
जिले के आधा दर्जन ब्लाइंड मर्डर पुलिस के लिए बने पहेली






नागौर। जिले में पिछले पांच-छह साल में हुए ज्यादातर ब्लाइंड मर्डर आज भी पुलिस के लिए पहेली बने हुए हैं। पुलिस अधिकारियों की उदासीनता के चलते हत्या के मामलों की फाइलों पर धूल जम रही है। हालांकि पुलिस ने पिछले सप्ताह ही जिला मुख्यालय पर अप्रेल में हुए ब्लाइंड मर्डर का राजफाश किया, लेकिन जिले में अब भी हत्या के आधा दर्जन मामले ऐसे हैं, जिनमें तीन पांच साल से अधिक पुराने हैं तो इतने ही दो से तीन साल पुराने हैं, जिनका राजफाश करना पुलिस के लिए चुनौती बना हुआ है। इसमें 7 फरवरी 2014 को नागौर शहर के कालू खां की बाड़ी में हुई केमिकल अटेक में मां-बेटे की मौत, 26 मार्च 2015 को बड़ी खाटू थाना क्षेत्र के धीजपुरा के पास बोलेरो चालक की हत्या, 23 जून 2015 को मेड़ता रोड रेलवे ट्रेक पर डिस्कॉम के हेल्पर की हत्या कर नग्न शव डालने, 10 मार्च 2016 को जिला मुख्यालय पर डिस्कॉम कॉलोनी में केशियर की हत्या तथा 16 जुलाई 2018 को कुचामन सिटी में मारपीट के बाद दम तोडऩे वाली रश्मि गौड़ की हत्या के राज अब तक पर्दे में ही है। इन ब्लाइंड मर्डर से ऐसा लग रहा है कि जैसे हत्या के राज मृतकों के शव के साथ ही दफन हो गए।
डिस्कॉम केशियर किरण की हत्या भी बनी राज डिस्कॉम के नागौर शहर एईएन कार्यालय की केशियर किरण शर्मा की 10 मार्च 2016 को उसी के क्वार्टर में हत्या कर दी गई। घटना के बाद केशियर के मकान पड़ौसी ग्रामीण एईएन अर्जुनसिंह ने कोतवाली थाने में रिपोर्ट देकर हत्या का मामला दर्ज कराया था। किरण के पति की पहले ही मौत हो चुकी थी, इसलिए पीछे उसकी पैरवी करने वाला कोई नहीं रहा। नतीजन पुलिस ने 11 सितम्बर 2017 को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नागौर में एफआर पेश कर दी, लेकिन नागौर सीजेएम कोर्ट द्वारा 11 फरवरी 2019 को दिए गए आदेश पर पुलिस को किरण शर्मा हत्याकांड की फाइल रिऑपन करनी पड़ी। हालांकि डेढ़ साल बाद भी कोई नतीजा नहीं निकला है। जांच अधिकारी बदले, लेकिन नहीं खोल पाए हत्या के राज जिले के आधा दर्जन ब्लाइंड मर्डर को लेकर पत्रिका द्वारा की गई पड़ताल में सामने आया कि हत्या के राज खोलने के लिए पुलिस अधिकारियों ने प्रयास तो काफी किए, लेकिन सफलता नहीं मिली। जिन प्रकरणों में परिजनों एवं राजनीतिक दबाव था, उनमें पुलिस ने बार-बार जांच अधिकारी बदले, लेकिन जिन मामलों में मृतकों के पीछे कोई लडऩे वाला नहीं था, उनकी फाइलें पुलिस ने देखना ही उचित नहीं समझा और एफआर तक लगा दी।
ये हैं जिले के प्रमुख ब्लाइंड मर्डर
केमिकल अटेक से मां-बेटे की हत्या शहर के कालू खां की बाड़ी में 7 फरवरी 2014 की रात को हिस्ट्रीशीटर बाबू खां व उसके परिवार को केमिकल डालकर जलाने का प्रयास हुआ, जिसमें गंभीर रूप से झुलसे बाबू खां व उसकी मां हनीफा की उपचार के दौरान मौत हो गई थी। परिजनों ने हत्या की आशंका जताते हुए चार जनों के खिलाफ कोतवाली थाने में नामजद मुकदमा दर्ज करवाया था। पुलिस ने जांच शुरू की। करीब 11 महीने बाद जोधपुर की प्रयोगशाला ने इस बात की पुष्टि कर दी कि बाबू खां के घर में आग ज्वलनशील पदार्थ से लगी थी। इसके बाद पुलिस ने जांच नए सिरे से शुरू की, लेकिन आज तक न तो हत्यारों को गिरफ्तार किया गया है और न ही हत्या का राज खुला है।
नग्न शव बांधा था रेलवे ट्रेक पर 23 जून 2015 की रात अज्ञात लोगों ने मेड़ता रोड से सात किलोमीटर दूर खेडूली रेलवे स्टेशन के पास कुचामन क्षेत्र के ग्राम इण्डोली निवासी अजय कुमार (21) पुत्र घासीराम सारण की हत्या करने के बाद पहचान मिटाने के लिए शव को नग्न अवस्था में रेलवे ट्रेक से बांध दिया। वारदात के बाद मेड़ता रोड थाना पुलिस ने अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर तत्कालीन थानाधिकारी छितरसिंह को जांच सौंपी गई, उसके बाद राजेश गजराज थानाधिकारी बनकर आए तो उन्होंने जांच की, लेकिन हत्या का राज नहीं खुल पाया। खाई में मिला शव, किसने मारा? आज तक पता नहीं जिले के बड़ी खाटू थाना क्षेत्र के धीजपुरा मार्ग स्थित कबीर आश्रम के पास 26 मार्च 2015 को डेगाना थाना क्षेत्र के लंगोड़ गांव निवासी रामनिवास मेघवाल (28) पुत्र पुनाराम मेघवाल का खाई में गड़ा शव मिला था। युवक की नुकीले हथियार से वार कर हत्या की गई थी। इस संबंध में मृतक के भाई रिछपाल ने अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करवाया था। घटना को सवा पांच साल हो गए, लेकिन पुलिस अब तक इसका राजफाश नहीं कर पाई है।
रश्मि गौड़ की हत्या का राज खोलना चुनौती कुचामन सिटी में 16 जुलाई 2018 को घर में मारपीट के बाद रश्मि गौड़ के हाथ-पांव बांधकर व मुंह में कपड़ा ठूंसकर आरोपी फरार हो गए। मारपीट में गंभीर घायल रश्मि ने 17 जुलाई को जयपुर में उपचार के दौरान दम तोड़ दिया था। पुलिस ने शुरू में इस मामले को इतना गंभीर नहीं लिया, जिसके चलते आरोपी सबूत मिटाने में सफल हो गए। समाज एवं राजनीतिक दबाव बढ़ा तो पुलिस ने पहले कुचामन एसएचओ यशदीप भल्ला, फिर मकराना वृत्ताधिकारी, फिर एएसपी डीडवाना एवं उसके बाद एएसपी नागौर को जांच सौंपी। इसके बावजूद 2 साल बाद भी पुलिस खाली हाथ है। पुलिस का कहना है कि जांच के लिए डीडवाना एएसपी के नेतृत्व में कुचामन डीएसपी सहित कुचामन, नावां, चितावा व मारोठ थाने की अलग-अलग टीमों का गठन कर 175 लोगों से पूछताछ की गई, लेकिन हत्यारों को गिरफ्तार करने में सफलता नहीं मिली।
प्रयास चल रहे हैं जिले के जो भी ब्लाइंड मर्डर हैं, उनका राजफाश करने के लिए लगातार प्रयास चल रहे हैं। कई बार कुछ मामले खोलने में थोड़ा समय लग जाता है, लेकिन हमारा प्रयास है कि हत्या के मामले अधिक से अधिक खोले जाएं। श्वेता धनखड़, पुलिस अधीक्षक, नागौर


