रानिल विक्रमसिंघे बने श्रीलंका के नए राष्ट्रपति, 225 में से 134 वोट मिले

रानिल विक्रमसिंघे बने श्रीलंका के नए राष्ट्रपति, 225 में से 134 वोट मिले

कोलंबो. रानिल विक्रमसिंघे आर्थिक तौर पर दिवालिया हो चुके श्रीलंका के नए राष्ट्रपति बन गए हैं। उन्हें 134 वोट मिले। राष्ट्रपति पद के सबसे मजबूत दावेदार माने जाने वाले दुलस अल्हाप्परुमा को 82 वोट मिले। पार्लियामेंट में 44 साल बाद सीक्रेट वोटिंग हुई। यानी 1978 के बाद पहली बार देश में जनादेश के माध्यम से नहीं, बल्कि राष्ट्रपति का चुनाव सांसदों के सीक्रेट वोट के माध्यम से हुआ। दरअसल कुछ रिपोर्ट्स बता रही हैं कि देश को नए राष्ट्रपति के साथ ही नया प्रधानमंत्री भी मिलने जा रहा है। बहुत गौर से देखें तो सच्चाई सामने आती है। और वो ये कि सत्ता की जिस बंदरबांट ने श्रीलंका को इन हालात में पहुंचायाए वही स्थिति अब भी है। नए प्रधानमंत्री के तौर पर सजिथ प्रेमदासा कुर्सी संभाल सकते हैं। कुल मिलाकर श्रीलंकाई नेता एक बार फिर वही ष्मैच फिक्सिंगष् करने जा रहे हैंए जिसके चलते देश इस बदतरीन दौर तक पहुंचा।

ये मैच फिक्सिंग कैसे
मंगलवार तक राष्ट्रपति की रेस में चार अहम नाम थे। रानिल विक्रमसिंघेए दुलस अल्हाप्परुमाए अनुरा कुमारा और सजिथ प्रेमदासा। इनमें से भी दो नाम प्रायोरिटी में सबसे ऊपर थे। दुलस अल्हाप्परूमा और सजिथ प्रेमदासा। हुआ ये कि सजिथ ने नाम वापस ले लिया और वो प्रेसिडेंट पोस्ट की रेस से बाहर हो गए। सेटिंग यहीं होती नजर आती है। दरअसल श्रीलंका मिरर की रिपोर्ट बताती है कि सजिथ ने नाम वापस इस शर्त पर लिया कि उन्हें प्रधानमंत्री बनाया जाएगा। इसके लिए दुलस की पार्टी पूरा सपोर्ट करेगी। रानिल विक्रमसिंघे सबसे काबिल थे और वही चुने गए।

दुनिया की भी नजर
2 जुलाई को जापान की तरफ से एक बयान जारी किया गया था। इसको बहुत गौर से देखने की जरूरत है। जापान सरकार ने श्रीलंका को ष्कैश रिलीफष् देने से इनकार कर दिया था। इस कदम के मायने समझने की जरूरत है।
अमेरिकाए जापान और भारत तक श्रीलंका को बेलआउट के तौर पर कैश देने से बच रहे हैं। इसकी वजह वहां के करप्ट नेता और करप्ट सिस्टम है। इन देशों को लगता है कि कैश रिलीफ का फायदा अवाम को नहीं मिलेगा।
प्डथ् और वर्ल्ड बैंक को आगे किया जा रहा है। यही फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन श्रीलंका को सख्त शर्तों पर बेलआउट पैकेज देंगे। इनकी लीगल बाउंडेशन होगी और श्रीलंका की किसी भी सरकार को यह शर्तें माननी होंगी।
श्रीलंका के इतिहास में 9 जुलाई को पहली बार सरकार की नीतियों से नाराज चल रहे प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति भवन में घुस गए। कई प्रदर्शनकारी एक कमरे से दूसरे कमरे में गए।
श्रीलंका के इतिहास में 9 जुलाई को पहली बार सरकार की नीतियों से नाराज चल रहे प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति भवन में घुस गए। कई प्रदर्शनकारी एक कमरे से दूसरे कमरे में गए।
चीन की चुप्पी का राज

श्रीलंका में बहुत बड़ा तबका मानता है कि मुल्क के दिवालिया होने के पीछे अगर राजपक्षे परिवार है तो इस फैमिली के पीछे भी चीन ही खड़ा था। करीब 30 साल तक राजपक्षे फैमिली और चीन के सीक्रेट रिलेशन रहे।
जब राजपक्षे परिवार के खिलाफ अवाम सड़कों पर उतर आई तो चीन ने भी हाथ खींच लिए। हम्बनटोटा पोर्ट हथियाने के बाद से ही उसे विलेन के तौर पर देखा जा रहा था। अब चीन बिल्कुल चुप है।
अमेरिकाए जापान और भारत के साथ उनका चौथा क्वॉड साथी ऑस्ट्रेलिया। ये चारों देश अब चीन को श्रीलंका में पैर पसारने का कोई मौका नहीं देना चाहते। लिहाजाए कोशिश ये हो रही है कि मदद का वो तरीका अपनाया जाएए जिसका फायदा श्रीलंकाई नेताओं के बजाए सीधे जनता को मिले।

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