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खबर लूणकरणसर विधानसभा से जुडी: क्या कहती है यहां की सियासत, जाट या ब्राह्मण

पत्रकार कुशाल सिंह मेडतियां की खास रिपोर्ट

बीकानेर। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं वैसे-वैसे चुनाव की सरगर्मियां तेज होती जा रही है और प्रत्याशी भी अपनी जोर आजमाइश में जुटे हुए है। बात की जाए लूणकरणसर विधानसभा की तो यहां से अभी भाजपा से सुमित गोदारा, कांग्रेस से राजेंद्र मूड तो निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर प्रभु दयाल सारस्वत और कांग्रेस से बागी हुए वीरेंद्र बेनीवाल चुनाव लड़ रहे हैं। यहां पर हमेशा जाटों का दबदबा रहा है, लेकिन यहां पर मानिकचंद सुराना ही ऐसे व्यक्ति रहे जो यहां से चुनाव जीते थे। इस बार अगर बात की जाए तो यहां से तीन जाट चुनाव लड़ रहे हैं और एक ब्राह्मण चुनाव लड़ रहे हैं। बात सुमित गोदारा की हो तो वह भाजपा से दावेदारी कर रहे हैं। लेकिन उनके लिए अब प्रभु दयाल सारस्वत सिरदर्द बन चुके हैं। क्योंकि यहां पर जो भाजपा से नाराज वोटर हैं वह कहीं ना कहीं सारस्वत की तरफ झुकाव कर रहे हैं। तीन जाट प्रत्याशियों के लड़ने की वजह से जो भाजपा का मूल वर्तमान के वह भी प्रभु दयाल की तरफ डायवर्ट हो रहे हैं और इन तीन जाटों की लड़ाई में अगर अन्य जातियों का सपोर्ट मिलता है तो प्रभु दयाल का परिणाम भारी नजर आ रहा है। अब अगर बात कांग्रेस की की जाए तो यहां से राजेंद्र मूंड चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन कांग्रेस से ही बागी हुए वीरेंद्र बेनीवाल भी अपनी ताल ठोक चुके हैं और चुनाव मैदान में लेकिन लोगों के अनुसार विधानसभा की बात की जाए तो यहां पर जाट वोटो का परसेंटेज ज्यादा है और अगर जाटों की पार्टी में बात की जाए तो कांग्रेस की तरफ झुकाव हमेशा से ज्यादा रहा। ऐसे में अगर मूंड को जाट वोटो का सहारा मिलता है तो चुनाव जीतना बहुत आसान हो जाएगा। क्योंकि सुमित गोदारा से लोग नाराज हैं तो वहीं वीरेंद्र बेनीवाल पार्टी से निष्कासित किया जा चुके हैं। इसलिए जो समीकरण सामने आ रहे हैं उसमें ऐसा लग रहा है कि कहीं ना कहीं जाटों की वोटो का ध्रुवीकरण जो है पूरा राजेंद्र मूड की तरफ हो सकता है। अगर जाटों का ध्रुवीकरण कांग्रेस में कर पाने में राजेंद्र मूंड सही साबित हो जाते हैं तो बिल्कुल यह मुकाबला प्रभु दयाल सारस्वत और कांग्रेस के बीच होता नजर आएगा। कहीं सुमित गोदारा या फिर वीरेंद्र बेनीवाल की तरफ वोट डायवर्ट होने से प्रभु दयाल सारस्वत चुनाव न जीत जाए इसलिए वहां पर जो है जाट जाति के जो वोट बैंक हैं वह बिल्कुल अलर्ट मोड पर हैं। कहीं ना कहीं यह मुकाबला त्रिकोणीय में ही फंसता नजर आ रहा है। वीरेंद्र बेनीवाल जो है वह वोट लेने में कहीं ना कहीं कामयाब होते नजर नहीं आ रहे हैं जिस तरह की बात वहां पर की जा रही है बिल्कुल उनको सपोर्ट किया जा रहा है। यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा क्या करवट लेती है यहां की राजनीति। लेकिन फिलहाल जो है इस राजनीति में यह नजर आ रहा है कि यह मुकाबला राजेंद्र मूड और कहीं ना कहीं भाजपा के बागी प्रभु दयाल सारस्वत से हो सकता है।

 

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