
धुपालिया गांव के दोहिते मेजर युद्धवीर सिंह को राष्ट्रपति द्रोपति मुर्मू ने शौर्य चक्र से किया सम्मानित







खुलासा न्यूज, बीकानेर। राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने मंगलवार रात राष्ट्रपति भवन में जब मेजर युद्धवीर सिंह को शौर्य चक्र से सम्मानित किया, उस समय बीकानेर के एक परिवार का सीना चौड़ा हो गया। मेजर युद्धवीर सिंह को जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमले के दौरान शौर्य दिखाने और आतंकियों को ढेर करने के साहस के लिए ये सम्मान दिया गया। दरअसल, युद्धवीर बीकानेर में नोखा के धुपालिया गांव के दोहिते हैं। उनके नाना और पिता भी सेना में उच्च पदों पर रहे हैं। राष्ट्रीय राइफल की नौंवी बटालियन के मेजर युद्धवीर सिंह को ये पुरस्कार आतंकियों से भिडऩे और उन्हें ढेर करने के अदम्य साहस के लिए दिया गया।
दरअसल, 11 अप्रैल 22 को जम्मू-कश्मीर के एक गांव में ड्यूटी दी गई। सड़क पर बेरिकेडिंग कर वाहनों को चैक करना था। क्योंकि किसी वाहन में आतंकी होने की गुप्त सूचना थी। अवरोधक दस्ते का नेतृत्व करने का जिम्मा युद्धवीर को मिला। इसी दौरान जब आतंकी पहुंचे तो युद्धवीर ने कमान का नेतृत्व करते हुए आतंकियों के भागने के सभी रास्ते बंद कर दिए। खुद को खतरे में देख आतंकियों ने फायरिंग शुरू कर दी। इससे डरने के बजाय युद्धवीर ने अपनी टीम के साथ मिलकर आतंकियों को जवाब दिया। आतंकी एक घर में जा छिपे थे।, जहां से बमबारी की गई। इसी दौरान रेंगते हुए युद्धवीर आगे बढ़े। आतंकी को ढेर कर दिया। आतंकियों की गोलाबारी के बीच भी युद्धवीर डटे रहे। अंत में आतंकियों को ढेर करके ही दम लिया।
दरअसल, युद्धवीर के नाना लेफ्टिनेंट जनरल रहे कुंवर चिमन सिंह भी कई युद्धों में भारतीय सेना का नेतृत्व कर चुके हैं। युद्धवीर के पिता कीर्तिवर्धन सिंह भी सेना में कर्नल के पद से सेवानिवृत्त हैं। उनकी मां श्रीमती दिव्या कंवर की प्रेरणा से ही वो सेना में गए। कुंवर चिमन सिंह के पिता खुशाल सिंह भी सेना में कर्नल रहे। ऐसे में युद्धवीर सिंह चौथी पीढ़ी के युवा सेना में है। उनका परिवार मूल रूप से कोटा में रहता है। शौर्य चक्र मिलने पर बीकानेर के सार्दुलगंज एरिया में स्थित युद्धवीर के ननिहाल में हर कोई खुश नजर आया। युद्धवीर पर अपने नाना लेफ्टिनेंट जनरल कुंवर चिमन सिंह का काफी प्रभाव नजर आया।
समारोह में ये रहे उपस्थित
इस आयोजन में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केबिनेट के सभी प्रमुख विभागों के मंत्री, तीनों सेनाओं के प्रमुख़ भी उपस्थित रहे। इस दौरान उनके अदम्य साहस की कहानी भी सुनाई गई।


