पंचायत चुनाव:अपनों को ही दगा दे गये पार्टी के सदस्य,राष्ट्र विरोधी कहने वालों से मिलाया हाथ

पंचायत चुनाव:अपनों को ही दगा दे गये पार्टी के सदस्य,राष्ट्र विरोधी कहने वालों से मिलाया हाथ

खुलासा न्यूज,बीकानेर। कहने को तो पार्टी नेताओं के लिये कार्यकर्ता रीढ़ की हड्डी होती है और उनके लिये पार्टी समर्पण वाली होती है। लेकिन मन मुताबिक काम न तो ये ही नेता न तो कार्यकर्ताओं को तरजीह देते है बल्कि पार्टी से दगाकर महज पद की लालसा के लिये बड़े उल्टफे र तक करने से बाज नहीं आते। कुछ ऐसा ही बीकानेर पंचायतों व जिला परिषद के चुनावों में देखने में मिला। जब पार्टी की रीति-नीति को दरकिनार कर दोनों ही प्रमुख पार्टियों ने ऐसे लोगों से हाथ मिलाया। जो वर्षों से एक दूसरे से कोसते आएं है। हालात यह है कि अनेक बार तो इन पार्टियों के नेताओं ने घिनौने आरोप तक लगा दिए। बात करें श्रीडूंगरगढ़ पंचायत समिति चुनाव की तो यहां राष्ट्रीय स्तर पर एक दूसरे के धुर विरोधी भाजपा-सीपीएम ने एक दूसरे से हाथ मिलाते हुए कांगे्रेस के खिलाफ में चुनाव लड़ा और अपना उप प्रधान बनवा लिया। जबकि हमेशा से जिले में सीपीएम भाजपा की विरोधी रही है। उधर नोखा में कांग्रेस के हालात तो इससे से बुरे रहे। मुख्यमंत्री को कोसने वाली रालोपा की निर्वाचित सदस्य को ही कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बनाकर राजनीतिक गलियारों में एक नई ही बहस छेड़ दी है। यहां के नेताओं ने अपने जीते हुए सदस्यों पर भरोसा न जताते हुए रालोपा के एक वोट को प्राप्त करने की लालसा के लिये प्रधान की सीट तक गंवा दी। मंजर यह रहा कि यहां पार्टी की ओर से प्रधान का चुनाव लडऩे वाली उम्मीदवार को पार्टी के सदस्यों के वोट नहीं मिले। उधर बीकानेर पंचायत समिति के चुनाव में भी कांग्रेस-भाजपा के सदस्यों ने अपनों को दगा देकर विरोधियों को वोट दे डाला। कुछ ऐसा ही जिला प्रमुख चुनाव में हुआ। जहां भाजपा के जीते हुए पांच सदस्यों ने कांगे्रेस के पक्ष में तो एक कांग्रेस सदस्य ने भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में वोट देकर अपनों को ही धोखा दिया।
बहुमत के बाद गंवाया बज्जू खालसा
कांग्रेस के लिये इससे ज्यादा दुर्भाग्य क्या होगा कि नवनिर्वाचित पंचायत बज्जू खालसा में स्पष्ट बहुमत आने के बाद भी बोर्ड नहीं बना सकी। खुलासा ने जब इसके गणित को जाना तो सामने आया कि उच्च शिक्षा राज्यमंत्री भंवरसिंह भाटी अपने किसी चेहते को यहां प्रधान बनाना चाहते थे। यहीं कारण रहा कि कांग्रेस से जीते सदस्य ने अपने पार्टी से बगावत कर प्रधानी की कुर्सी पर कब्जा किया। आपको बता दे कि यहां भी भाजपा से जीते सदस्यों ने अपनी पार्टी
दल-बदला, लेकिन कानून में कार्रवाई नहीं
लोकसभा व विधानसभा में चुनाव लडऩे वाली पार्टी को छोड़कर दूसरी पार्टी के पक्ष में मतदान करने पर सांसद व विधायकों के खिलाफ दल-बदलू कानून के तहत कार्रवाई हो सकती है। लेकिन पंचायत राज चुनावों में जिला परिषद में क्रॉस वोटिंग करने वाले जिला परिषद सदस्यों व पंचायत सदस्यों के खिलाफ इस कानून में कार्रवाई नहीं हो रही है।
पार्टियों को भी हासिल करने से मतलब
यहां महज जीते हुए सदस्यों पर दोषारोपण करना ठीक नहीं होगा। इसमें पार्टियां भी उतनी ही दोषी है। पहले टिकट वितरण में परिवारवाद और मूल कार्यकर्ताओं की उपेक्षा के बाद पार्टियों को प्रमुखी-प्रधानी की चाह रहती है। ऐसे में उलटफेर होना लाजमी होता है।

Join Whatsapp
खबरें और विज्ञापन के लिए इस नंबर पर व्हाट्सएप करें- 76659 80000 |खबरें और विज्ञापन के लिए इस नंबर पर व्हाट्सएप करें- 76659 80000 |