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अब खाली नहीं बैठेंगे बंदी, सीखेंगे एलईडी बल्ब बनाना

नागौर। नागौर जिला जेल के बंदी अब खाली नहीं बैठेंगे। उन्हें हुनरमंद बनाया जाएगा। बंदी राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक नाबार्ड के सहयोग से इलेक्ट्रीशियन बनेंगे जो यहां से रिहा होने के बाद खुद का रोजगार करें ताकि इस काम के जरिए एक सम्मानजनक जीवन जी सकें तथा फिर से अपराध की राह न पकड़े। इसके लिए उन्हें ऋण भी मिलेगा।
सूत्रों के अनुसार पिछले काफी समय से इस पर मंथन चल रहा था। सजायाफ्ता कैदियों से ही काम कराने का सिस्टम था। उसके बदले इन्हें पैसा भी मिलता है। इस पर विचाराधीन बंदियों से भी इस तर्ज पर काम कराने की मांग उठने लगी। अभी नागौर जिला जेल में 135 बंदी हैं। सजायाफ्ता कैदी सात-आठ हैं जो भी खुली जेल में रह रहे हैं। उन्हें सुबह से शाम तक बाहर जाकर काम करने की छूट है। इधर, जेल में बंद विचाराधीन बंदियों से काम कराने का एक प्रस्ताव पिछले दिनों नाबार्ड की जिला शाखा ने अपने मुख्यालय भेजा था। इसमें बंदियों से एलईडी बल्ब, झालर समेत कुछ इसी तरह के आयटम बनाने का प्लान दिया गया था। बताया जाता है कि इसको हरी झण्डी मिल गई है। सबकुछ ठीक रहा तो दस-पंद्रह दिन के बाद यह शुरू हो जाएगा। प्राथमिकता उन बंदियों को मिलेगी जो तीन-चार माह बाद जमानत पर रिहा होने वाले हों। इस संबंध में शुक्रवार को नाबार्ड को जेल ने अपनी रिपोर्ट भी दे दी है। नागौर जिला जेल के अलावा डीडवाना, मेड़ता और परबतसर उप जेल हैं। सभी में वो ही बंदी हैं, जिनके मामले अदालत में विचाराधीन हैं। यानी सजायाफ्ता कैदी एक भी नहीं हैं। नागौर की खुली जेल के सात-आठ कैदियों के अलावा। अभी रोजगारमुखी प्रशिक्षण देने का काम नागौर के जिला जेल में ही होगा। एक विशेष परियोजना के तहत एलईडी बल्ब-झालर समेत अन्य उपकरण बनाने के कौशल का प्रशिक्षण दिया जाएगा। प्रशिक्षण पूरा होने पर नाबार्ड की ओर से बंदियों को प्रमाण-पत्र भी दिया जाएगा। इसके साथ ही उन्हें खुद का काम शुरू करने के लिए बैंकों से ऋण दिलाने में भी नाबार्ड मदद करेगा। इनकी ओर से तैयार माल भी नाबार्ड खरीदेगा। इनके काम-काज की देखरेख भी नाबार्ड करेगा।कई बंदी चार-पांच साल से सूत्रों का कहना है कि नागौर जेल में 135 बंदियों में से आठ महिला हैं। कई बंदी तो ऐसे हैं जो चार-पांच साल से यहां बंद हैं। इस जेल की क्षमता 69 है जबकि अमूमन इससे दोगुने बंदी इसमें रहते हैं। दस फीसदी बंदी ही बुजुर्ग हैं जबकि अधिकांश युवा। ठाले-बैठे बढ़ रही है मानसिक बीमारियांबताया जाता है कि पिछले दिनों एक अध्ययन में यह भी सामने आया कि खाली बैठे बंदियों में मानसिक बीमारियां बढ़ रही है। खाली बैठे उनके दिमाग में तनाव के साथ चिड़चिड़ापन ही नहीं नींद न आना, नकारात्मक सोच, जेल से बाहर निकलने पर बदला लेने जैसी भावना पनप रही है जो काफी खतरनाक है।
नागौर जेल में जल्द होगी शुरुआत, नाबार्ड का रहेगा सहयोग

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