध के बावजूद वे निरंतर शिक्षा के प्रचार प्रसार में लगी रहीं। विधवा विवाह, छुआछूत, अंधविश्वास के खिलाफ जबरदस्त आंदोलन किया। विकास पारीक ने बताया कि साल 1896 में महाराष्ट्र में भीषण प्लेस फैलने पर अस्पताल खोलकर लोगों की सेवा करते समय बीमारी से ग्रसित हो गईं। उनकी प्रेरणा से नारी शिक्षा को बढ़ावा मिला। इस मौके पर विजय शर्मा ने कहा कि सावित्री बाई ने उस समय समाज में शिक्षा की जोत जलाई, जब समाज में महिलाओं को शिक्षा का अधिकार नहीं था। तब उन्होंने शिक्षक बन के पूरे समाज में एक मिसाल कायम की और फिर महिलाओं को शिक्षित बनाया।माता सावित्री बाई ने सभी वर्ग व समाज की महिलाओं को शिक्षित करने का काम किया। इसके लिए देश की महिलाएं हमेशा उनकी ऋणी रहेंगी। इस अवसर पर जयपाल,राहुल झेडू,राकेश सारस्वत,बाबूलाल सायच,राकेश गोदारा ने भी अपने विचार रखे।


