ठेकेदारी का गढ़ बनी पीबीएम,बिना ठेके ही हो रहे है काम - Khulasa Online ठेकेदारी का गढ़ बनी पीबीएम,बिना ठेके ही हो रहे है काम - Khulasa Online

ठेकेदारी का गढ़ बनी पीबीएम,बिना ठेके ही हो रहे है काम

बीकानेर। पीबीएम अस्पताल में कहने को तो संभाग का सबसे बड़ा अस्पताल है और रोजाना यहां हजारों की संख्या में मरीज स्वास्थ्य लाभ लेने आते है। लेकिन संभाग का सबसे बड़ा यह अस्पताल ठेकेदारों के ईशारा पर चल रहा है। बाबूगिरी की सहायता से यहां ठेकेदार इतने हावी हो गए है कि प्रशासन की सख्ती का भी यहां के चंद कार्मिकों व अधिकारियों को कोई असर दिखाई नहीं दे रहा है। मजे की बात तो यह है कि अस्पताल व मेडिकल कॉलेज में हो रहे भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले समाजसेवी भी अब यहां ठेकेदारी करते नजर आ रहे है। इनमें पीबीएम हेल्प क मेटी के अध्यक्ष सुरेन्द्र सिंह राजपुरोहित का नाम भी सामने आया है। ये वो ही राजपुरोहित है जिन्होंने जिले के आलाधिकारियों को पीबीएम में हो रहे भ्रष्टाचार को उजागर करने के अनेक ज्ञापन सौपें। साथ ही समाचार पत्रों के माध्यम से यहां के चिकित्सकों व कार्मिकों के काले कारनामों को भी उजागर किया था। अस्पताल के कुछ लोगों का कहना है कि इन सब के पीछे इस समाजसेवी की मंशा कुछ ओर ही थी। विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अब ये महाशय पीबीएम अस्पताल में कैन्टीन चलाते है। जिसका भी ठेका किसी ओर के नाम से ले रखा है। यहीं नहीं अस्पताल प्रशासन ने राजपुरोहित के निजी व्यक्ति के नाम से पीबीएम परिसर में एक ही कैन्टीन चलाने की इजाजत दी है। परन्तु खुलासा पोर्टल को जानकारी मिली है कि इस एक कैन्टीन की आड़ पर राजपुरोहित तीन कैन्टीन चला रहा है।
ठेक ा अवधि खत्म,अधीक्षक ने मौखिक रूप से बढ़ाई अवधि
पीबीएम का मंजर ये है कि यहां अनेक योजनाओं,सफाई व्यवस्था,साईकिल स्टेण्ड सहित कई ठेको की अवधि समाप्त होने के बाद भी यहां ठेकेदार अधिकारियों व कार्मिकों की शह पर काम कर रहे है। अगर यूं कहे कि अस्पताल में बिना आदेशों के ही कई ठेकेदार व व्यक्ति काम कर रहे है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। बताया जा रहा है कि अपनों को लाभ पहुंचाने के लिये अस्पताल के वरिष्ठ अधिकारी व कार्मिकों ने पीबीएम की व्यवस्थाओं में परिवर्तन कर दिया है।
अस्पताल के दो अहम गेट बंद
अस्पताल के परिसर में लगी दुकानों के चलते पीबीएम के दो अहम गेटों के ताले लग गए है। जिससे रोगियों को लाने ले जाने वाले वाहनों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। विश्वस्त सूत्र बताते है कि इन गेटों के बंद करने की वजह भी ठेकेदार बताएं जा रहे है। इसको लेकर बाहर के दुकानदार जिला कलक्टर से भी मिले थे।
मंत्रियों के नाम से धमकाते है ठेकेदार
सूत्रों ने बताया कि कुछ ठेकेदार तो खुलेआम राज्य व केन्द्र के मंत्रियों के नाम पर धमकाते है। शायद इसी वजह से भी विभिन्न योजनाओं के खत्म हुए ठेकों के लिये नई निविदाएं निकालने की बजाय अस्पताल प्रशासन ने पुराने ठेकेदारों को ही एक दो महिने के लिये ठेका बढ़ा दिया है। हालात ये है कि कई योजनाओं का काम इतना लंबित हो गया है कि राज्य सरकार को भी इसमें नुकसान उठाना पड़ रहा है। जिससे सरकार की छवि खराब हो रही है और अस्पताल को बजट आंवटन में भी परेशानी हो रही है।

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