
बीकानेर में लम्पी वायरस से दहशत, दूध पर वार, क्या दूध पीना चाहिए या नहीं ? पीबीएम के सीनियर डॉक्टर सुरेंद्र वर्मा से की ख़ास बातचीत






गाय में फैल रहा लंपीवायरस, क्या लोग पी सकते हैं दूध?
– संपादक कुशाल सिंह मेड़तिया की विशेष रिपोर्ट
खुलासा न्यूज़ , बीकानेर । जिस एक वायरस ने हजारों गायों को मौत की नींद सुला दिया, उस वायरस की पहचान क्या है? जिस वायरस ने सरकारों और अधिकारियों में खलबली मचा दी, उस संक्रमण का समाधान क्या है? और उससे भी बड़े सवाल ये है कि क्या लंपी वायरस का संक्रमण लोगों तक पहुंच सकता है. क्या जानवरों में हो रहा ये संक्रमण आम लोगों तक पहुंच सकता है? क्या संक्रमित जानवर के दूध से ये बीमारी इंसानों में तो नहीं पहुंच जाएगी? क्या लंपीवायरस फैले हुए इलाके में मिलने वाला दूध खतरनाक हो सकता है. क्या आम लोगों को दूध पीना चाहिए या नहीं?
आइए जानें ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब..
इंसानों पर इसका कोई खतरा नहीं : सीनियर डॉक्टर सुरेंद्र वर्मा
लंपी वायरस से इंफेक्टेड पशु का दूध पीने से इंसान पर असर का कहीं कोई मामला सामने नहीं आया है। लंपी त्वचा रोग एक ऐसी बीमारी है जो मच्छरों, मक्खियों, जूं एवं ततैयों की वजह से फैल सकती है. मवेशियों के एक दूसरे के संपर्क में आने और दूषित भोजन एवं पानी के जरिए भी ये दूसरे जानवरों में फैल सकती है. ये वायरस काफी तेजी से फैलने वाला वायरस है. चूंकि ये रोग दुधारू पशुओं में पाया जा रहा है। बीकानेर सहित प्रदेश भर के लोगों को डर है कि कही उनमें भी इसका असर न हो जाए। इस ख़ौफ़ के चलते खुलासा ने पी॰बी॰एम॰ के मेडिसिन विभाग के सीनियर डॉक्टर सुरेंद्र वर्मा के मुताबिक इंसानों पर इसका कोई खतरा नहीं है। इसका बड़ा कारण है कि हम दूध को गर्म करके ही पीते हैं। गर्म करने पर दूध में मौजूद बैक्टीरिया व वायरस नष्ट हो जाते हैं। साथ ही ह्यूमन बॉडी में एक ऐसा एसिड होता है, जो खुद ही ऐसे वायरस को खत्म कर देता है। हालांकि बीमार पशु का दूध पीने पर बछड़े जरूर संक्रमित हो सकते हैं। वहीं इंसान भी बीमार पशु के सीधे संपर्क में आने से प्रभावित हो सकते हैं।
इंसानों को डरने की नहीं जरूरत
इस बीमारी के खिलाफ इंसानों में जन्मजात इम्युनिटी पाई जाती है। यानी ये उन बीमारियों में से है जो इंसानों को हो ही नहीं सकती। हालांकि हम इंसानों के लिए परेशानी की बात ये है कि बीकानेर सहित प्रदेश भर में दूध की कमी हो सकती है. क्योंकि गुजरात में मवेशियों की जान जाने से प्लांट में दूध की कमी हो गई है।


