
कुलपति के चयन में राजनीतिक दखल, सर्च कमेटी पर उठने लगे सवाल






बीकानेर. कुलपति चयन के लिए मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में जहां समान एक्ट हैं, वहीं राजस्थान में सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों में अलग-अलग। कई राज्यों में गवर्नर तो कई में मुख्यमंत्री कुलपति के नाम
को मंजूरी देते हैं। राजस्थान में राज्यपाल और मुख्यमंत्री कुलपति तय करते हैं। राजस्थान में कुलपति सर्च कमेटी में चार सदस्य होते हैं। इसमें विवि सिंडिकेट कमेटी, राज्य सरकार, राज्यपाल और यूजीसी के सदस्य होते है। कमेटी में अप्रत्यक्ष रूप से दो राज्य और दो केन्द्र के प्रतिनिधि होते हैं। कमेटी पांच नाम राज्यपाल के पास भेजती है, जो मुख्यमंत्री से चर्चा कर एक को फाइनल करते हैं। गलत चयन से ये नुकसान राजनीतिक दखल के चलते योग्यता और मापदंडो को दरकिनार कर कई बार बिना विषय विशेषज्ञ को कुलपति बना दिया जाता है, जिससे विवि का अकादमिक स्तर गिरता है। राज्यपालों के भी अपने गृह राज्यों से लोगों को तवज्जों देने के मामले सामने आते रहे हैं। सर्च कमेटी में शामिल लोग आवेदक के दस साल के प्रोफेसर या अनुभव और आपराधिक मामले न होने के एफि डेविड आदि पर चयन करते है, लेकिन राजनीतिक दखल से फाइनल होने वाले नामों के बाद सर्च कमेटी के चार लोगों की काबिलियत पर भी सवाल उठते है।
प्रोसेस सही, पालना ठीक नहीं
विशेषज्ञों की मानें तो अधिकांश एक्ट में यूजीसी के हिसाब से चयन प्रक्रिया तय है। विज्ञापन के बाद प्रक्रिया तो सही चलती है, लेकिन पालना में कई बार बेईमानी होती है। कई विवि के विज्ञापनों में योग्यता के प्रोफेसर या अनुभव को स्पष्ट नहीं किया जाता। टेक् नीकल, मेडिकल, इंजीनियरिंग आदि सेक्टर में विषय विशेषज्ञ का कई बार ध्यान नहीं रखा जाता। सही चयन करने के लिए सर्च कमेटी के कई मापदण्डों में समय रहते बदलाव भी हों। कमेटी सदस्यों की काबिलियत की भी जांच हो, ताकि अन्य राज्यों के लोग प्रदेश के काबिल लोगों का हक न छीनें।
सर्च कमेटी बन गई है सलेक्शन कमेटी
कुलपति चयन के लिए जब सर्च कमेटी का प्रावधान बना तो कमेटी को यूनिवर्सिटी की गरिमा के हिसाब से देशभर से व्यक्ति तलाशने का जिम्मा था, लेकिन धीरे-धीरे यह कमेटी सलेक् शन कमेटी बन गई। काम था योग्य की तलाश का, सिमट गया विज्ञापन से आवेदन लेकर एक को चुन लेने तक।
राजनीतिक दखल से कमेटी बन गई कठपुतली
सूत्रों की मानें तो पात्र लोगों की तलाश की कमेटियां केवल कठपुतली बनकर रह गई। राजनीतिक रसूख के चलते योग्यताओं का दमन करने से भी नहीं जाता प्रदेश की एक बहुचर्चित यूनिवर्सिटी में जब सर्व
कमेटी के पास एक आवेदन कुलपति बनने के लिए पहुंचा तो कमेटी ने आवेदन को ही खारिज कर दिया। राजनीतिक इस कदर हावी कसको ही कर दिया गया। दूसरी कमेटी बनाकर सिफारिशों को कुलपति
बना दिया गया।
विवि की स्थिति
सरकारी विवि-23
प्राइवेट विधि- 52
डीम्ड विवि- 8
सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी- 01
देशभर में सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी 54
स्टेट यूनिवर्सिटी- 442
प्राइवेट यूनिवर्सिटी-397
डीम्ड यूनिवर्सिटी- 126
ऐसे-ऐसे भी बने कुलपति
केस-01
एमडीएस यूनिवर्सिटी अजमेर के तत्कालीन कुलपति आरपीसिंह निजी कॉलेज के एफिलेशन के लिए एनओसी के बदले रिश्वत लेेते हुए पकड़े जाने पर सात सितंबर 2020 में जेल गए।
केस-02
अनुभव योग्यता पर कोर्ट में केस के बाद राजस्थान विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति जेपी सिंघल को 2016 में कोर्ट आदेशों से हटाया गया था।
केस 03
कहते है, एक बार सुखाड़िया विवि उदयपुर में तत्कालीन कुलपति का चयन लगभग हो चुका था। अचानक एक नाम भेजा गया जिसे निरस्त कर दिया और नाम निरस्त करने वाली सर्च कमेटी निरस्त कर दी
गई। आखिरी क्षणों में जो नाम छूटा था, उसका ही चयन हुआ।


