
सत्ता वापसी के लिए संघ ने मोदी-शाह के साथ बनाई स्ट्रैटजी; फोकस छवि और सिस्टम सुधारने पर







कोरोना संकट की दूसरी लहर और उसको लेकर केंद्र में मोदी सरकार पर चौतरफा हमले ने संघ और बीजेपी नेतृत्व की नींद उड़ा दी है। खासतौर से आठ महीने बाद होने वाले यूपी विधानसभा चुनावों को लेकर चिंता बढ़ गई है।
संघ लीडरशिप का मानना है कि किसी भी हाल में यूपी में बीजेपी की सरकार दोबारा आनी चाहिए और उसके लिए छवि सुधारने के साथ सिस्टम को बेहतर करने के लिए तुरंत सक्रियता दिखानी चाहिए। फिलहाल बीजेपी और संघ का यूनिटी इंडेक्स 100% है और संघ यूपी चुनाव को 2024 के आम चुनावों का सेमीफाइनल मान रहा है।
कोरोना और उत्तरप्रदेश की चिंता को लेकर संघ और बीजेपी लीडरशिप के बीच रविवार को एक अहम बैठक भी हुई। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले और उत्तरप्रदेश के प्रभारी सुनील बंसल भी शामिल हुए। इसी में छवि और सिस्टम सुधारने पर रणनीति बनी।
संघ का टारगेट- यूपी में भी 15-20 साल शासन करे भाजपा
संघ के एक बड़े पदाधिकारी ने बताया कि पहली चिंता कोरोना से निपटने को लेकर सरकार की छवि को सुधारने की तो है ही, लेकिन इसका असर यूपी विधानसभा पर पड़ने से रोका जा सके, यह जरूरी है। संघ का मानना है कि गुजरात की तरह उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी को 15-20 साल के शासन की तैयारी करनी चाहिए।
साल 2014 के आम चुनावों से पहले अमित शाह यूपी के प्रभारी बनाए गए थे, फिर साल 2017 के विधानसभा चुनावों में शाह के साथ सुनील बंसल को यह जिम्मा सौंपा गया और पार्टी को पहली बार स्पष्ट बहुमत से ज्यादा मजबूत सरकार मिली।
अब कोरोना की वजह से यूपी में बीजेपी के कई विधायकों की मौत भी हो गई है और कई नेताओं ने अपनी ही सरकार के कामकाज को लेकर नाराजगी जाहिर की है। केंद्र में मंत्री और बरेली से सांसद संतोष गंगवार ने भी इस सिलसिले में अपना गुस्सा जताया था। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भी संकट बढ़ा हुआ है।
हेल्थ विजन और हेल्थ मिशन
संघ के विचारक और पदमुक्त स्वयंसेवक नागपुर से दिलीप देवधर कहते हैं कि संघ इस वक्त दो स्तर पर काम कर रहा है। उसका मकसद देश भर में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करना है। इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक दीर्घकालीन कम से कम दस साल का ‘हेल्थ विजन’ तैयार किया जाए, लेकिन साथ ही यूपी चुनावों के मद्देनजर एक साल का ‘हेल्थ मिशन’ बनाया जाए, जिसमें अगले पांच साल में यूपी में हेल्थ सिस्टम के लिए मेडिकल कॉलेज, एम्स जैसे संस्थान और अस्पतालों के साथ नर्सिंग कॉलेज व अन्य सुविधाओं का खाका बने।
इसके अलावा यह प्लान चुनाव से पहले तैयार होना चाहिए। कोरोना की दूसरी लहर के वक्त यूपी में नदियों में बहती लाशों और मौतों के आंकड़ों से सरकार की छवि पर असर पड़ा है और उसका संकेत हाल में हुए पंचायत चुनावों में दिखाई दिया, यानी अब जागने का वक्त है।
संघ के एक और बड़े पदाधिकारी ने कहा कि संघ प्रमुख मोहन भागवत का ‘पॉजिटिविटी अनलिमिटेड’ सीरीज में भाषण सरकार से नाराजगी जताने के लिए नहीं, बल्कि लोगों में गुस्से को कम करने के लिए था। भागवत ने कोरोना संकट में निपटने में गफलत की बात तो की, लेकिन मौतों के बढ़ते नंबर के साथ, आध्यात्मिक प्रवचन के तौर पर जिंदगी में आगे बढ़ने की बात पर जोर दिया।
भागवत ने यह संकेत भी दे दिया कि RSS कोरोना संकट पर सरकार के कामकाज से खुश नहीं है और उसमें तुरंत सुधार की जरूरत है। इससे पहले संघ के एक प्रांतीय पदाधिकारी ने ट्वीट करके पूछा था कि कोरोना संकट के वक्त दिल्ली में बीजेपी के नेता कहां हैं? जब उन्हें मैदान में होना चाहिए, वे दिखाई नहीं दे रहे।
बीजेपी के एक बड़े नेता ने बताया कि कोरोना संकट की शुरुआत में प्रधानमंत्री मोदी को यह राय दी गई थी कि स्वास्थ्य सेवा राज्यों का विषय है इसलिए राज्यों को इससे निपटने दिया जाए। उनका ये कहना है कि प्रधानमंत्री का मानना था कि इतनी बड़ी महामारी से निपटने की जिम्मेदारी सिर्फ राज्यों पर नहीं छोड़ी जा सकती। इस संकट का सामना केंद्र को भी राज्यों को साथ देकर करना पड़ेगा।
संगठन में बदलाव
आरएसएस के नए सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले के प्रधानमंत्री मोदी से बेहतर और करीबी रिश्ते माने जाते हैं और वे बीजेपी और संघ के बीच लिंक के तौर पर काम करेंगे। संघ में अभी एक नया हाईकमान बना है, जो बीजेपी और संघ के रिश्तों के अलावा नीतिगत मुद्दों पर चर्चा करेगा। इसमें आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, सरकार्यवाह होसबोले, पूर्व सरकार्यवाह भैयाजी जोशी के साथ प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह शामिल हैं।
संघ में संगठन स्तर पर आमतौर पर जून के महीने में बदलाव किए जाते हैं यानी संघ से बीजेपी में जाने वाले लोगों की नई जिम्मेदारियों को तय किया जाता है। माना जा रहा है कि होसबोले ने प्रधानमंत्री और बीजेपी के नेताओं के साथ इस पर भी चर्चा की है। पिछले दिनों हुए बदलाव के वक्त यूपी के संगठन प्रभारी सुनील बंसल को भी राष्ट्रीय स्तर पर जिम्मेदारी देने पर विचार हुआ था और उन्हें राम लाल की जगह लाया जाना था, लेकिन तब यह टाल दिया गया और बीजेपी से संघ में लौटे रामलाल को संपर्क प्रमुख की जिम्मेदारी मिल गई। इसके साथ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से आए सुनील अम्बेकर को अखिल भारतीय स्तर पर प्रचार का जिम्मा मिल गया।
होसबोले ने भी ज्यादातर समय विद्यार्थी परिषद में बिताया है और वो इस तरह पहले पदाधिकारी हैं, जिन्हें विद्यार्थी परिषद से होने के बावजूद सरकार्यवाह चुना गया है। सुनील बंसल भी विद्यार्थी परिषद से हैं। संघ में पुरानी या हार्डकोर विचारधारा पर चलने वाले लोग इस तरह के बदलावों का विरोध करते रहे हैं।


