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पंकज आचार्य हत्याकांड: भवानी के भंवर फंसी खाकी,उठने लगे सवाल

खुलासा न्यूज,बीकानेर। वैसे तो पुलिस की प्रणाली पर समय समय पर अनेक सवाल उठते आएं है और पुलिस हमेशा ही सवालों के घेरे में रही है। लेकिन नयाशहर थाने में हुए पंकज आचार्य हत्याकांड की जांच ने तो पुलिस को कटघरे में ही खड़ा कर दिया। जिसमें पुलिस के एक अधिकारी ने दूसरे अधिकारी की जांच को ही चैलेंज कर दिया।अब आम जनता पुलिस द्वारा की जाने वाली जांच पर ही अंगुलिया उठाने लगी है। खुलासा ने कुछ लोगों से बात की तो उनका कहना है कि अब तो ऐसा लगने लगा है कि पुलिस अपराध को रोकने की बजाय उसे बढ़ावा देने में लग गई है। जबकि पुलिस को अपराधियों को संरक्षण की बजाय दंड देना चाहिए। किन्तु पुलिस की इस संदिग्ध जांच प्रणाली ने खाकी को ही कठघरे में खड़ा कर दिया। खबर प्रकाशन के तीन दिन बाद भी महकमें ने इसको लेकर किसी प्रकार की कोई सफाई नहीं दी है।
ऐसे कैसे करें जांच पर विश्वास
पंकज आचार्य हत्याकांड में जिस तरह की जांच हुई है। उससे पुलिस में विश्वास अपराधियों में डर के श्लोग्न पर ही सवाल खड़े कर दिए है। लोगों में अब चर्चा ए आम हो गई है कि इस तरह तो किसी भी जांच को बदलने का काम पुलिस व्यवस्था में हो रहा होगा। जिससे परिवादी को न्याय की उम्मीद भी कम हो रही है।
अभी बाकी रह गई लापरवाही
जब इस मामले में एक समाचार पत्र में खबर प्रकाशित हुई और आईजी ने इस प्रकरण पर लापरवाही बरतने की बात सामने आने पर कार्यवाही की बात कही। अब सवाल यह उठने लगा है कि क्या अब भी लापरवाही जैसा शब्द कहने को बाकी रह गया। जबकि मेडिकल बोर्ड ने इस बात पर मुहर लगा दी है कि हत्याकांड में शामिल आरोपी बालिग ही है। ऐसे में आखिर किसी प्रमाण को सही माना जाएं। जबकि कानूनन अधिकांश फैसलों में मेडिकल बोर्ड को आधार माना जाता है।
मेडिकल बोर्ड ने साबित किया बालिग
जांच अधिकारी फूलचंद शर्मा के मुताबिक शिवशंकर गोदारा ने कक्षा 4 में प्रवेश लिया। तब जन्मतिथि 20 अक्टुबर 2002 थी। वारदात वाले दिन उसकी उम्र 19 साल 10 महीने थी। आरोपी बालकृष्ण भी संदिग्ध लगी तो छानबीन की गई और मेडिकल बोर्ड गठित कर जांच करवाई। मेडिकल बोर्ड ने उसे बालिग बताया। बालकृष्ण ने खुद को नाबालिग साबित करने के लिये जन्मतिथि 20 अक्टुबर 2002 बताई। जबकि छोटे भाई सांवरलाल की आधार कार्ड में 1 जनवरी 2001 है।

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