
ग्रामीण क्षेत्र के अभिभावक अपने बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर भयभीत, शिक्षामंत्री व कलक्टर के आदेश का इंतजार






बीकानेर. कोरोना के नए वैरिएंट ओमीक्रोन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए शहर के साथ ग्रामीण क्षेत्रों के लोग भी इसकी चपेट में आ रहे है। ऐसे में राज्य सरकार की ओर से कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए जारी गाइडलाइन में विद्यालयों को लेकर दोहरा मापदंड अपनाया जा रहा है। राज्य सरकार ने जिला कलेक्टरों को निर्देश दिए गए है कि वे जिले में परिस्थितियों के अनुरूप निर्णय लें। लेकिन शहरी क्षेत्रों में विद्यालय बंद करने का फैसला राज्य सरकार ने लिया। इतना ही नहीं कोरोना के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए राज्य में शहरी क्षेत्रों के विद्यालय को तो बंद कर दिया, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यालय नियमित रूप से खुल रहे हैं। रोजाना कोरोना के बढ़ते आंकड़े ने तो बीकानेर को रेड जॉन एरिया में भी ला दिया है। पहले जहां शहरी क्षेत्रों में कोरोना के मरीज आ रहे थे, लेकिन पिछले दो-तीन दिनों में कोरोना ने ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को भी अपनी चपेट में ले लिया है।
राज्य सरकार की ओर से जारी गाइडलाइन की पालना सुनिश्चित करने में ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालयों के संस्थाप्रधानों के पसीने छूट रहे है। पिछले दो वर्षो में कोरोना के बाद सरकारी विद्यालयों के नामांकन में अचानक आई तेजी से स्टाफ एवं कक्षा-कक्षों की कमी से जूझ रहे विद्यालयों के लिए कोरोना एक नई चुनौती बन गया है। दूसरी तरफ ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालयों में पढ़ रहे विद्यार्थियों के अभिभावक खासे भयभीत है कि उनके क्षेत्र में पढ़ाने वाले शिक्षक शहरी क्षेत्र से ही आते है। शिक्षा विभाग के इस दोहरे मापदंडों को लेकर वे खासे हैरान है। गौरतलब है कि ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालयों में करीब 60 किलोमीटर तक शिक्षक आना-जानाकर अपनी ड्यूटी निभाते है। वे सभी शिक्षक उन्हीं क्षेत्रों से जा रहे है जहां कोरोना हॉटस्पॉट बना हुआ है। बीकानेर से सैकड़ों की संख्या में रोजाना 60 किलोमीटर की दूरी तय कर ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालयों में आते है। इनमें कोलायत, नोखा, श्रीडूंगरगढ़, लूणकरणसर, खाजूवाला व बज्जू जाते है। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र में अभिभावक अपने बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर भयभीत हो रहे है। इन अभिभावकों को ग्रामीण क्षेत्र के विद्यार्थियों और शिक्षकों के शिक्षामंत्री व कलक्टर के आदेश का इंतजार है।
कई संस्थाप्रधानों ने अपने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि एक तरफ शीतलहर तो दूसरी तरफ कोरोना का कहर है। आने वाले दिनों में कोरोना कोहराम मचा सकता है। इसके लिए शिक्षा विभाग को कई बार अवगत भी करवाया जा चुका है, लेकिन किसी भी तरह की शिथिलन अथवा छूट नहीं मिली है। दूसरी तरफ ग्रामीण क्षेत्र में स्टाफ एवं कक्षा-कक्षों की कमी के चलते पहले से ही विद्यार्थियों के बैठने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं है। सामान्य स्थिति में संस्थाप्रधान जैसे-तैसे कर उनको बैठाने की व्यवस्था कर लेते है। लेकिन कोरोना की इस महामारी के बीच में दो गज दूरी, मास्क है जरूरी का पालन करवाने में खासी मशक्कत का सामना करना पड़ रहा है। वहीं शिक्षा विभाग का ढुल-मुल रवैया भी संस्थाप्रधानों के लिए हैरान करने वाला है। जबकि पूरे शिक्षा विभाग को नियंत्रण करने वाला शिक्षा निदेशालय बीकानेर में है तथा शिक्षा मंत्री भी यहां से ही प्रतिनिधित्व करते है। इसके बावजूद भी विभाग की ओर से न तो प्राथमिक-उच्च प्राथमिक स्तर पर विद्यार्थियों के लिए छूट की व्यवस्था की गई है। जिससे आने वाले दिनों में यह अनदेखी भारी पड़ सकती है। मिली जानकारी के अनुसार शहर के आस-पास के क्षेत्रों के लोग रोजाना शहर में आना-जाना करते है। जिससे वे शहर के लोगों के संपर्क में भी आते है। वो ही लोग अपने घर जाते है उनके बच्चे भी उनके संपर्क में आते है।
अधिकांश शिक्षक निकटतम शहरों से ही विद्यालय पहुंचते है। जब शहरों में कोरोना फैल चुका है तो शिक्षकों के गांव तक परिवहन करने से ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यार्थियों में संक्रमण का खतरा शहरों से कम कैसे हो गया है।
मोहर सिंह सलावद, प्रदेशाध्यक्ष, शिक्षक संघ रेस्टा


