जूनामठ परिसर में काव्य गोष्ठी एवं राजस्थानी भाषा विचार मंच का आयोजन - Khulasa Online जूनामठ परिसर में काव्य गोष्ठी एवं राजस्थानी भाषा विचार मंच का आयोजन - Khulasa Online

जूनामठ परिसर में काव्य गोष्ठी एवं राजस्थानी भाषा विचार मंच का आयोजन

बीकानेर।’साहित्य संस्कृति’ संस्था की ओर से पातालेश्वर महादेव मंदिर जूनामठ परिसर में काव्य गोष्ठी एवं राजस्थानी भाषा विचार मंच का आयोजन किया गया। जिसमें उपस्थित कवियों ने मौलिक राजस्थानी कविताएं सुनाई एवं मातृभाषा दिवस पर मायड़ भाषा राजस्थानी की मान्यता को लेकर सार्थक चर्चा की।

वरिष्ठ कवि राजाराम स्वर्णकार का कहना था कि – राजस्थानी समृद्ध भाषा है अन्य भाषाओं की तरह राजस्थानी भाषा को मान्यता मिलनी ही चाहिए जिसके लिए राजस्थान के लोग एवं संस्थाएं सतत् संघर्षरत हैं किंतु राजनेताओं एवं प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों की शिथिलता के कारण यह अब तक केन्द्र की आठवीं अनुसूची में मातृभाषा के रूप में इसे मान्यता नहीं मिली है। राज्य सरकार को चाहिए कि राजस्थान में इसे शीघ्रातिशीघ्र दूसरी राजभाषा घोषित करें। उन्होंने अपनी कविता लीक लीक चलळ वाळी… के माध्यम से राजस्थानी भाषा के महत्व को उजागर किया।

कवियित्री मुक्ता तैलंग ‘मुक्त’ ने कहा कि – राजस्थानी मीठी बोली है। जिसमें राजस्थानी भाषा को जाने वाले लोग आपस में घुल मिलकर गीत कहानी और बातों का आनंद लेते हैं। व्यावहारिक रूप में राजस्थानी राजस्थान की दूसरी राज्य भाषा है बस इसे कानूनन मान्यता मिलना ही बाकी है। उन्होंने एक सुमधुर राजस्थानी गीत सुनाया मीठो मीठो बोल सुआ रे…

कवि कैलाश टाक का कहना था कि- हर राज्य में राज्य भाषा को महत्व मिलता है जिससे क्षेत्र के निवासियों को रोजगार प्राप्त होता है किंतु राजस्थान में राजस्थानी को मान्यता ना मिलने के कारण सभी क्षेत्रों के लोग राजस्थान में नौकरी पा जाते हैं और राजस्थानी लोग पिछड़ जाते हैं। बेरोजगार रह जाते हैं जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में और शहरी क्षेत्रों में भी समस्याओं की जानकारी समस्या समाधान एवं सार्थक चर्चाओं के लिए राजस्थानी का जानकार होना अति आवश्यक है। उन्होंने अपनी कविता में द्रोपदी प्रसंग से लेकर अब तक की महिलाओं की सामाजिक स्थिति पर करारा व्यंग्य किया।

एडवोकेट ओम प्रकाश भादाणी ने कहा कि – राजस्थानी व्यापारी आज पूरे भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में अपनी पहचान बना रहे हैं। जिनके राजस्थानी एवं प्रवासी राजस्थानी नाम से अनेक संगठन भी बने हुए हैं। जिनके आपसी संवाद राजस्थानी भाषा में ही होते हैं। अतः राजस्थानी भाषा स्थापित व्यवहारिक भाषा है। इसे मान्यता मिलनी चाहिए।

पातालेश्वर महादेव मंदिर जूनामठ के महंत श्री विकास गिरी जी ने कहा कि – राजस्थानी में लोकगीतों भक्ति गीतों व राजस्थानी भाषा साहित्य की लंबी परंपरा है। समृद्ध शब्दकोश है। इसलिए यह दूसरी राज्य भाषा बनने योग्य है। उन्होंने राजस्थानी के भावपूर्ण भक्ति गीतों के कई उदाहरण भी प्रस्तुत किए।

इस अवसर पर उपस्थित एडवोकेट शिव प्रकाश भादाणी ने कहा कि – राजस्थानी भाषा अपने आप में मातृत्व भाव से जुड़ी हुई भाषा है। राजस्थानी भाषा में सामान्य वार्तालाप से ही यह स्पष्ट प्रतीत हो जाता है कि इस भाषा का प्रयोग करने वालों का व्यक्तित्व, स्वभाव कितना सरल व सहज है और किसी प्रकार के छल कपट से संबंधित व्यक्तित्व के व्यक्ति नहीं पाए जाते हैं आज भारतवर्ष में राजस्थानी अथवा मारवाड़ी क्षेत्र से कई जाने माने लोगों को विशेष अपनत्व और खरे स्वभाव का व्यक्तित्व माना जाता है। राजस्थानी भाषा के सामान्य बोलचाल में ही रियासत कालीन सभ्यता की झलक स्पष्ट प्रतीत होती है। आज भी किसी अन्य प्रदेश में राजस्थानी भाषा बोलने वाले के चरित्र की कल्पना की जाती है तो उसे उनका एक अलग ही रुतबा होता है। अतः राजस्थानी को मान्यता मिलनी ही चाहिए

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